Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

क्या है करणी माता मंदिर में चूहों का रहस्य, मूषक मंदिर के नाम से है प्रसिद्ध

चूहों का भोग लगा प्रसाद बांटा जाता है मंदिर में, भक्तों की लगती है भीड़

WD Feature Desk
शनिवार, 21 सितम्बर 2024 (13:35 IST)
Karni Mata mandir

History of Karni Sena : भारत में मां दुर्गा के अनेको ऐसे मंदिर हैं जिनके चमत्कारों की चर्चा विश्व भर में है। लेकिन क्या कभी आपने किसी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जिसमें माता के दरबार में सैकड़ों चूहे उनकी रक्षा कर रहे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं करणी माता के मंदिर के बारे में। वैसे तो चूहा अपनी नटखट प्रवृत्ति के लिए जाना जाता है लेकिन करणी माता के इस मंदिर में आपको चूहों का अलग ही स्वरुप देखने को मिलता है।

राजस्‍थान के बीकानेर से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर स्थित है विश्व प्रसिध्द करणी माता के इस अनोखा मंदिर को चूहों वाले मंदिर या मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां चूहों का भोग लगाया प्रसाद भक्‍तों को खिलाया जाता है।ALSO READ: तिरुपति बालाजी के प्रसाद लड्डू की कथा और इतिहास जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, खुद माता लक्ष्मी ने बनाया था लड्डू

कौन हैं करणी माता
करणी माता का जन्‍म साल 1387 में एक चारण परिवार में हुआ। करणी माता के बचपन का नाम रिघुबाई था। रिघुबाई की शादी साठिका गांव के किपोजी चारण से हुई थी लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उनका मन सांसारिक जीवन से ऊब गया इसलिए उन्होंने किपोजी चारण की शादी अपनी छोटी बहन गुलाब से करवाकर खुद को माता की भक्ति और लोगों की सेवा में लगा दिया। अपनी गृहस्थी का त्याग कर अपना पूरा जीवन देवी की पूजा और लोगों की सेवा में अर्पण कर दिया गया।

कहा जाता है कि करणी माता 151 साल तक जिंदा रही और 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हुई थी। उनके ज्योतिर्लिन होने के बाद उनके भक्तों ने उनकी मूर्ति की स्थापना कर के उनकी पूजा शुरू कर दी जो की तब से आज भी चली आ रही है।

करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी है। कहा जाता है कि इनके आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 20वीं शताब्दी के शुरुआत में करवाया था।

चमत्कारिक शक्तियों  और जनकल्याण के कामों के कारण रिघु बाई को करणी माता के नाम से स्थानीय लोग पूजने लगे। वर्तमान में जहां यह मंदिर बना हुआ है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा किया करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में बनी हुई है। इसके बाद से करणी माता के भक्तों ने उनकी मूर्ति स्‍थापित कर पूजा करनी शुरू कर दी।

चूहे हैं माता की संतान
इस मंदिर में रहने वाले चूहों के बारे में मान्यता है कि वो माता की संतान हैं। प्रचलित कथा के अनुसार एक बार करणी माता की बहन का पुत्र लक्ष्मण, कोलायत में स्थित कपिल सरोवर में पानी पीने की कोशिश में डूब कर मर गया। जब करणी माता को यह पता चला तो उन्होंने, मृत्यु के देवता यम को उसे पुनः जीवित करने की प्रार्थना की। यमराज ने पहले तो ऐसा करने से मना कर दिया पर बाद में उन्होंने विवश होकर उसे चूहे के रूप में पुर्नजीवित कर दिया।

वैसे यहां के लोकगीतों में एक दूसरी ही कथा का उल्लेख मिलता है। कहते हैं जब एक बार 20000 सैनिकों की एक सेना देशनोक पर आक्रमण करने आई तो माता ने उन्हें अपने प्रताप से चूहे बना दिया और अपनी सेवा में रख लिया। जो कि अब माता के दरबार में उनकी रक्षा करते है।

आरती में शामिल होते हैं चूहे
करणी माता के मंदिर में तकरीबन 20 हजार चूहे हैं, जो सभी को आश्चर्य में डाल देते हैं। सुबह की मंगला आरती और शाम की संध्‍या आरती के समय ये चूहे अपने बिलों से निकलकर आरती में शामिल होते हैं। मां को चढ़ाने वाले प्रसाद को भी पहले यहां चूहों को खिलाया जाता है।

सफेद रंग का चूहा नजर आने पर होती है मनोकामना पूर्ण
मंदिर परिसर में कम से कम 20000 चूहे रहते है। इन चूहों में सफेद चूहों को  बहुत ही पवित्र माने जाता है। लेकिन मान्यता के अनुसार सफेद रंग का चूहा नजर आने पर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। चूहे को देखने के लिए यहां पर भक्तों की काफी होड़ लगती है।

यहां पर सिर्फ चूहों का शासन
इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको हर जगह चीजें नजर आएगें। इतना ही नही यह आपके शरीर में भी उछल-कूद करेगे। जिसके कारण यहां पर आपको अपने पैर घसीटते हुए जाना पडता है। जिससे कि कोई चूहा घायल न हो। अगर आपने पैर उठाया और आपके पैर से कोई चूहा घायल हुआ तो यह अशुभ माना जाता है।

भक्तों को मिलता है स्पेशल प्रसाद
माता के मंदिर पर रहने वाले चूहों को काबा कहा जाता जाता है। माता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को पहले चूहे खाते है। उसके बाद उसे भक्तों के बीच बांटा जाता है। इस चूहों की चील, गिद्ध और दूसरे जानवरो से रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानो पर बारीक जाली लगी हुई है।

अस्वीकरण (Disclaimer) : सेहत, ब्यूटी केयर, आयुर्वेद, योग, धर्म, ज्योतिष, वास्तु, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार जनरुचि को ध्यान में रखते हुए सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इससे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Guru Pushya Nakshatra 2024: पुष्य नक्षत्र में क्या खरीदना चाहिए?

जानिए सोने में निवेश के क्या हैं फायदे, दिवाली पर अच्छे इन्वेस्टमेंट के साथ और भी हैं कारण

झाड़ू से क्या है माता लक्ष्मी का कनेक्शन, सही तरीके से झाड़ू ना लगाने से आता है आर्थिक संकट

30 को या 31 अक्टूबर 2024 को, कब है नरक चतुर्दशी और रूप चौदस का पर्व?

गुरु पुष्य योग में क्यों की जाती है खरीदारी, जानें महत्व और खास बातें

सभी देखें

धर्म संसार

Diwali Skincare : त्योहार के दौरान कैसे रखें अपनी त्वचा का ख्याल

Diwali 2024 : कम समय में खूबसूरत और क्रिएटिव रंगोली बनाने के लिए फॉलो करें ये शानदार हैक्स

Muhurat Trading: मुहूर्त ट्रेडिंग के दौरान क्या करते हैं और इससे किसे लाभ होता है?

गोवा में नरक चतुर्दशी पर नरकासुर के पुतला दहन के साथ होता है बुरे का अंत, यहां भगवान श्रीकृष्ण हैं दिवाली के असली हीरो

Ahoi ashtami vrat katha: अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा

આગળનો લેખ
Show comments