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भारत की हर मां और बेटी की पुकार

भारत की हर मां और बेटी की पुकार
* जैसे कोई उदास लौट जाए दरवाजे से
 
दिनांक 12 जनवरी 2018 को वाणी प्रकाशन से प्रकाशित चर्चित युवा लेखिका और आलोचक ज्योति चावला की नई पुस्तक 'जैसे कोई उदास लौट जाए दरवाजे से' का लोकार्पण विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन के स्टॉल हॉल 12ए (338-353) पर 3 बजे आयोजित किया गया।
 
ज्योति चावला का यह कविता संग्रह स्त्रीवाद के तीसरे चरण की 2 विशिष्ट प्रपत्तियां उजागर करता है। यहां स्त्री-देह और स्त्री-अनुभूति से जुड़े नितांत नए आख्यान हैं और स्त्री लैंस से जीवन जगत की बृहत्तर विडंबनाएं भी यहां उत्कट अग्निधर्मिता के साथ परखी गई हैं।
 
ज्योति चावला की कविताओं में स्त्रियों की चिंता एक नए रूप में है। यहां स्त्री मां है, बेटी है, जवान लड़की है, अधेड़ है। परंतु कुल मिलाकर यहां हर रूप में स्त्रियां अपने पूरे वजूद में हैं, जो अपने अंदाज में स्त्री-विमर्श का नया पाठ है। इन कविताओं की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां स्त्रियां जिन कारणों से इतिहास में हाशिये में रहती आई हैं, उन्हीं कारणों से वे यहां मजबूत चरित्र के रूप में हैं। ये स्त्रियों की अस्मिता के गर्व की कविताएं हैं। यहां स्त्रियों का दु:ख है, सुख है, संघर्ष है।
 
ज्योतिजी की कविताओं को समझने के लिए उनके दोनों कविता संग्रहों को एक अन्विति में रखकर देखना होगा, क्योंकि ये कविताएं एक प्रक्रिया की कविताएं हैं। एक स्त्री की प्रक्रिया की कविताएं कि कैसे उसके जीवन में बदलाव होता है और कैसे वह बदलाव उसकी चिंतन प्रक्रिया में दिखाई देता है। इस प्रक्रिया को देखना-समझना अवांतर से अपने समय और समाज को समझना है।
 
वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने ज्योति चावला को बधाई देते हुए कार्यक्रम की शुरुआत की और कहा कि स्त्री स्वभाव में नहीं है कि केवल पुरुषों का विरोध किया जाए। उसके अलावा भी बहुत कुछ है, जो ज्योति चावला अपने अनुभवों को आप अपनी कविता में शामिल करती आई हैं।
 
चर्चित कवयित्री अनामिकाजी ने कहा कि जब कविता में कथ्य और शिल्प अलग न किया जा सके तो कविता में एक बड़ा मूर्त उभरता है और एकसाथ कई प्रसंग कहने आते हैं। स्त्री जीवन के बाहर की समस्या भी स्त्री लैंस से देखें तो यह एक महत्वपूर्ण संग्रह ही होगा।
 
वरिष्ठ आलोचक विनोद तिवारी ने कहा कि ज्योति चावला का काव्य संग्रह क्षमता पर कोई आवरण नहीं है। उन्होंने जो अपनी कविताओं में कहा है, वह भाव के धरातल पर पूर्णत: उभरा है।
 
चर्चित कवि निलय उपाध्याय ने कहा कि आप अपनी आत्मा के प्रकाश में देखें तो कविताएं आत्मा हैं।
 
वाणी प्रकाशन 55 वर्षों से 32 विधाओं से भी अधिक में बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। इसने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गांवों, 2,800 कस्बों, 54 मुख्य नगरों और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। वाणी प्रकाशन भारत की प्रमुख पुस्तकालय प्रणालियों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य-पूर्व से भी जुड़ा हुआ है।
 
वाणी प्रकाशन की सूची में साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 32 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। संस्था को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, इंडोनेशियन लिटरेरी क्लब और रशियन सेंटर ऑफ आर्ट कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो-स्वीडिश, रशियन और पोलिश लिटरेरी सांस्कृतिक विनिमय विकसित करने का गौरव प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में भारतीय प्रकाशकों के संघ द्वारा प्रतिष्ठित 'गण्यमान्य प्रकाशक पुरस्कार' भी प्राप्त किया है।
 
लंदन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को वातायन सम्मान तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक व वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में एक्सीलेंस अवॉर्ड से नवाजा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन 2 पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
 
हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है। 3 मई 2017 को नई दिल्ली के 'विज्ञान भवन' में 64वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा 'स्वर्ण कमल-2016' पुरस्कार 'लता : सुर-गाथा' पुस्तक बतौर प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया।
 
भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन ने राजधानी के श्रेष्ठ पुस्तक केंद्र ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम-श्रृंखला की शुरुआत की है जिनमें 'हिन्दी महोत्सव' उल्लेखनीय है।
 

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