Father's Day 2024:16 जून 2024 रविवार को फादर्स डे/ पितृ दिवस मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष जून महीने के तीसरे रविवार को यह दिवस मनाया जाता है। पिता हर बच्चे के लिए उनके आदर्श होते है, क्योंकि वे एक पिता में वे सारी योग्यताएं मौजूद हैं जो एक श्रेष्ठ पिता में होती हैं। आओ जानते हैं पुराणों में पिता के संबंध में क्या लिखा है।
1.
पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता हि परमं तप:।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वा: प्रीयन्ति देवता:।।
उपाध्यायान्दशाचार्य आचार्याणांशतं पिता।
सहस्त्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते।।
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत।।
माता शत्रु: पिता वैरी ये न बालो न पाठित:।
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा।।
2.
जनिता चोपनेता च, यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता, पंचैते पितरः स्मृताः॥- चाणक्य नीति।
अर्थ: इन पांच को पिता कहा गया हैः जन्मदाता, उपनयन करने वाला, विद्या देने वाला, अन्नदाता और भयत्राता।
3.
न तो धर्मचरणं किंचिदस्ति महत्तरम्।
यथा पितरि शुश्रूषा तस्य वा वचनक्रिपा॥- वाल्मीकि (रामायण, अयोध्या काण्ड)।
अर्थ: पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है।
4.
ज्येष्ठो भ्राता पिता वापि यश्च विद्यां प्रयच्छति।
त्रयस्ते पितरो ज्ञेया धर्मे च पथि वर्तिनः॥- वाल्मीकि (रामायण, किष्किन्धा काण्ड)।
अर्थ: बड़ा भाई, पिता तथा जो विद्या देता है, वह गुरु है- ये तीनों धर्म मार्ग पर स्थित रहने वाले पुरुषों के लिए पिता के तुल्य माननीय हैं।
5.
दारुणे च पिता पुत्रे नैव दारुणतां व्रजेत्।
पुत्रार्थे पदःकष्टाः पितरः प्राप्नुवन्ति हि॥- हरिवंश पुराण (विष्णु पर्व)।
6.
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्।।
भावार्थ - जो पुत्र नित्य माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम और उनकी सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चारों वृद्धि होती हैं।
7.
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता ।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत् ॥
भावार्थ- माता का स्थान सभी मनुष्यों के लिए सम्पूर्ण तीर्थों के सामान हैं और पिता सभी देवताओं का स्वरूप है। इसलिए सभी मनुष्यों का यह परम कर्तव्य है कि वह माता-पिता का सम्मान ,सत्कार और सेवा करें।
8.
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः ।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम् ।।
भावार्थ- जो पुत्र माता- पिता का पूजन करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे निश्चित रूप से पृथ्वी परिक्रमा जनित (समान) फल प्राप्त हो जाता है ।
9.
भूमेः गरीयसी माता, स्वर्गात उच्चतरः पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी ।।
10.
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः।।
भावार्थ- तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बंधु हो और तुम ही मित्र हो। तुम ही विद्या हो, तुम ही द्रव्य (धन) हो, तुम ही मेरा सब कुछ हो, मेरे देवता हे देव।