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किसान आंदोलन के 30 दिन, कहीं गोलगप्पे का लंगर तो कहीं टैटू का अनोखा अंदाज, दिल जीत लेगी ये अनसुनी कहानियां...

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शनिवार, 26 दिसंबर 2020 (12:00 IST)
नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान पिछले 30 दिन से डटे हुए हैं। किसान आंदोलन दिल जीत लेगी यह अनसुनी कहानियां...

गोलगप्पे खरीद कर शुरू किया लंगर
अग्निशमनकर्मी सुरेंद्र कंबोज और उनके मित्रों ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के सिंघू बार्डर पर किसानों के प्रदर्शनस्थल पर 25 दिसंबर को देखा कि एक बच्चा गोल गप्पा खाना चाहता था लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। वहीं, गोल गप्पा बेचने वाले की बिक्री नहीं हो पा रही थी क्योंकि लोग लंगर में खा रहे थे।
 
उन्होंने बिक रहे गोल गप्पों के पास एक बच्चे को घूमते हुए देखा। कंबोज ने बच्चे से पूछा कि उसे क्या चाहिए। कंबोज (33) के अनुसार उस बच्चे ने बताया कि उसे गोल गप्पे चाहिए लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। इसके बाद जो हुआ उससे वह बालक और किसान चकित रह गए।
 
 
कंबोज और रनिया अग्निशमन केंद्र में कार्यरत उनके अन्य मित्रों ने गोल गप्पे बेचने वाले से उसका पूरा स्टॉक खरीद लिया और वहीं गोल गप्पा लंगर शुरू कर दिया।
 
कंबोज के सहकर्मी रवींद्र कुमार ने कहा, ‘गोल गप्पे बेचने वाले ने कुछ भी नहीं कमाया था क्योंकि लोग लंगरों (सामुदायिक रसोई) में खाना खा रहे हैं। उसने अपना स्टॉक बेच दिया और हमें सेवा करने का मौका मिला। यह हर किसी के लिए लाभ की स्थिति थी।‘
 
यह गोल गप्पा विक्रेता मोहम्मद सलीम के लिए भी क्रिसमस का चमत्कार था। सलीम ने कहा कि कंबोज ने उन्हें 1,000 रुपए दिए जो उम्मीद से अधिक थे। सलीम ने पिछले तीन दिनों में सिर्फ 500 रुपए कमाए थे।
 
एक अन्य अग्निशमन कर्मी दविंदर सिंह ने कहा, ‘हम सभी के पास अपने गांवों में खेती की जमीन है। हम सभी किसान हैं।‘
 
सिंघु बॉर्डर पर टैटू से अनोखे अंदाज में विरोध दर्ज करवा रहे हैं युवा :   केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों के नारों, तालियों और भाषणों के शोर के बीच एक स्टॉल ऐसा हैं, जहां कृषि विषय पर टैटू बनाए जा रहे हैं और लोग अलग-अलग नारों वाले टैटू बनवाकर अनोखे अंदाज में अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं।
 
टैटू टीम के मुखिया चेतन सूद सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे एक सिख युवक की बांह में टैटू को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं और कहते हैं कि यह संदेश देने का एक तरीका है कि आम आदमी भी किसानों के साथ है। सूद कहते हैं कि टैटू बनाने के काम में माहिर उनके 5 सहयोगी भी इस आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते थे और उन्होंने उसी तरह से योगदान देने का निर्णय किया जिसमें वे लोग महिर हैं। लुधियाना से ये लोग 18 दिसंबर को शुक्रवार सुबह अपने साजोसामान के साथ दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पहुंचे।
 
टैटू की विषयवस्तु कृषि है जिसमें फसल काटते किसान, कृषि यंत्रों के साथ किसान आदि चित्र बनाए जा रहे हैं। इनके अलावा 'कर हर मैदान फतह', 'निश्चय कर अपनी जीत करो', 'निर्भय निर्वैर' जैसे प्रेरक नारे भी लिखे जा रहे हैं। सूद बताते हैं कि ये स्थायी टैटू हैं और प्रत्येक की कीमत कम से कम 3,500 रुपए है। सूद और उनके दल का लक्ष्य 3 दिन में करीब 200 टैटू बनाना है और वह भी नि:शुल्क। उन्होंने बताया कि एक टैटू बनाने में करीब 30 मिनट लगते हैं।
 
होशियारपुर के धीरपाल सिंह (33) ने अपनी बांह में ट्रैक्टर बनवाया है और वे कहते हैं कि इससे वाकई यहां युवाओं में और जोश बढ़ने वाला है। इनके पास ही एक चिकित्सा शिविर लगा है, जहां लोगों को 'प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने' वाली दवाएं दी जा रही हैं। बाबा बलविंदरजी धर्मार्थ ट्रस्ट ने यह शिविर लगाया है। होशियारपुर जिले से आए डॉ. अश्विनी कुमार ने बताया कि इनमें मल्टीविटामिन, जिंक और आयरन की दवाएं शामिल हैं। 
 
सत्संग नहीं, आंदोलन का लंगर 
आंदोलन के शुरुआती दौर में अपने भोजन के लिए किसान मिल बांटकर सहयोग कर रहे थे, लेकिन अब चूंकि तादात ज्‍यादा हो गई है तो मशीनों की मदद ली जा रही है।
 
किसान आंदोलन के दृश्‍य देखने पर ऐसा लगता है कि मानों कोई सत्‍संग का डेरा लगा हो। जहां सेवादारों के भोजन प्रसादी के लिए लंगर चलाए जा रहे हैं, यह सही है कि भोजन बनाने और खाने के लिए लंगर चल रहे हैं, लेकिन यह कोई सत्‍संग नहीं बल्‍की किसान आंदोलन में हो रहा है।
 
रोटी बनाना हो या फि‍र चावल पकाना हो, सबकुछ मशीनों से हो रहा है। लंगरनुमा इस आंदोलन में मशीनों से एक दिन में करीब 30 हजार से ज्‍यादा रोटियां तैयार हो रही हैं।
 
इसके अलावा 7 क्विंटल चावल भी रोज पकाए जा रहे हैं। लंगर में सबसे ज्‍यादा पनीर की सब्जी बनाई जा रही है क्‍योंकि इसकी मांग ज्‍यादा है।
 
मीडि‍या रिपोर्ट के मुताबि‍क आलम यह है कि आंदोलन में लगाए गए लंगर में रोजाना करीब 45 से 50 हजार किसान खाना खा रहे हैं। ये लंगर गुरदासपुर के एक गुरुद्वारे द्वारा लगाया जा रहा है।
 
यहां का शैड्यूल भी बि‍ल्‍कुल तय है। रोज सुबह 4 बजे चाय के साथ शुरुआत होती है। चाय में रोज 100 लीटर दूध लग रहा है। चाय के साथ नाश्‍ते में पकोड़े तैयार किए जाते हैं। जानकारी के मुताबिक इसमें करीब 50 किलो बेसन लग जाता है। दोपहर में खाने की व्‍यवस्‍था होती है। लंगर में भेाजन करने का यह सिलसिला देर रात तक चलता है।
 
रोटी बनाने की मशीन के जरिए 7 क्विंटल आटा में 30 हजार से ज्यादा रोटियां तैयार हो रही हैं। वही 7 क्विंटल चावल भी रोज पकाया जा रहा है। दाल और चावल पकाने के लिए स्टीमर बायलर लगा दिए गए हैं। महज 20 से 25 मिनट में दो से ढाई हजार लोगों के लिए दाल और सब्जी तैयार हो जाती है।
 

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