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बिरसा मुंडा की जयंती पर भाजपा ने उठाया आमू आखा हिंदू छे का मुद्दा, आदिवासियों को हिंदू बताने की पूरी पड़ताल

बिरसा मुंडा की जयंती पर भाजपा ने उठाया आमू आखा हिंदू छे का मुद्दा, आदिवासियों को हिंदू बताने की पूरी पड़ताल
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विकास सिंह

, मंगलवार, 15 नवंबर 2022 (11:00 IST)
आदिवासी समाज के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर आज मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार जनजाति गौरव दिवस पर आदिवासी बाहुल्य जिले शहडोल में बड़े कार्यक्रम का आयोजन कर रही है। जनजातीय गौरव दिवस के इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भी शामिल होगी। गौरतलब है कि द्रोपदी मुर्मू की पहली आदिवासी राष्ट्रपति है और भाजपा लगातार इस मुद्दें को सियासी माइलेज लेने में जुटी हुई शहडोल में आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगी।

बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मना रही प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और उससे जुड़े संगठनों की ओर से आदिवासियों को लेकर ‘आमू आखा हिंदू छ’ का बात जोर शोर से उठाई गई है। महाकौशल से लेकर मालवा तक भाजपा से जुड़े संगठन और भाजपा नेताओं की ओर से ऐसे पोस्टर और बैनर लगाए गए है। आखिर बिरसा मुंडा की जयंती पर क्यों भाजपा नेताओं की ओर और उससे जुड़ी संस्थाओं की ओर से ऐसे पोस्टर लगाए गए इसको समझने के लिए वेबदुनिया ने इस पूरे मुद्दें की पड़ताल की।  

आमू आखा हिंदू छे का पोस्टर क्यों?-मध्यप्रदेश जहां आदिवासी समाज की आबादी 21 फीसदी है वहां पर अचानक से आदिवासियों को क्यों हिंदू बताने के पोस्टर लगाने पड़े इसको लेकर ‘वेबदुनिया’ ने सीधे मध्यप्रदेश भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष कलसिंह भाबर से ही सवाल किया। ‘वेबदुनिया’ के सवाल पर भाजपा के आदिवासी विंग के मुखिया कलसिंह भाबर कहते है ‘आमू आखा हिंदू छे’ का मतलब है कि हम सब हिंदू है, यानि आदिवासी हिंदू है। वह आगे कहते हैं कि विदेशी षड़यंत्र के द्वारा ऐसे संगठन तैयार किए गए है कि यह बताते है और भ्रम फैलाते है कि आदिवासी हिंदू नहीं है इसलिए हमको बताने की जरूरत पड़ रही है और हमको कहना पड़ रहा है कि आदिवासी हिंदू है।
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आदिवासी हिंदू है या नहीं का विवाद क्यों?- 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में अनुसूचित जनजाति समाज की आबादी साढ़े दस करोड़ से ज्यादा है। आदिवासी हिंदू या नहीं है इसको लेकर देश में लंबे समय से एक बहस चली आ रही है। दरअसल दावा किया जाता है कि आदिवासी समाज एक बड़ा तबका अपने को हिंदू नहीं मानता है। आदिवासी समाज का एक बड़ा तबका अपने को ‘सरना’ मानता है। सरना उनको कहा जाता है जो प्रकृति की पूजा करते है। सरना धर्म के मानने वाले आदिवासी खुद को हिंदू धर्म से अलग मानते है। सरना के अनुयायी अपने लिए सरना धर्म के लिए अलग से एक कोड की मांग कर रहे है।

वहीं भारतीय संविधान आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर उनको हिंदू मानता है। लेकिन इसके ठीक उलट देश में मौजूदा कई कानून आदिवासियों पर लागू नहीं होते है। जैसे हिंदू मैरिज एक्ट, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू भरण पोषण अधिनियम सहित कई ऐसे कानून है जो आदिवासियों पर लागू नहीं होते है।

आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार शादी-विवाह करते हैं। उनकी प्रथागत जनजातीय आस्था के अनुसार विवाह और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में सभी विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए उनके जीवन का अपना तरीका है। इसके पीछे का कारण है कि आदिवासी समाज अपनी रीति रिवाजों और परंपराओं का पालन करता है। वहीं आदिवासी समाज के हिंदू धर्म से अलग अपने पर्व-त्योहारों का पालन करते हैं।

जनजाति समाज पर पिछले कई वर्षों से काम कर रही पुरातत्वविद् पूजा सक्सेना कहती है कि आदिवासी हिंदू या सनातनी नहीं है, इसको लेकर आदिवासी समाज के अंदर को कोई द्वंद्व नहीं है। आदिवासी समाज कहीं भी अपने को हिंदुओं से अलग नहीं पाते हैं। अंतर केवल इतना है कि हिंदू धर्म में जिस शिव को महादेव कहते है आदिवासी उसे बड़ादेव कहते हैं। मध्यभारत 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच गौंड राजवंश ने सैकड़ों की संख्या में मंदिर बनवाएं।

