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Dev uthani gyaras 2024 date: देवउठनी देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

Dev uthani gyaras 2024 date: देवउठनी देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

WD Feature Desk

, शनिवार, 9 नवंबर 2024 (16:50 IST)
dev prabodhini ekadashi : वर्ष 2024 में देवउठनी एकादशी का पावन पर्व मंगलवार, 12 नवंबर को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यतानुसार इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु शयन निद्रा से जाग्रत होकर पुन: सृष्टि का कार्यभार संभालने लगते हैं और भगवान भोलेनाथ फिर से कैलाश यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। 
 
Highlights
  • देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है?
  • देवोत्थान एकादशी की पूजा कैसे करते हैं।
  • कब मनाई जाएगी देवोत्थान एकादशी।
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आइए जानें यहां देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर कैसे करें व्रत-पूजन : 

देवउठनी देवोत्थान एकादशी व्रत कैसे करें : देवोत्थान देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं। पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें। देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय भागवत कथा, स्त्रोत, पाठ तथा पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें। 
 
फिर घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं। फिर विविध प्रकार के खेलकूद, लीला और नृत्य आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : 
 
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌।।'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:।।'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
 
तत्पश्चात विधिवत देवोत्थान एकादशी का पूजन करें।
 
कैसे करें देवोत्थान एकादशी पर पूजन :
 
• देवोत्थान एकादशी पूजन के लिए भगवान के मंदिर या सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।
 
• आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं।
 
• विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कर्पूर आदि से आरती करें।
• इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : 
'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्या: सन्तिदेवाः।।'
 
• पश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : 
 
• 'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना।।'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन।।'
 
• साथ ही नारद, पाराशर, प्रह्लाद, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद का वितरण करें। 
 
• फिर एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें और नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं।
 
• शास्त्रों के अनुसार जिस समय भगवान वामन 3 पग भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामन जी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रिया: सर्वा: प्रवर्तयेत्‌' के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं)। 
 
• अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें।
 
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार 4 महीने से रुके मुंडन, उपनयन संस्कार, नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश, विवाहादि मांगलिक कार्य देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी से पुन: शुरू हो जाते हैं। 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।


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