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पूंजीवाद की अंधी दौड़: क्रूर सफलता, मानसिक स्वास्थ्य और वर्क-लाइफ बैलेंस का संघर्ष

लेखक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हैं और सामायिक विषयों पर अपने विचार रखते हैं

Burnout From Work
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डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी

, शुक्रवार, 27 सितम्बर 2024 (08:21 IST)
पूंजीवादी समाज ने आधुनिक युवाओं के जीवन को अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक बना दिया है, जहाँ आर्थिक सफलता और सामाजिक मान्यता के लिए उन्हें निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रतिस्पर्धा का परिणाम यह हो रहा है कि युवाओं पर मानसिक तनाव, अवसाद, और आत्महत्या जैसी घटनाओं का भार तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में पुणे में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की मृत्यु ने एक बार फिर इस गंभीर समस्या को हमारे सामने ला खड़ा किया है। वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा ने इस मुद्दे को और भी अधिक जटिल बना दिया है।

पूंजीवाद का मूल आधार प्रतिस्पर्धा है, जहाँ हर व्यक्ति को निरंतर अपने आप को बेहतर साबित करना होता है। समाज का भारी दबाव यह है कि व्यक्ति अधिक से अधिक धन, पद और सफलता हासिल करे। शिक्षा और करियर के क्षेत्र में युवाओं पर उत्कृष्ट प्रदर्शन की अत्यधिक अपेक्षाएँ रखी जाती हैं। शिक्षा प्रणाली भी इस प्रतिस्पर्धा को और बढ़ावा देती है, जहाँ उच्चतम ग्रेड और शीर्ष स्थान प्राप्त करना सफलता का प्रतीक बन चुका है। परिवार, समाज और कार्यस्थल से आने वाले इन दबावों ने युवाओं को मानसिक और भावनात्मक रूप से थका दिया है, और यह थकावट धीरे-धीरे अवसाद जैसी मानसिक बीमारियों में बदल रही है।

आज के दौर में सोशल मीडिया ने भी मानसिक तनाव को बढ़ावा दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लोग अपनी उपलब्धियों और भौतिक संपत्तियों का प्रदर्शन करते हैं, जिससे एक अप्रत्यक्ष तुलना का वातावरण बनता है। युवा अक्सर अपनी असफलताओं को इन आदर्श चित्रों से तुलना करते हुए और भी अधिक निराश महसूस करते हैं। सोशल मीडिया पर लोगों के जीवन की चमक-धमक ने वास्तविकता से उन्हें दूर कर दिया है, जिससे मानसिक समस्याएँ और अधिक जटिल हो गई हैं।

मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बीच वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी भी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। आज के कामकाजी जीवन में लंबे घंटों तक काम करने की उम्मीदें और अत्यधिक काम का दबाव, युवाओं के लिए निजी जीवन का आनंद लेना कठिन बना रहा है। काम के अत्यधिक घंटे, लगातार लक्ष्य प्राप्त करने का दबाव, और परिवार या सामाजिक जीवन के लिए समय की कमी ने युवाओं को एक तरह से मानसिक बंधन में डाल दिया है। इससे न केवल उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है, बल्कि उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। कई कंपनियों में कर्मचारियों से अत्यधिक काम की उम्मीद की जाती है, जबकि मानसिक और शारीरिक विश्राम के लिए उचित समय नहीं दिया जाता।

इस समस्या का एक और पहलू यह है कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर खुलकर बात करना अब भी एक वर्जित विषय माना जाता है। समाज में मानसिक रोगों से जुड़े कलंक और गलतफहमियों के कारण लोग अपनी समस्याओं के बारे में बात करने से कतराते हैं। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और चिकित्सा सेवाओं की कमी के कारण कई लोग समय पर उपचार प्राप्त नहीं कर पाते, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो जाती है। मानसिक समस्याओं का सही समय पर समाधान न हो पाने के कारण आत्महत्या की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं।

युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं का प्रमुख कारण यह है कि वे अपनी समस्याओं से अकेले जूझते हैं और उन्हें समय पर सही सहायता प्राप्त नहीं होती। पारिवारिक और सामाजिक दबाव, आर्थिक अस्थिरता, और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी ने इस स्थिति को और बिगाड़ दिया है। आत्महत्या को वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने का अंतिम उपाय समझते हैं। अगर सही समय पर उनकी समस्याओं को समझा जाए और उन्हें मानसिक सहायता दी जाए, तो ऐसी घटनाओं को टाला जा सकता है।

इस समस्या का समाधान यह है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक प्राथमिकता के रूप में लिया जाए। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि युवाओं को सही मार्गदर्शन और समय पर सहायता प्राप्त हो सके। शिक्षा प्रणाली और कार्यस्थलों में वर्क-लाइफ बैलेंस को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सरकार, शिक्षा संस्थानों और निजी कंपनियों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़े और लोग समय पर सहायता प्राप्त कर सकें।

इसके साथ ही, सोशल मीडिया और अन्य सार्वजनिक मंचों पर सफलता के मापदंडों को बदलने की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि समाज में यह समझ पैदा की जाए कि सफलता केवल धन, पद या भौतिक संपत्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक संतुलन और व्यक्तिगत खुशी भी सफलता के महत्वपूर्ण पहलू हैं। युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ, उन्हें यह सिखाना जरूरी है कि अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना करियर में आगे बढ़ना।

परिवारों की भूमिका भी इस दिशा में महत्वपूर्ण है। परिवारों को चाहिए कि वे अपने बच्चों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति को समझें और उन्हें सही समय पर समर्थन दें। बच्चों पर अत्यधिक अपेक्षाओं का भार न डालें और उन्हें एक सकारात्मक माहौल दें, जहाँ वे अपनी समस्याओं और भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर सकें। परिवार का समर्थन और समझदारी युवाओं को मानसिक तनाव से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

अंततः, पूंजीवाद की अंधी दौड़ में युवा मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए समाज, कार्यस्थल, और परिवार को मिलकर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी। वर्क-लाइफ बैलेंस को बनाए रखना और मानसिक बीमारियों से जुड़े कलंक को समाप्त करना ही इस संकट का स्थायी समाधान हो सकता है।

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