World earth day : अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ घटकर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। बर्फीले महाद्वीप तक जलवायु परिवर्तन का असर जितना सोचा गया, उससे कहीं जल्दी पहुंच गया है। फरवरी के आखिर में बर्फ से ढंके समुद्री इलाके का क्षेत्रफल 20 लाख वर्ग किलोमीटर की सांकेतिक सीमा से नीचे चला गया। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों इलाके में औसत तापमान 19वीं सदी के आखिर की तुलना में करीब 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है। हिमालय लगातार पिघल रहा है। यह सब क्यों हो रहा है?
ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ता तापमान : वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारी धरती अपनी धुरी से 1 डिग्री तक खिसक गई है और ग्लोबल वार्मिंग शुरू हो चुकी है। इसके चलते लगातार मौसम बदलता जा रहा है। तापमान बढ़ रहा है। जलवायु परिवर्तन हो रहा है। हिमालयी ग्लेशियरों को लेकर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने एक अध्ययन कराया था। इस अध्ययन ने साफतौर पर चेतावनी दी थी कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय क्षेत्र की 15,000 हिमनद (ग्लेशियर) और 9,000 हिमताल (ग्लेशियर लेक) में आधे वर्ष 2050 और अधिकतर वर्ष 2100 तक समाप्त हो जाएंगे। इस बात की पुष्टि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भी की है।
यह क्यों हो रहा है? : वैज्ञानिक कहते हैं कि वायु प्रदूषण (ग्रीन हाउस गैसों) के कारण यह सब हो रहा है। प्रदूषण कई तरह का होता है। हमारे वाहनों से निकलने वाला धुंआ, कोयले के प्लांट से निकलने वाला धुआं, कारखनों से निकलने वाला धुआं और अन्य कई कारणों से धरती के वातावरण में कार्बन डाई-आकसाइड की मात्रा बढ़ती जा रही है जिसके चलते धरती का तापमान लगभग एक डिग्री से ज्यादा बढ़ गया है और ऑक्सिजन की मात्रा कम होती जा रही है। अब तो गर्मी में एशिया के अधिक शहरों का अधिकतम तापमान 50 डीग्री रहने लगा है। पहले 100 या 200 साल के बीच में अगर तापमान में एक सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाती थी तो उसे ग्लोबल वॉर्मिंग की श्रेणी में रखा जाता था। लेकिन पिछले 100 साल में अब तक 0.4 सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है जो बहुत खतरनाक है।
आने वाले समय में क्या होगा : प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी की जलवायु को एक डिग्री ठंडा या गर्म होने के लिए हजारों साल लग सकते हैं। हिम-युग चक्र में पृथ्वी की जलावायु में जो बदलाव होते हैं वो ज्वालामुखी गतिविधि के कारण होती है जैसे वन जीवन में बदलाव, सूर्य के रेडियेशन में बदलाव तथा और प्राकृतिक परिवर्तन, ये सब कुदरत का जलवायु चक्र है, लेकिन पिछले सालों में मानव की गतिविधियां अधिक बढ़ने के कारण यह परिवर्तन देखने को मिला है जो कि मानव अस्तित्व के लिए खतरनाक है। इस ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर जहां पीने के पानी का संकट गहराएगा वहीं मौसम में तेजी से बदलावा होगा और तापमान बढ़ने से ठंड के दिनों में भी गर्मी लेगेगी। ऐसे में यह सोचा जा सकता है कि यह कितना खतरनाक होगा। धरती पर रहने लायक जगह सीमित होती जाएगी तब लोग वहां रहने के बारे में सोचेंगे जहां तापमान कम हो। ऐसे में हर देश चाहेगा उस जगह पर कब्जा करना जहां पानी हो और जहां पर रहने लायक तापमान हो। इस सोच के चलते युद्ध अभी से ही जारी हो चुका है हिमालय के आसपास के क्षेत्रों को अपने कब्जे में करने का।