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300 साल पुरानी भोग प्रथा, 2014 में मिला GI टैग, अब प्रसाद में पशु चर्बी, क्‍या है Tirupati Controversy?

नवीन रांगियाल
Tirupati Mandir Controversy: आंध्र प्रदेश के विश्व प्रसिद्ध तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। टीडीपी प्रवक्ता अनम वेंकट रमण रेड्डी ने दावा किया कि प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की ओर से उपलब्ध कराए गए घी के नमूनों में गुजरात स्थित पशुधन प्रयोगशाला द्वारा मिलावट की पुष्टि की गई है। उन्होंने कथित लैब रिपोर्ट दिखाई, जिसमें दिए गए घी के नमूने में पशु की चर्बी, लार्ड (सूअर की चर्बी से संबंधित) और मछली के तेल की मौजूदगी का भी दावा किया गया है।

सबसे ज्‍यादा चौंकाने वाली बात है कि अब इसे लेकर एक और बड़ा खुलासा हुआ है। आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने तिरूपति मंदिर में लड्डू के मुद्दे को लेकर छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तिरुपति तिरुमाला मंदिर से 1 लाख लड्डू अयोध्या भी भेजे गए थे। जिन्‍हें भक्तों के बीच बांटा गया था।

कैसे शुरू हुआ विवाद : असल में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू एनडीए की एक बैठक में कहा था कि जो तिरुमाला लड्डू मिलता था, वो खराब क्वालिटी का होता था, वो घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल कर रहे थे। जब से टीडीपी की सरकार आई है, पूरी प्रक्रिया को साफ किया गया है और लड्डू को गुणवक्ता को सुधारा गया है।

क्‍या अयोध्‍या में बंटे लड्डू : रिपोर्ट में कहा गया है कि अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन 1 लाख लड्डू तिरुपति मंदिर से भेजे गए थे। इन लड्डुओं को अयोध्या में भक्तों के बीच बांटा गया था। जांच में ये बात भी सामने आई है कि तिरुपति मंदिर के प्रसाद में बीफ, सुअर की चर्बी और मछली का तेल मिलाया गया था। यह सब आंध्र प्रदेश की तत्कालीन जगनमोहन रेड्डी सरकार के कार्यकाल में हुआ था।

प्रसाद में कौन कौन सी चीजें होने का दावा : टीडीपी की ओर से जो रिपोर्ट पेश की जा रही है, उसमें कई चीज़ों की बात कही गई है। इसमें सोयाबीन, सूरजमुखी, कपास का बीज, नारियल जैसी चीजें लिखी हैं। मगर जिन पर आपत्ति जताई जा रही है, वो लार्ड, बीफ टेलो और फिश ऑयल है। लार्ड यानी किसी चर्बी को पिघलाने पर निकलने वाला सफेद सा पदार्थ। फिश ऑयल यानी मछली का तेल और बीफ टेलो यानी बीफ की चर्बी को गर्म करके निकाले जाने वाला तेल।

लैब रिपोर्ट में हुआ ये खुलासा : टीडीपी प्रवक्ता अनम वेंकट रमण रेड्डी ने दावा किया कि प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की ओर से उपलब्ध कराए गए घी के नमूनों में गुजरात स्थित पशुधन प्रयोगशाला द्वारा मिलावट की पुष्टि की गई है। उन्होंने कथित लैब रिपोर्ट दिखाई, जिसमें दिए गए घी के नमूने में पशु की चर्बी, लार्ड (सूअर की चर्बी से संबंधित) और मछली के तेल की मौजूदगी का भी दावा किया गया है। नमूने लेने की तारीख 9 जुलाई 2024 थी और लैब रिपोर्ट 16 जुलाई की थी।

कौन करता है मंदिर प्रबंधन : आंध्र प्रदेश सरकार या तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी), जो प्रसिद्ध श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर का प्रबंधन करता है, की ओर से हालांकि प्रयोगशाला रिपोर्ट पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई। वाईएसआरसीपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य वाई.वी. सुब्बा रेड्डी ने कहा कि नायडू के आरोपों से देवता की पवित्र प्रकृति को नुकसान पहुंचा है और भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंची है।