पूजा सक्सेना आगे कहती है कि मध्यभारत जिसमें मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,आंध्रा और तेलंगाना का एक हिस्सा शामिल है वहां 13वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक चार बड़े गौंड राजवंश के बनाए गए 100 से ज्यादा मंदिर खुद मैंने डॉक्यूमेंट किए है जो शिव,राम के भी है. ऐसे में कहीं से नहीं लगाता है कि आदिवासी सनातनी नहीं है। अंतर केवल इतना है कि हिंदू जिस शिव को महादेव कहते है आदिवासी उसे बड़ादेव कहते हैं बस इतना अंतर है। जिस तरह से हिंदू धर्म में सृष्टि के उत्थान की बात कही गई है वैसी ही आदिवासी समाज की कहनियां है। जैस हम प्रकृति को लेकर बात करते है वैसे उनका भी विधान है।
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आदिवासी समाज मूर्ति पूजा नहीं करते है यह केवल एक भ्रांति है। जनजाति समाज पर 20 साल के कामकाज में मैंने खूब मूर्तियां देखी वह ठीक है कि वह हमारी तरह छीनी हथौड़े से उतनी खूबसूरत मूर्तियां नहीं गढ़ते है लेकिन आदिवासी समाज में पेड़ के नीचे पिंडी तो रखी ही होती है, किसी भी पत्थर को वह पूजते है। आदिवासी मूर्तिपूजक नहीं है या देवताओं को वह भोग नहीं चढाते है ऐसा कुछ भी नहीं है। हिंदू धर्म से ज्यादा ही देवताएं है., गौंड और भील जनजाति देवताओं को पूजते है और वहां अलग अलग देवता है

वहीं हिंदू मैरिज एक्ट के आदिवासी समाज पर लागू नहीं होने की बात पर कहती है कि जनजाति समाज की अपनी अपनी प्राथाएं है, हमारा समाज हमेशा से तीन भागों नगरीय, ग्राम और अरण्य (वन) में बंटा हुआ है। सबकी अपनी-अपनी प्राथाएं, परंपराए है। कहीं बहुविवाह है, कहीं एकल विवाह है तो उन परंपराओं का मानते हुए हो सकता है कि उनका एकल विवाह नहीं हो।  

मध्यप्रदेश भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अध्यक्ष कल सिंह भाबर आगे वह कहते हैं कि जनजाति समाज हिंदू धर्म की पंरपराओं को युगों-युगों से मानता आ रहा है। जनजाति समाज की पंरपराओं का हिंदू समाज पालन कर रहा है। जनजाति समाज हिंदू धर्म के रीति-रिवाज, संस्कृति को मानता है। कई वर्षों से आदिवासी हिंदू नहीं है इसको लेकर एक भ्रम फैलाया जा रहा है। वह इसे आदिवासी समाज को बांटने की एक बहुत बड़ी साजिश मानते है और कहते हैं कि भाजपा के साथ आदिवासी समाज इसका जोरदार तरीके से जवाब देगी।
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मध्यप्रदेश में बिरसा मुंडा की जयंती पर भाजपा नेताओं और उससे जुड़े संगठनों की ओर से ‘आमू आखा हिंदू छे’  की बात करना और पोस्टर लगाने पर कांग्रेस ने केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा पर संविधान के नियमों को दरकिनार करने की बात कही है। आदिवासी कांग्रेस मध्यप्रदेश के अध्यक्ष ओमकार सिंह मरकाम ‘वेबदुनिया’ से कहते है कि देश के अंदर विभिन्न प्रांतों में विभिन्न जीवन पद्धतियों  जुड़े आदिवासी लोग है, ऐसे में अगर संपूर्ण आदिवासी समाज अगर  ‘आमू आखा हिंदू छे’ की बात करते है या पोस्टर लगाते है तो उनका निजी मामला है लेकिन अगर भाजपा के नेता और संस्था के द्धारा यह लगाया जाता है तो यह पूरी तरह से अपने मुंह मिठ्ठू वाली बात है।
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केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा का आदिवासी समाज को लेकर ‘आमू आखा हिंदू छे’ की बात करना संविधान की भावना के खिलाफ है। भारतीय संविधान में सभी धर्मो को स्वतंत्रता है और और सरकार में रहने वाली भाजपा के द्धारा इस तरह के प्रयास करना भारतीय संविधान का उल्लंघन और संविधान की भावना के विपरीत है। मेरा सीधा सवाल है कि केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की शिवराज सरकार क्या धर्मनिरपेक्षता को स्वीकार कर रहे है और अगर स्वीकार कर रही है तो किसी एक धर्म के प्रति सर्मपण दिखाना क्या संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है।

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