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Book Review: एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए वंदना पाण्‍डेय का कविता संग्रह ‘मन के मनके’

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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022 (18:48 IST)
कविताएं भीड़ में खड़े हुए आदमी को भीड़ से अलग कर देती हैं। कवि वहां होकर भी नहीं होता, जहां वो आमतौर पर नजर आता है। यही कविताओं का जादू या कहें चमत्‍कार है। वंदना पाण्‍डेय का कविता संग्रह मन के मनके के पन्‍ने- पन्‍ने से गुजरते हुए कुछ ऐसा ही अहसास होता है।

वंदना पाण्‍डेय मध्‍यप्रदेश शासन के संस्‍कृति विभाग में उप संचालक के पद पर सेवाएं दे रहीं हैं, जाहिर है उनका ज्‍यादातर वक्‍त सरकारी दफ्तर में ही गुजरता होगा, लेकिन उनका मन कविताओं के साथ हिलोरे खाता है। वो कविताओं में कितना रचीं बसीं हैं, यह उनका काव्‍य संग्रह पढ़ते हुए महसूस होता है।

उनके जीवन की हर परिस्‍थिति, हर घटना और हर एक अनुभव से कविताओं ने जन्‍म लिया है। कई बार उनकी कविताएं परिस्‍थिति से तो कई बार स्‍मृति से उपजती हुई नजर आती हैं। इस काव्‍य संग्रह में जन्‍म है तो वहीं अटल सत्‍य मृत्‍यु का बोध भी है। घर और मकान के बीच का भेद है तो बचपन में कहीं छूट चुके आंगन का दर्द भी छलकता है। लगातार रूप बदलती हुई जिंदगी का दंश है तो जीवन की क्षणभंगुरता की गंध के साथ वे यह भी दर्ज करती हैं कि जिंदा होने का भरम बस पल रहा है

वंदना पाण्‍डेय अपनी कविताओं में अपने आसपास के हर विषय, हर बिंब को दर्ज कर लेना चाहती हैं। इसीलिए अपनी एक कविता ‘सन्‍नाटा’ में लिखती हैं,सोचती हूं अभी कल तक जो आवाजें थीं चारों ओर वो कहां गईं, अब क्‍यों सुनाई नहीं देती, उठो इतनी देर सोते हैं क्‍या...

इस कविता में वे अपनी रोजमर्रा की आवाजों को मिस करती हैं। और बेहद सरलता से इतनी गहरी बातें बयां कर देती हैं। उनकी कविता में मौसम है तो मौसम के बरक्‍स सारे तीज त्‍यौहारों को भी वे याद करती हैं। खुशी के क्षण जन्‍मदिन को भी वे बेहद गहनता से महसूस करती और उसके गहरे अर्थों को खोजने की कोशिश करती हैं। वे जन्‍मदिन शीर्षक से लिखी कविता में लिखती हैं... 
लो फिर आ गया मेरा जन्‍मदिन
फिर से कट गया एक पूरा साल
किसी की याद में
किसी के प्‍यार में
किसी की परवाह में

वो अपनी कविताओं में भरोसा भी जताती है और आशा भी करती है। उनकी कविताओं में पौराणिक खुश्‍बू भी महक उठती है जब वे राम, राधा और द्रोपदी के जीवन पर रोशनी डालना नहीं भूलती। एक तरफ प्रेम और स्‍मृति को अंकित करती हैं उनकी कविताएं तो दूसरी तरफ आती हुई मृत्‍यु से दो- दो हाथकर उससे नहीं डरने का साहस भी जगाती हैं। तो कभी प्रेम में याद की पराकाष्‍ठा पर पहुंच कर लिखती हैं कि तुम्‍हें कभी भूली ही नहीं तो याद कैसे किया जाए।

वंदना पाण्‍डेय का यह काव्‍य संग्रह जीवन के कई आयामों, परिस्‍थतियों, विडंबनाओं और कोलाज है। उनकी कविताओं को पढकर लगता है कि वे जीवन को कितना विस्‍तार और व्‍यापक दृष्‍टि से देखती हैं।

अमित प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित होकर आई 100 रूपए मूल्‍य की यह किताब कविताओं के सैकडों बिंब अपने में समेटे हुए हैं। हर पाठक को कम से कम एक बार कविता की इस यात्रा से गुजरना चाहिए।
किताब : मन के मनके
लेखक : वंदना पाण्‍डेय
प्रकाशन : अमित प्रकाशन
कीमत : 100 रुपए

edited by navin rangiyal

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