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महिलाओं से हिंसा व अन्याय दूर करने की 'दिशा'

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- भारत डोगरा
 
महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध बढ़ती हिंसा व अन्याय इन दिनों हमारे समाज में चिंता का प्रमुख विषय बने हुए हैं। इन स्थितियों में इस हिंसा और अन्याय को कम करने में 'दिशा' सामाजिक संस्था के प्रयास उम्मीद की किरण दिखाते हैं। यह संस्था पश्चिम उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड के कुछ गांवों में सक्रिय रही है। 
 
इस संस्था के लगभग 35 वर्ष के कार्य में लिंग आधारित समानता व न्याय को सदा महत्व दिया गया। इस कार्य से संस्था की सक्रियता से कुछ गांवों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में कमी आई व साथ ही हिंसा के जो मामले पहले छिपे रहते थे, उसका विरोध करने के लिए लोग आगे आने लगे।
 
'दिशा' ने महिलाओं के विरुद्ध जनमत बनाने के लिए कुछ जनसभाओं का आयोजन भी किया। देहरादून जिले के सहसपुर ब्लॉक में युवकों व कॉलेज छात्रों से भी महिला हिंसा के विरुद्ध हो रहे इन प्रयासों के लिए संपर्क किया गया व उनकी अच्छी भागीदारी प्राप्त भी हुई। 'दिशा' ने जिस तरह बहुत-सी महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का गठन किया व किशोरियों के भी समूह बनाए। उससे भी महिला हिंसा विरोधी प्रयासों को बल मिला।
 
इन समूहों व अन्य संपर्कों के माध्यम से यदि 'दिशा' को महिला हिंसा या अन्याय के किसी गंभीर केस का पता चलता है तो 'दिशा' के सदस्य वहां जाकर जांच-पड़ताल करते हैं व वकीलों, डॉक्टरों व मीडियाकर्मियों के सहयोग से जरूरी सहायता पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अन्याय व हिंसा झेल रहीं महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए मासिक बैठकों का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर से महिलाएं और उनके परिवार के सदस्य पहुंचते हैं।
 
इस तरह कई स्तरों पर प्रयास कर 'दिशा' बहुत कठिनाई झेल रहीं सैकड़ों महिलाओं की समस्याओं का समाधान इस हद तक कर सकी है कि वे सामान्य जीवन की ओर लौट सकीं। इस तरह के कुछ गंभीर केसों के आकलन से पता चलता है कि एक ही केस को सुलझाने में कितनी कठिनाइयों व जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
 
5 वर्षीय 'र' जब अपने गांव में पिता का खाना उन्हें देने जा रही थी तो रास्ते में ही उसका अपहरण कर उससे बलात्कार किया गया। इसके बाद उसकी स्थिति इतनी तेजी से बिगड़ी कि माता-पिता तक को लगा कि अब इसका जीवन बचाना बहुत कठिन है। 'दिशा' को सूचना मिलते ही कार्यकर्ता तुरंत पहुंचे और पुलिस को जानकारी देते हुए बच्ची को तुरंत अस्पताल पहुंचाया। 
 
डॉक्टरों ने कहा कि जरा भी देरी होने पर बच्ची की मृत्यु हो सकती थी। पर एक अन्य खतरा सामने था, क्योंकि बलात्कारी बच्ची की हत्या करना चाहते थे ताकि उनकी पहचान न हो सके। 'दिशा' ने बहुत प्रयास कर बच्ची को एक अन्य राज्य के बाल संरक्षण गृह में भिजवाया। बलात्कारियों को 10 वर्ष कारावास की सजा हुई।
 
'न' एक 15 वर्षीय अबोध लड़की थी जिसे पड़ोस के एक लड़के ने गुमराह किया व अपने साथ हरिद्वार भगाकर ले गया। यहां उसने लड़की को कुछ गुंडों को बेच दिया जिन्होंने 'न' से बलात्कार किया। इस तरह उसे कई बार बेचा गया व अंत में वह पंचकुला पहुंची। यहां उसे अपने गांव का ट्रक ड्राइवर नजर आ गया तो उसने चुपके से उसे कह दिया कि मेरे माता-पिता और 'दिशा' से कह देना कि मुझे यहां से बचा ले जाएं। 
 
