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Sanskrit non translatable: ‘संस्‍कृत’ भाषा को खत्‍म करने के प्रयास के विरुद्ध आंदोलन होगी यह किताब

Sanskrit non translatable: ‘संस्‍कृत’ भाषा को खत्‍म करने के प्रयास के विरुद्ध आंदोलन होगी यह किताब
, मंगलवार, 3 नवंबर 2020 (18:59 IST)
6 नवंबर को होगा संस्कृत नॉन-ट्रान्सलेटेबल्स: द इम्पोर्टेंस ऑफ़ संस्कृटाइसिंग इंग्लिश किताब का लोकार्पण

राजीव मल्‍होत्रा और सत्यनारायण दास बाबाजी की संस्‍कृत शब्‍दों पर शोधपरक किताब संस्कृत नॉन-ट्रान्सलेटेबल्स का लोकार्पण 6 नवंबर शाम साढ़े 5 बजे होगा। लोकार्पण आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि डॉ विजय भाटकर (कुलपति, नालंदा विश्वविद्यालय), संत स्वामी गोविंद देव गिरि महाराज (श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी और कोषाध्यक्ष) और मोहन भागवत (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक) होंगे। तुहीन सिन्हा लेखकों से संवाद करेंगे।

किस बारे में है किताब?
संस्कृत नॉन-ट्रांसलेटेबल्स अंग्रेज़ी भाषा के संस्कृतकरण और इसे शक्तिशाली संस्कृत शब्दों से समॄद्ध करने का एक मार्गदर्शक और साहसिक प्रयास है। अंग्रेज़ी पाठकों के लिए यह अंग्रेज़ी में संस्कृत के मिश्रित किए जाने का विरोध करने वाले आंदोलन का प्रारंभिक बिंदु होना चाहिए, अनुवाद के बिना अपनी अंग्रेज़ी शब्दावली में उधार के शब्दों का चलन शुरू करने के लिए यह पुस्तक मिश्रित किए जाने की प्रक्रिया का एक संपूर्ण ढांचा प्रस्तुत करती है और अपने मूल विचारों को अंग्रेजी में अनुवाद करने के कारण संस्कृत भाषा के लिए अधिकार के नुक़सान का परीक्षण करती है।

इस पुस्तक के जरिए शुरू होने वाला आंदोलन इसका विरोध करेगा और उन कार्यक्रमों को रोक देगा, जो इसे निरर्थक बनाने के लिए इसके समस्त ख़ज़ाने का अनुवाद करके संस्कृत को मृत भाषा में बदलना चाहते हैं। इसमें विभिन्न शैलियों में 54 गैर-अनुवाद योग्य शब्दों पर चर्चा की गई है, जिनका आमतौर पर सही अनुवाद नहीं किया जाता है। यह अंग्रेज़ी बोलने वालों को ज्ञान के साथ सशक्त बनाती है और इन संस्कृत शब्दों को अपनी दैनिक बोलचाल में आत्मविश्वास के साथ पेश करने के लिए तर्क देती है। इस पुस्तक से भारतीय संस्कृति का प्रत्येक प्रेमी लाभान्वित होगा और रोज़मर्रा के विचार विनिमय के जरिए इसका प्रचार करने वाला एक सांस्कृतिक राजदूत बनेगा।

यह पुस्तक संस्कृत पढ़ाने के लिए नहीं है। यह कई संस्कृत शब्दों के अंग्रेज़ी में अपर्याप्त अनुवाद की व्याख्या करने की कार्य करती है, जिसका कि आम चलन है। यह पुस्तक ऐसे कई संस्कृत शब्दों को रेखांकित करती है जो शिथिल और बिना सोच-विचार के अंग्रेजी में अनुवादों से बदल दिए जाते हैं और दिखाती है कि इन शब्दों के गूढ़ और गहन निहितार्थ कैसे खोते जा रहे हैं। हालांकि मुख्य रूप से अंग्रेज़ी बोलने वाले/पाठक के लिए लक्षित इन चर्चाओं में से कई देशी भारतीय भाषाओं में इन अंग्रेज़ी शब्दों के उपयोग का विरोध करने के लिए भी प्रासंगिक हैं।


लेखकों के बारे में
राजीव मल्होत्रा उन समकालीन मुद्दों के एक विश्वविख्यात शोधकर्ता, लेखक, वक्ता और सार्वजनिक बुद्धिजीवी हैं जो कि सभ्यताओं, आध्यात्मिकता और विज्ञान से संबंधित हैं।राजीव ने 1994 में प्रिसंटन (अमेरिका) में इनफ़िनिटी फ़ाउंडेशन की स्थापना की और दुनिया भर के विचारकों को प्रभावित करते हुए अनगिनत क्षेत्रों में मौलिक शोध किया है। राजीव की रचनाओं में द बैटल फ़ॉर संस्कृत, ब्रेकिंग इंडिया, बीइंग डिफ़रेंट, इंद्रा’ज नेट और एकेडमिक हिंदूफ़ोबिया शामिल हैं।
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सत्यनारायण दास बाबाजी, पीएचडी, एक वैष्णव विद्वान और अनुयायी हैं। वह जीवा वैदिक इंस्टीटयूट ऑफ़ वैदिक स्टडीज के संस्थापक हैं, जो शिक्षा के माध्यम से वैदिक संस्कृति, दर्शन और आयुर्वेद को बढ़ावा देता है।

उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन से संबंधित पंद्रह पुस्तकें लिखी हैं और कुछ प्रतिष्ठित जर्नल्स में उनकी कई महत्त्वपूर्ण रचनाएं छपी हैं। उन्हें भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी द्वारा दुनिया में वैदिक संस्कृति को फैलाने में उनके असाधारण योगदान के लिए सम्मानित किया गया है।
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प्रकाशक के बारे में : अमरिलिस मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भारत का एक साहित्यिक उपन्यास और गैर-औपन्यासिक इम्प्रिंट है। यह दुनिया भर की श्रेष्ठ कृतियों को पाठकों के लिए प्रस्तुत करता है। यह महत्त्वपूर्ण साहित्यिक पाठक और लेखक को लक्षित करता है जो कि अब तक अछूते रहे हैं।

हमारे लेखकों में प्रमुख भारतीय लेखक जैसे अशोक के बैंकर, दीप्ति नवल, सुषमा सेठ, सुधींद्र कुलकर्णी, जसवंत सिंह, किरण मनराल, रूपा गुलाब, सत्यार्थ नायक, राजीव मल्होत्रा, निधि चापेकर, अंदलीब वाजिद और कई और लेखक शामिल हैं।

अमरिलिस पाठकों के लिए उच्चतम गुणवत्ता की पुस्तकें प्रकाशित करता है, जिन्हें असाधारण उत्पादन मानकों के साथ सुरुचिपूर्ण ढंग से डिज़ाइन किया जाता है।

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