Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

जिबरिश ध्यान विधि के रहस्य को जानिए...

जिबरिश ध्यान विधि के रहस्य को जानिए...
, शुक्रवार, 25 मार्च 2016 (17:08 IST)
देखना, सुनना और सोचना यह तीन महत्वपूर्ण गतिविधियां हैं। इन तीनों के घालमेल से ही चित्र कल्पनाएं और विचार निर्मित होते रहते हैं। इन्हीं में स्मृतियां, इच्छाएं, कुंठाएं, भावनाएं, सपने आदि सभी 24 घंटे में अपना-अपना किरदार निभाते हुए चलती रहती है। यह निरंतर चलते रहना ही बेहोशी है और इसके प्रति सजग हो जाना ही ध्यान है। साक्ष‍ी हो जाना ही ध्यान है।
प्रत्येक व्यक्ति के लिए ध्यान की विधियां अलग-अलग होती है। लेकिन कुछ ध्यान ऐसे हैं जिनको सभी आजमा सकते हैं। ध्यान की प्रत्येक विधि के पीछे एक इतिहास छुपा हुआ है जिसका संबंध भारत से है। जैसे ध्यान जब जापान में गया तो च्यान होकर बाद में झेन हो गया। ध्यान की खोज प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने की थी। उपनिषदों में दुनियाभर में प्रचलित सभी तरह के ध्यान का उल्लेख मिलता है।
 
हर त्योहार और व्रत ध्यान है : यदि गौर से देखा जाए तो हिन्दुओं के लगभग सभी त्योहार किसी न किसी ध्यान से ही जुड़े हुए हैं। होली जहां हमारे दमित भावों को बाहर निकालने का एक माध्यम है वहीं दीपावली जीवन में साक्षी भाव को गहराने का त्योहार है। ओशो कहते हैं कि प्रत्येक गतिविधि को ध्यान बनाया जा सकता है। अब हम बात करते हैं जिबरिश की।
 
ओशो संन्यासी अक्सर 'जिबरिश' ध्यान करते हैं। यह भारतीय योग अनुसार रेचक की एक प्रक्रिया है। ओशो की एक महत्वपूर्ण किताब 'ध्यान योग : प्रथम और अंतिम मुक्ति' में ध्यान की 150 विधियां हैं। दुनियाभर में प्रचलित ध्यान को इसमें संकलित किया गया है और ओशो ने बहुत ही सुंदर ढंग से इन विधियों का वर्णन किया है। 
 
ओशो कहते हैं कि अंग्रेजी का 'जिबरिश' शब्द 'जब्बार' नाम के एक सूफी सन्त से बना है। जब्बार से जब भी कोई कुछ सवाल पूछता था तो वह अक्सर अनर्गल, अनाप-शनाप भाषा में उसका जवाब देता था। वे इस भांति बोलते थे कि कोई समझ नहीं पाता था कि वे क्या बोल रहे हैं। इसलिए लोगों ने उनकी भाषा को 'जिबरिश' नाम दे दिया- जब्बार से जिबरिश (Gibberish)। जिबरिश का अर्थ होता है अस्पष्ट उच्चारण।
 
‘जिबरिश’ का प्रचलित अर्थ बन गया- अर्थहीन बकवास। यह अर्थहीन बकवास ही आंतरिक बकवास को रोकती है। इससे मन का कूड़ा-करकट बाहर निकाला जा सकता है। ईसाइयों के एक मत में इस तरह के ध्यान को ग्लासोलेलिया कहते हैं; 'टाकिंग इन टंग्स।'
 
सूफी फकीर जब्बार से लोग तरह-तरह के गंभीर सवाल पूछते और वह उसका जवाब इसी तरह देते थे। अर्थहीन शब्दों में लगातार वे लगभग चिल्लाते हुए जबाब देते थे। दरअसल जब्बार यह बताना चाहते थे कि तुम्हारे सारे सवाल और जवाब बकवास है। इससे सत्य को नहीं जाना जा सकता। सत्य को जानने के लिए मन और मस्तिष्क का खाली होना जरूरी है।
 
नो माइंड : ओशो ने जब्बार के इस ध्यान को आधुनिक लुक दिया और इस वार्तालाप के साथ चिखना और चिल्लाना भी जोड़ दिया। ओशो ने इस विधि को फिर से अपनाया और उसमें कुछ नए तत्व जोड़कर एक ध्यान थेरेपी बनाई और उसका नाम रखा- नो माइंड।
 
नो माइंड होना बहुत ही कठिन है। दिमाग को विचारों से मुक्ति करना बहुत ही कठिन है लेकिन जो ऐसा करना शुरू कर देता है वह मन के पार चला जाता है। उदाहरणार्थ, एक वाक्य के कुछ शब्दों के बीच जो खाली स्थान होता है असल में वही सत्य है। उस खाली स्थान को बढ़ाने के लिए ही ध्यान विधियां है।
 
