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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मोरारजी रणछोड़जी देसाई पर हिन्दी में निबंध

मोरारजी रणछोड़जी देसाई पर हिन्दी में निबंध
Morarji Desai Profile
जीवन परिचय : मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली में हुआ था। इनके पिता का नाम रणछोड़जी देसाई व माता का नाम मणिबेन था। अपने कॉलेज जीवन से महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं का उनके जीवन पर काफी प्रभाव रहा।
 
 
राजनीतिक जीवन : 1930 में मोरारजी देसाई ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। 1931 में वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव निर्वाचित हुए। अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की शाखा स्थापित कर सरदार पटेल के निर्देश पर वे उसके अध्यक्ष बन गए। 
 
मोरारजी को 1932 में 2 वर्ष की जेल भी भुगतनी पड़ी। 1952 में इन्हें बंबई (अब मुंबई) का मुख्यमंत्री बनाया गया। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को 1967 में उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया।
 
 
1977 में मिला प्रधानमंत्री पद : नवंबर 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) का साथ छोड़कर कांग्रेस (ओ) में चले गए। वे 1975 में जनता पार्टी में शामिल हो गए। जब मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया। 
 
उस समय प्रधानमंत्री पद के दो और दावेदार चौधरी चरणसिंह और जगजीवनराम भी थे। लेकिन जयप्रकाश नारायण ने 'किंगमेकर' की भूमिका का लाभ उठाते हुए देसाई का समर्थन कर दिया था। तत्पश्चात 24 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारतीय प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया और 28 जुलाई 1979 तक वे इस पद पर रहे। मोरारजी भाई देसाई भारत के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया था। 
 
कांग्रेस में रहते समय श्रीमती इंदिरा गांधी से उनके हमेशा वैचारिक मतभेद रहे। मोरारजी रणछोड़जी देसाई एक गांधीवादी विचारधारा के राजनेता थे। वे इंदिरा गांधी की सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इंदिराजी से मतभेद होने पर वे सरकार से बाहर हो गए। 
 
पुरस्कार और सम्मान : इन्हें भारत सरकार की ओर से 'भारत रत्न' तथा पाकिस्तान की ओर से 'तहरीक-ए-पाकिस्तान' का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ है। मोरारजी देसाई गांधीवादी नीति के परम समर्थक माने जाते थे, लेकिन इस नीति में इन्होंने क्षमाभाव को कभी स्वीकार नहीं किया था। वे अध्यात्मवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति भी थे।


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