क्‍या सामने आया रिपोर्ट में : आंध्रप्रदेश के तिरुपति मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु जाते हैं। मंदिर जाने वाले लोगों को प्रसाद में लड्डू दिया जाता है। टीडीपी गुजरात की नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड यानी एनडीडीबी के हवाले से बता रही है कि लड्डू में जानवरों की चर्बी होने की पुष्टि हुई है। हालांकि एनडीडीबी ने इस पूरे विवाद पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि जो रिपोर्ट शेयर की जा रही है, उसमें भी इस बात का ज़िक्र नहीं दिखा है कि प्रसाद का सैंपल तिरुपति मंदिर का है। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में कहा, 'लड्डू और दूसरे प्रसाद बनाने के लिए जो घी इस्तेमाल होता है, वो वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के दौर में कई एजेंसियों से लिया गया था'

कैसे बनता है ये प्रसाद : इस प्रसाद के बारे में कहा जा रहा है कि यह एक स्पेशल किचन में बनता है। आंध्र प्रदेश में इसे Potu कहते हैं। वही प्रसाद बनाने की जिम्मेदारी भी एक खास वर्ग को दी जाती है, जो पिछली कई दशकों से बल्‍कि सदियों से इसी काम में लगे हुए हैं, यानी कि उन लोगों के लिए यह संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। ब़ड़ी बात यह है कि जो इस प्रसाद को बनाते हैं, उन्हें अपना सिर मुंडवाना पड़ता है, सिर्फ एक सिंगल कपड़ा पहनने की अनुमति रहती है। इस प्रसाद को बनाने के लिए घी के अलावा, चना बेसन, चीनी, चीनी के छोटे टुकड़े, काजू, इलायची, कपूर और किशमिश का उपयोग होता है। यह प्रसाद इतना खास है कि 2014 में इसे GI टैग भी मिल चुका है।

क्‍या और कितनी सामग्री लगती है प्रसाद में : इस प्रसाद को बनाने के लिए प्रतिदिन 400 से 500 किलो घी, 750 किलो काजू, 500 किलो किशमिश का इस्तेमाल होता है। इसमें काफी धन खर्च होता है जबकि क्वांटिटी भी बहुत ज्यादा होती है।

क्‍या है प्रसाद का इतिहास : बता दें कि भगवान वेंकटेश्वर को प्रसाद का भोग लगाने की प्रथा आज से 300 साल पुरानी है। तिरुपति में जो मंदिर है, वहां पर 1715 से ही भक्तों को लड्डू का प्रसाद दिया जा रहा है। यह एक ऐसी परंपरा है जो लगातार चली आ रही है, इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। जानकार मानते हैं कि इसी वजह से इस प्रसाद की अहमियत ज्यादा है। लेकिन अब एक बड़ी बात यह पता चली है कि इसी प्रसाद को लेकर विवाद पहले भी हुआ है। कई साल पहले एक शख्स ने शिकायत की थी, तब भी गुणवक्ता को लेकर ही सवाल उठा था।

नया नहीं है प्रसाद का बवाल : मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि 1985 में भी मंदिर के प्रसाद को लेकर विवाद हुआ था। तब कहा गया था कि अब प्रसाद को वैज्ञानिक पद्धति से बनाया जाएगा। असल में एक शख्स ने शिकायत की थी कि उन्होंने जो लड्डू खरीदे, उनमें फफूंदी और कील निकली। उस समय इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था, आंध्र प्रदेश की विधानसभा में जबरदस्त हंगामा भी देखने को मिला। अब एक बार फिर उसी प्रसाद को लेकर बवाल शुरू हो गया है। इसे हिंदू आस्था से जोड़कर भी देखा जा रहा है।

मचा सियासी बवाल : आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू के आरोप के बाद विवाद बढ़ गया है। विहिप ने इसे गंभीर मामला बताया है जबकि वाईएस शर्मिला ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की है। विहिप के अंतरराष्ट्रीय महासचिव बजरंग बागड़ा ने निष्पक्ष जांच की वकालत की। उन्होंने आगे कहा विश्व हिंदू परिषद पुरजोर मांग करती है कि इस घटना की पूर्णतः निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण से राजनीति का प्रवेश होता है। वहां गैर-हिंदू अधिकारियों की नियुक्ति से प्रसाद में मिलावट होती है इसलिए हम एक बार फिर मांग करते हैं कि हिंदू पूजा स्थल, मंदिर और तीर्थ स्थान सभी सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने चाहिए।

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