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दद्दू का दरबार : सवारी दो नावों की

एमके सांघी
प्रश्न : दद्दू जी, देश के कई बड़े राजनेता जिन्हें अपने चयनित चुनाव क्षेत्र से जीत का भरोसा नहीं होता अक्सर दो चुनाव क्षेत्रों से नामांकन दाखिल कर चुनाव लड़ते हैं ताकि किसी एक क्षेत्र के मतदाता उन्हें नकार दें तो दूसरे क्षेत्र से जीत की संभावना बनी रहे। दोनों क्षेत्रों से जीत की स्थिति में उन्हें एक सीट छोड़नी पड़ती है। छोड़ी गई सीट पर उपचुनाव होता है जिसमें करदाताओं के धन तथा सरकारी संसाधनों का अपव्यय तो होता ही है साथ में सरकार के कर्मचारियों व मतदाताओं के समय का समय भी दोबारा नष्ट होता है। आखिर नेताजी के विश्वास की कमी की कीमत देश क्यों चुकाएं। क्या इस प्रवृत्ति तथा नुकसान को रोकने का कोई उपाय हो सकता है? 
 
उत्तर : बहुत ही अच्छा और सामायिक प्रश्न पूछा है आपने। इस नुकसान को रोकने के कई तरीके हो सकते हैं। सबसे अच्छा उपाय तो यह होगा कि जनता ऐसे नेता को दोनों सीटों से चुनाव हरा दें। ना किसी उपचुनाव का टंटा रहेगा और न ही किसी नुकसान का। दूसरे तरीके के अनुसार यदि कोई नेता दो चुनाव क्षेत्रों से चुनाव जीतकर एक सीट खाली करता है तो यह नियम बना दिया जाए कि उपचुनाव में उस सीट छोड़ने वाले नेता की पार्टी अपना प्रत्याशी खड़ा नहीं कर सकें यानी सीधे-सीधे एक सीट की हानि। ऐसा नियम बन जाने के बाद दो बार सोचेंगे नेता दो सीटों से चुनाव लड़ने के लिए। तीसरा तरीका यह भी हो सकता है कि खाली की गई सीट पर उस प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया जाए, जो प्राप्त वोटों के आधार पर दूसरे स्थान पर रहा हो। तरीके और भी कई हो सकते हैं पर एक बात तय है कि दो नावों में सवारी करने वाले को गिरना ही चाहिए।  
 

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