शेषेन्द्र नाम से ख्यात शेषेन्द्र शर्मा आधुनिक भारतीय कविता क्षेत्र में एक अनूठे शिखर हैं। आपका साहित्य कविता और काव्यशास्त्र का सर्वश्रेष्ठ संगम है। विविधता और गहराई में आपका दृष्टिकोण और आपका साहित्य भारतीय साहित्य जगत में आज तक अपरिचित है। कविता से काव्यशास्त्र तक, मंत्रशास्त्र से मार्क्सवाद तक आपकी रचनाएं एक अनोखी प्रतिभा के साक्षी हैं।
संस्कृत, तेलुगु और अंग्रेजी भाषाओं में आपकी गहन विद्वता ने आपको 20वीं सदी के तुलनात्मक साहित्य में शिखर समान साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित किया है। टीएस इलियट, आर्चबाल्ड मेक्लीश और शेषेन्द्र विश्व साहित्य और काव्यशास्त्र की त्रिमूर्ति हैं। अपनी चुनी हुई साहित्य विधा के प्रति आपकी निष्ठा और लेखन में विषय की गहराइयों तक पहुंचने की लगन ने शेषेन्द्र को विश्व कविगण और बुद्धिजीवियों के परिवार का सदस्य बनाया है।
शेषेन्द्र इस युग का वाद्य और वादक दोनों हैं। वे सिर्फ माध्यम नहीं, युग चेतना के निर्माता कवि भी हैं। यह कैसे संभव हुआ है? यह इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि शेषेन्द्र शर्मा में एक नैसर्गिक प्रतिभा है। इस प्रतिभा के हीरे को शेषेन्द्र की बुद्धि ने, दीर्घकालीन अध्ययन और मनन से काट छांटकर सुघढ़ बनाया है। शेषेन्द्र शर्मा आद्योपांत (समंतात) कवि हैं।
भारत, अफ्रीका, चीन, सोवियत रूस, ग्रीस तथा यूरोप की सभ्यताओं और संस्कृतियों, साहित्य और कलाओं का शेषेन्द्र ने मंथन कर उनके उत्कृष्ट तत्वों को आत्मसात कर लिया है और विभिन्न ज्ञानानुशासनों से उन्होंने अपनी मेधा को विद्युतीकृत कर अपने को एक ऐसे संवेदनशील माध्यम के रूप में विकसित कर लिया है कि यह समकालीन युग, उनकी संवेदित चेतना के द्वारा अपने विवेक, अपने मानव प्रेम, अपने सौन्दर्यबोध और अपने मर्म को अभिव्यक्त कर रहा है।
विनियोजन की इस सूक्ष्म और जटिल प्रक्रिया और उससे उत्पन्न वेदना को कवि भली भांति जानता है। शेषेन्द्र शर्मा जैसे एक वयस्क कवि की रचनाएं पढ़ने को मिलीं। एक ऋषि व्यक्तित्व का साक्षात्कार हुआ। आप भी इस विकसित व्यक्तित्व के पीयूष का पान कीजिए और आगामी उषा के लिए हिल्लोलित हो जाइए।
-डॉ. विश्वम्भरनाथ उपाध्याय (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)