Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

दशहरा अथवा विजयादशमी पर्व क्यों मनाया जाता है, जानिए

दशहरा अथवा विजयादशमी पर्व क्यों मनाया जाता है, जानिए

अनिरुद्ध जोशी

दशहरा का पर्व प्राचीनकाल से ही मनाया जा रहा है। परंपरा के अनुसार कालांतर में इसे मनाने के स्वरूप बदलता रहा है। इस दिन का बहुत महत्व माना गया है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह दिन आश्‍विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इस बार यह अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 अक्टूबर 2021 को मनाया जाएगी। आओ जानते हैं कि दशहरा अथवा विजयदशमी पर्व क्यों मनाया जाता है।
 
 
'बुराई पर अच्छाई की जीत और असत्य पर सत्य की जीत का उत्सव विजया उत्सव।'
 
1. माता ने किया था महिषासुर का वध : इस दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था तब इसी दिन विजय उत्सव मनाया गया था। इसी के कारण इसे विजयादशमी कहा जाने लगा। विजया माता का एक नाम है। यह पर्व प्रभु श्रीराम के काल में भी मनाया जाता था और श्रीकृष्‍ण के काल में भी। माता द्वारा महिषासुर का वध करने के बाद से ही असत्‍य पर सत्‍य की जीत का पर्व विजयादशमी मनाया जाने लगा।
 
2. श्रीराम ने किया था रावण वध : वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्‍विन प्रतिपदा से नवमी तक आदिशक्ति की उपासना की थी। इसके बाद भगवान श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे। यह भी कहा जाता है कि रावण वध के कारण दशहरा मनाया जाता है। दशमी को श्रीराम ने रावण का वध किया था। श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व नीलकंठ को देखा था। नीलकंठ को शिवजी का रूप माना जाता है। अत: दशहरे के दिन इसे देखना बहुत ही शुभ होता है। रावण का वध करने के बाद से ही यह पर्व बुराई पर अच्‍छाई की जीत की खुशी में मनाया जाता है। 
 
3. पांडवों की जीत :यह भी कहा जाता है कि इसी दिन पांडवों को वनवास हुआ था और वे वनवास के लिए प्रस्थान कर गए थे। इसी दिन अज्ञातवास समाप्त होते ही, पांडवों ने शक्तिपूजन कर शमी के वृक्ष में रखे अपने शस्त्र पुनः हाथों में लिए एवं विराट की गाएं चुराने वाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की थी। इसी दिन पांडवों ने कौरवों पर भी विजय प्राप्त की थी।
 
4. सती दाह : यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव की पत्नी देवी सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ की अग्नि में समा गई थीं।
 
5. चतुर्मास समाप्त : कुछ लोगों के अनुसार इस दिन से वर्षा ऋ‍तु की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। हालांकि चतुर्मास देव उठनी एकादशी पर समाप्त होता है।
 
6. कृषि उत्सव : वैसे देखा जाए, तो यह त्योहार प्राचीन काल से चला आ रहा है। आरंभ में यह एक कृषि संबंधी लोकोत्सव था। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जब किसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे। इस दिन से वर्षा ऋ‍तु की समाप्ति के साथ ही चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है। वर्षा ऋतु में बोई गई धान की पहली फसल जब किसान घर में लाते, तब यह उत्सव मनाते थे। इस काल से सेहत बनाने का समय प्रारंभ होता है।
 
7. शमी देने का प्रचलन : माना जाता है कि दशहरे के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्रा देते हुए शमी की पत्तियों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है।
 
यह भी कहा जाता है कि एक ब्राह्मण ने एक राजा से दक्षिणा में 1 लाख स्वर्ण मुद्राएं मांग ली थी तो चिंतित राजा ने एक दिन की मौहलत मांगी। राजा को सपने में भगवान ने दर्शन देककर कहा कि शमी के पत्ते लेकर आओ मैं उसे स्वर्ण मुद्रा में बदल दूंगा। यह सपना देखते ही राजा की नींद खुल गई। उसने उठकर शमी के पत्ते लाने के लिए अपने सेवकों को साथ लिया और सुबह तक शमी के पत्ते एकत्रित कर लिए। तभी चमत्कार हुआ और सभी शमी के पत्ते स्वर्ण में बदल गए। तभी से इसी दिन शमी की पूजा का प्रचलन भी प्रारंभ हो गया।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

दशहरा पर शमी के पेड़ की पूजा करने से होंगे ये 5 चमत्कारिक लाभ