Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से चर्चा में आए WORSHIP ACT 1991 को आखिर क्यों बनाया गया था?

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से चर्चा में आए WORSHIP ACT 1991 को आखिर क्यों बनाया गया था?
webdunia

विकास सिंह

, मंगलवार, 17 मई 2022 (12:15 IST)
काशी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर मामले में कोर्ट के आदेश पर सर्वे का काम पूरा हो गया है। सर्वे के आखिरी दिन शिवलिंग मिलने के हिंदू पक्ष के दावे के बाद अब सबकी निगाहें सर्वे रिपोर्ट पर टिक गई है जो अब कोर्ट में पेश होगी। ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने की खबरों के बाद कोर्ट ने संबंधित स्थान को सील करने का आदेश दिया है।

स्थानीय कोर्ट के आदेश को लेकर AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठा दिए है। उन्होंने कोर्ट के आदेश को 1991 में बने कानून का उल्लंघन करार दिया है। ओवैसी ने कहा कि एक्ट इसलिए बना कि किसी भी मजहब के मंदिर मस्जिद के नेचर और करैक्टर में कोई बदलाव न किया जाए। ओवैसी लगातार कह रहे है ज्ञानवापी मस्जिद थी, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी। वह स्थानीय कोर्ट के सर्वे के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात भी कह रहे है। ऐसे में लोगों में मन में सवाल है कि आखिरी 1991 का वो कौन सा एक्ट है जिसकी दुहाई ओवैसी लगातार दे रहे है। 
 
क्या है 1991 का एक्ट?-1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने देश के पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए एक कानून प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 (THE PLACES OF WORSHIP ACT, 1991) बनाया था, जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 के बाद देश में किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदला नहीं जाएगा। एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 जैसी स्थिति हर धार्मिक स्थल की रहेगी इसके मुताबिक अगर 15 अगस्त 1947 को कहीं मंदिर है तो वो मंदिर ही रहेगा और कहीं मस्जिद है तो वो मस्जिद ही रहेगी। 
 
क्यों बनाया गया था 1991 का एक्ट?-प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (THE PLACES OF WORSHIP ACT, 1991) बनाने का मूल उद्देश्य अलग-अलग धर्मों के बीच टकराव को टालने का था। जब यह एक्ट बनाया गया था तब देश में रामजन्मभूमि विवाद पूरे चरम पर था और देश के अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा था।  

राममंदिर आंदोलन को कई दशकों तक कवर करने वाले  वरिष्ठ पत्रकार और कानूनविद् रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि 1991 में जब राममंदिर आंदोलन अपने पूरे उफान पर था तब केंद्र सरकार ने एक कानून बनाया था जिसमें कहा गया है 15 अगस्त 1947 को देश में धर्मिक स्थलों की जो स्थिति थी उसको बदला नहीं जाएगा। इस कानून का मुख्य कारण यह था कि उस वक्त ‘अयोध्या तो बस झांकी है,काशी मथुरा बाकी है’ और अयोध्या के बाद मुथरा-काशी की बारी  जैसे नारे जोर-शोर से लग रहे थे। ऐसे में टकराव टालने के लिए केंद्र सरकार ने यह एक्ट बनाया था।  
 
ओवैसी क्यों कोर्ट के फैसले पर उठा रहे सवाल?-1991 का एक्ट बनने का बाद यह साफ हो गया था कि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा सभी धर्म के धार्मिक स्थल फिर चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद हो या चर्च हो, उसके मूल स्वरूप को आजादी के बाद जैसा है वैसा ही रखा जाएगा। कानून में इस बात की उल्लेख है कि अगर किसी भी विवादित ढांचे के स्वरूप में बदलाव को लेकर कोई मामले कोर्ट में आता है तो उस मामले की सुनवाई जुलाई 1991 के बाद नहीं की जा सकती है, इस तरह के मामले को खारिज कर दिया जाएगा। 1991 में अयोध्या में राम मंदिर विवाद के समय बनाए गए एक्ट में अयोध्या के प्रकरण को इस लिए नहीं शामिल किया गया था क्योंकि अयोध्या का मामला पहले से कोर्ट में चल रहा था। 
 
1991 के एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती- 1991 में पीवी नरसिम्हाराव की सरकार के समय बनाए गए इस कानून को जून 2020 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से लगाई याचिका में कहा गया है कि 1991 का एक्ट हिंदू, जैन,सिख और बौद्धों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है। इन धर्मो के जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रांताओं ने तोड़ा है उन्हें फिर से बनाने के कानूनी रास्ते बंद करता है। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि 1991 का एक्ट धर्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दखल देता है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

जानलेवा गर्मी से बढ़ीं मौतें, राजधानी दिल्ली में पारा 49 डिग्री, असम में बाढ़ का प्रकोप