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आज है साल की पहली एकादशी : पौष पुत्रदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, मिलेगा संतान सुख

आज है साल की पहली एकादशी : पौष पुत्रदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, मिलेगा संतान सुख
, सोमवार, 2 जनवरी 2023 (06:01 IST)
पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। 2 जनवरी 2023 सोमवार को यह व्रत रखा जाएगा। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान की रक्षा भी होती है। महिलाएं यह व्रत जरूर रखती हैं। आओ जानते हैं कि कैसे रखते हैं इस व्रत को और क्या है इसकी पूजा विधि।
 
पारण मुहूर्त : 3 जनवरी को सुबह 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजकर 19 मिनट के बीच इस व्रत का पारण होगा। 
 
व्रत का महत्व : इस व्रत के दौरान सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु की पूजा करने के महत्व है। इस व्रत को विधिवत रखने से संतान की प्राप्त होती है और यदि संतान है तो उसकी रक्षा होती है।
 
कैसे रखते हैं इस व्रत को : इस व्रत को रखने के लिए एकादशी के प्रारंभ होने के पूर्व ही उपवास प्रारंभ हो जाता है। संकल्प के अनुसार पूर्णोपवास या अर्धउपवास कर सकते हैं। अर्ध उपवास यानी एक समय फलाहार ले सकते हैं। यदि विधिवत व्रत रखते हैं तो व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रती को संयमित और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और पूर्णोपवास रखकर दूसरे दि व्रत का पारण करना चाहिए।
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि :
- एकादशी के सुबह स्नान आदि से निवृत होकर श्रीहरि के समक्ष व्रत का संकल्प लें। हो सके तो पति पत्नी दोनों मिलकर यह व्रत रखें।
 
- व्रत का संकल्प लेने के बाद श्रीहिर और माता लक्ष्मी की गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से पूजा करें।
 
- पूजा में हाल, फूल, गंध, अक्षत आदि सभी पूजा सामग्री अर्पित करने के बाद भोग लगाएं।
 
- पूजा के बाद श्रीहरि विष्णु की जी और माता लक्ष्मीजी की आरती उतारें।
 
- यदि एक समय का उपवास कर रहे हैं तो व्रती चाहे तो संध्या काल में दीपदान करने के पश्चात फलाहार कर सकते हैं।
 
- संतान गोपाल मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप के बाद पति-पत्नी प्रसाद ग्रहण करें।
 
- व्रत के पारण के समय पहले जरूरतमंदों को दान दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
 
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा : भद्रावती नगर में राजा सुकेतु की पत्नी की शैव्या को कोई संतान नहीं हो रही थी। इसको लेकर दोनों दु:खी थे। एक दिन दोनों अपने मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गए। वहां उनके मन में आत्महत्या करने का विचार आया परंतु उसी समय राजा को यह बोध हुआ कि ऐसा करना तो पाप होगा। फिर अकस्मात ही उन्हें वेदपाठ के स्वर सुनाई दिए और वे उसी दिशा में आगे बढ़ते चले गए। वहां पहुंचकर उन्होंने साधुओं को देखा और उनसे उन्होंने अपनी परेशानी बताई। साधुओं ने उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी के महत्व का महत्व बताया। इसके बाद दोनों ने विधिवत रूप से यह व्रत किया और अंतत: इसके प्रभाव से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई।

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