जिबरिश के कई तरीके : जिबरिश को आप कई तरीके से कर सकते हैं। इसे आप फनी, लॉफिंग या अपने भावों के हिसाब से जैसा चाहे वैसा बना सकते हैं। जिबरिश में बात करना करना बहुत ही रोचक होता है। आप गुस्से में, दुख में या प्रसन्नता से जिमरिश बोले। अपने चेहरे पर चौंकाने वाले भाव लाकर भी जिबरिश बोले। रोते हुए भी जिबरिश बोलना बहुत फनी होगा। आपने बच्चों को देखा होगा जब उनका कोई खिलौना टूट जाता है और दहाड़े मारकर रोते हुए ऐसा कुछ बोलने लगते हैं जो आपको समझ में नहीं आता। हर तरह के मनोभावों में जिबरिश को ढाला जा सकता है। 
 
समूह में करें यह ध्यान : जिबरिश एक ऐसी भाषा में बात करना है या बोलना है जो कि भाषा है ही नहीं। हर कोई यह भाषा जानता है। यह नान्सेन्स टाक है। आप इसे अकेले में भी कर सकते हैं और समूह में भी। यदि आप समूह में करेंगे तो बहुत मजा आएगा। जैसे मैं आपसे अजीब सा मुंह बनाकर कहूं...'तिरिफिका नालने मक्तमाने नी तोरफीटू जागरे केरमाना।'....आप इसका जबाब कुछ भी दे सकते हैं, 'नामारके रेगजा टूफीरतो नी नेमाक्तम नेलना काफिरिति।'
 
अकेले करें ये ध्यान : अकेले बैठकर भी आप जिबरिश कर सकते हैं। प्रतिदिन सुबह उठकर या सोने से पहले कम से कम बीस मिनट जिबरिश करें। यानी एक कोने में बैठकर अनर्गल प्रलाप करें, आनंद के साथ। फिर एक बार छोटे बच्चें बन जाएं। यह एक पागलपन की तरह होगा। घर के लोग आप पर हंसेंगे भी, लेकिन यह आपके भीतर का पागलपन बाहर निकालन के यह सबसे अच्छा तरीका है।
 
फायदे और नुकसान :
आध्यात्मिक लाभ : जिबरिश ध्यान का आध्यात्मिक फायदा यह कि ध्यानपूर्वक इसे निरंतर करने से आप मन के पार अमनी दशा में रहकर आनंदित हो सकते हैं। अमनी दशा में ही सिद्धियां और सत्य का दर्शन होता है। कई संत ध्यना की इस अवस्था में रहते हैं।
 
सांसारिक लाभ : इसका  सांसारिक लाभ यह कि इसे करते रहने से कभी मानसिक तनाव नहीं रहेगा।‍ किसी भी प्रकार की कुंठा नहीं रहेगी। किसी भी प्रकार की हीन भावना या डर नहीं होगा। आप खुलकर लोगों से जुड़ेंगे। बहुत अच्छे से आपके व्यक्तित्व का विकास होगा।

नुकसान :  लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि मन बड़ा चलाक होता है वह किसी भी तरह की आदत डाल लेता है और फिर वह आदत ही हमारी परेशानी बन जाती है। कुछ लोग कहते हैं कि वैसे भी दिमाग में हजारों तरह के शब्द थे अब एक नया शब्द जुड़ गया 'जिबरिश'। इस ध्यान के माध्यम से होश में आना है लेकिन कुछ लोग बेहोश हो जाते हैं।
 
ओशो के अनुसार कैसे करें ये ध्यान जानिए अगले पन्ने पर....
 

इस ध्यान प्रयोग में आपको जब्बार बन जाना है। यह एक घंटे का ध्यान है; बीस-बीस मिनट के तीन चरण हैं। सायं तीन से छह बजे के बीच इसे करें।
webdunia
osho
पहला चरण : खुले आकाश के नीचे विश्रामपूर्वक मुद्रा में लेट जाएं और खुली आंख से आकाश में झांकें। किसी बिन्दु-विशेष पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण आकाश में।
 
दूसरा चरण : अब बैठ जाएं, आंखें खुली रखें और आकाश के सामने जिबरिश में- यानी अर्थहीन, अनाप-शनाप बोलना शुरू करें। बीस मिनट के लिए 'जब्बार-जैसे' बन जाएं- जो भी मन में आए, बोलें, चीखें, चिंघाड़ें, किलकारियां मारें, ठहाके लगाएं- कुछ भी।
 
तीसरा चरण : शांत हो जाएं, आंख बन्द कर लें और विश्राम में चले जाएं। अब भीतर के आकाश में- अन्तराकाश में झांकें। बीस मिनट अनाप-शनाप बक चुकने पर आप अपने को इतना शांत और आकाशवत् महसूस करेंगे कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आपके भीतर इतना बड़ा आकाश है। इसे अकेले करें।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati