मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या देश में लगभग एक साल से चल रहा किसान आंदोलन खत्म होगा। किसानों आंदोलन के भविष्य को लेकर 'वेबदुनिया' लगातार संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों से बात कर रहा है।
'वेबदुनिया' से बातचीत में किसान नेता योगेंद्र यादव कहते है कि गुरु नानक जयंती के अवसर पर सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का जो फैसला किया है वह देश के लाखों करोड़ों किसानों के संघर्ष का नतीजा है। किसान आंदोलन में जिन सात सौ से अधिक किसानों ने बलिदान दिया है यह फैसला उनको सच्ची श्रद्धांजलि है।
योगेंद्र यादव आगे कहते है कि अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। किसानों का यह आंदोलन न केवल तीन काले कानूनों को निरस्त करने के लिए है, बल्कि सभी कृषि उत्पादों और सभी किसानों के लिए लाभकारी मूल्य की कानूनी गारंटी के लिए भी है। किसानों की यह अहम मांग अभी बाकी है। इसी तरह बिजली संशोधन विधेयक को भी वापस लिया जाना बाकी है।
कृषि कानूनों की वापसी किसानों की एक ऐतिहासिक जीत है। किसानों ने बता दिया है कि उसे इतिहास के कूड़े में नहीं डाला जा सकता। आज अहंकार का सिर नीचा हुआ है, वह सरकार जो संविधान की बात नहीं सुनती थी, कानूनों की बातें सुनती थी इंसानियत को नहीं देखती थी, किसान के दुख-सुख को देखने और सुनने को नहीं तैयार थी अंततः उसे किसान की हिम्मत के आगे झुकना पड़ा।
कृषि कानूनों की वापसी के मोदी सरकार क फैसले को योंगेद्र यादव कहते हैं कि चुनाव के कारण ही लोकतंत्र की जीत हुई है औऱ सरकार ने काले कृषि कानूनोंं को वापस लिया है। लेकिन यह जीत अभी अधूरी है, हमारी दो बड़ी मांगी थी तीनों कृषि कानूनों को खत्म किया जाए, साथ ही हमने कहा था कि हमें अपनी मेहनत का पूरा दाम मिले जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से संभव है।
वह कहते है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने MSP गारंटी की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र ने खुद गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए निभाई थी। आज देश का किसान पूछ रहा है कि हमें हासिल किया हुआ, किसानों का संघर्ष जारी रहेगा।