'दिशा' के कार्यकर्ता पता प्राप्त कर तुरंत पंचकुला पहुंचे व स्थानीय पुलिस की सहायता से 'न' को बचाया। पर अब तक 'न' एक बच्चे की मां बन चुकी थी व उसके माता-पिता ने दोनों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। 'दिशा' ने बहुत मेहनत कर उसके लिए दूल्हा खोज निकाला व इस बेहद दर्दभरी कहानी का सुखद अंत तब हुआ, जब विवाह के बाद वह सुखी पारिवारिक जीवन की ओर वास्तव में लौट सकी।
 
'त' के पहले पति ने उसे छोड़ दिया था व उसे अपनी बेटी के साथ कभी यहां, तो कभी वहां भटकना पड़ रहा था। इन स्थितियों में उसे गलत पहचान वाले एक व्यक्ति के विवाह का प्रस्ताव भी स्वीकार करना पड़ा। कुछ समय बीत गया तो यह व्यक्ति अपनी सौतेली बेटी पर बुरी नजर रखने लगा। 'त' ने घबराकर 'दिशा' को सारी स्थिति बताई। उचित समय पर 'दिशा' ने 'त' को बचा लिया व फिर उचित वर खोजकर उसका विवाह करवाया। इसके बाद उसका पारिवारिक जीवन ठीक रहा।
 
16 वर्षीय दलित बालिका 'र' अपने गांव में मजदूर माता-पिता के लिए चाय लेकर जा रही
थी तो उसे गन्ने के खेत में घसीटकर उससे बलात्कार किया गया। उसे बहुत रक्तस्राव हुआ। 'दिशा' के कार्यकर्ताओं ने उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया, पर यहां डॉक्टर ने उससे अनुचित व्यवहार किया। किसी तरह इलाज की व्यवस्था की गई, पर फिर बलात्कार करने वालों के परिवार से जुड़े असरदार लोग इस परिवार और 'दिशा' पर दबाव बनाने लगे कि अपनी शिकायत वापस लीजिए, पर वे इस दबाव के आगे नहीं झुके। केस चला व जिन पर आरोप लगे थे उन्हें सजा मिली।
 
इन उदाहरणों से पता चलता है कि महिला हिंसा व अन्याय के विभिन्न मामलों से जूझते हुए बहुत कठिन, जटिल व तनावभरी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। एक-एक जटिल मामले को सुलझाने में कई बार महीनों तक प्रयास करना पड़ता है।
 
'दिशा' के प्रयासों का एक बेहद प्रेरणादायक पक्ष यह रहा है कि कुछ कठिन संघर्षों के दौरान बहुत उत्पीड़न सहने पर भी कार्यकर्ताओं ने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। यह स्थिति पठेड़ के शराब-विरोधी आंदोलन के दौरान देखी गई, जब असामाजिक तत्वों के डराने-धमकाने के अनेक प्रयासों के बावजूद कई सप्ताहों तक शराब-विरोधी प्रयास जारी रहे। इसके बाद सहारनपुर में अधिक व्यापक प्रदर्शन का आयोजन किया गया तो 'दिशा' की अनेक कार्यकर्ताओं को पुलिस ने बहुत बेरहमी से लाठियों से मारा व अनेक घायल कार्यकर्ताओं को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने शराब का ठेका पठेड़ गांव से हटाने की मांग को तब तक नहीं छोड़ा, जब तक कि उनकी यह मांग स्वीकार नहीं की गई। 
 
एक अन्य अवसर पर 'दिशा' के कार्यकर्ताओं ने निर्वाचित जनप्रतिनिधि जीनत नाज से हुए अन्याय का विरोध किया तो भी उन्हें पुलिस की बहुत मारपीट सहनी पड़ी, पर इस बार भी उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय को नहीं छोड़ा।
 
 
'दिशा' के इन प्रयासों का एक अन्य उम्मीद जगाने वाला पक्ष यह है कि जिन महिलाओं की
अन्याय व हिंसा से रक्षा करने में 'दिशा' ने सहायता की, बाद में उनमें से कुछ महिलाओं ने 'दिशा' के साथ मिलकर अन्य महिलाओं की हिंसा से रक्षा करने का कार्य बहुत हिम्मत व उत्साह से किया। ऐसी ही एक महिला हैं नसीमा जिन्होंने दो जिलों में महिला हिंसा विरोधी कार्य बहुत निष्ठा से किया है। नसीमा ने कहा कि जब अन्याय से त्रस्त महिलाओं को एक व्यापक कार्य के लिए बाहर निकलने का अवसर मिलता है, तो वे तितलियों की तरह उड़कर आकाश छू लेना चाहती हैं।
 
(भारत डोगरा प्रबुद्ध एवं अध्ययनशील लेखक हैं)

साभार- सर्वोदय प्रेस समिति
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