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नई पार्टी बनाकर कैप्टन खुद का और मनप्रीत बादल का इतिहास दोहराएंगे!

नई पार्टी बनाकर कैप्टन खुद का और मनप्रीत बादल का इतिहास दोहराएंगे!
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अनिल जैन

, मंगलवार, 2 नवंबर 2021 (18:33 IST)
कांग्रेस से अलग हो चुके पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी अलग पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। नई पार्टी के पंजीकरण और चुनाव चिन्ह हासिल करने के लिए उनकी ओर से चुनाव आयोग में आवेदन भी किया जा चुका है। उनकी पार्टी का नाम पंजाब लोक कांग्रेस होगा। कैप्टन की पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ तालमेल करके पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। उनकी इस पहलकदमी को कॉर्पोरेट नियंत्रित मीडिया कांग्रेस के लिए नुकसानदेह बता रहा है।
 
लेकिन पंजाब के मौजूदा राजनीतिक हालात बताते हैं कि अगर कैप्टन अपने इस ऐलान पर सचमुच अमल करते हैं, यह कांग्रेस के बहुत बड़ी राहत की बात होगी। ऐसा पहली बार नहीं होगा कि अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाएंगे। अपने करीब 5 दशक के राजनीतिक सफर वे पहले भी ऐसा प्रयोग कर चुके हैं और उसके असफल होने पर कांग्रेस में लौटे थे। अलग पार्टी बनाने का पहला प्रयोग उन्होंने 1992 में शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर किया था।
 
गौरतलब है कि कैप्टन ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार यानी स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई से क्षुब्ध होकर कांग्रेस छोड़ दी थी और अकाली दल में शामिल हो गए थे। अलग होकर ही उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाकर खुद को आजमाया था लेकिन बुरी तरह नाकामी हाथ लगने पर फिर से कांग्रेस में लौट आए थे।
 
इस बार भी जिन हालात में कैप्टन नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, उसमें ज्यादा संभावना इसी बात की है कि वे न सिर्फ अपना बल्कि 10 साल पुराना मनप्रीत बादल का इतिहास भी दोहराएंगे। गौरतलब है कि मनप्रीत बादल ने 2012 में शिरोमणि अकाली दल से अलग होकर और अपनी अलग पार्टी बनाकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और करीब साढ़े 4 दशक बाद पहली बार किसी पार्टी के लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने का रास्ता साफ किया था।
 
मनप्रीत बादल पंजाब के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले प्रकाश सिंह बादल के भतीजे हैं और 2007 में बनी बादल सरकार में वित्तमंत्री थे। इस तरह अपने चाचा की सरकार में उनकी हैसियत नंबर 2 के मंत्री की थी। वे चाहते थे कि प्रकाश सिंह बादल के बाद पार्टी की कमान उनके हाथ में आए और वे मुख्यमंत्री बनें। लेकिन उनको पता था कि ऐसा होगा नहीं और अकाली दल की कमान सुखबीर बादल के हाथ में ही जाएगी। इसलिए उन्होंने अपने चाचा के खिलाफ बगावत करके पंजाब पीपुल्स पार्टी बनाई थी और 2012 का विधानसभा का चुनाव लड़ा।
 
मनप्रीत बादल के अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने का अकाली दल को यह फायदा हुआ था कि सरकार विरोधी वोट उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच बंट गए थे जिससे अकाली दल अपने वोट घटने के बावजूद लगातार दूसरी बार सत्ता में आ गया था। मनप्रीत बादल की पार्टी 1 भी सीट नही जीत पाई थी।
 
तो जो काम 2012 में अकाली दल के लिए मनप्रीत बादल ने किया था, वही काम इस बार कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह करेंगे। अगर अमरिंदर सिंह अकेल चुनाव लड़ने का फैसला करते तो शायद कांग्रेस को फायदा पहुंचने की संभावना नहीं रहती, क्योंकि आखिर साढ़े 4 साल तक तो पंजाब में उन्होंने ही सरकार चलाई है इसलिए सरकार से नाराज वोट उनको नहीं मिलते। लेकिन चूंकि वे भाजपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे, इसलिए सरकार विरोधी वोटों का एक हिस्सा उनके खाते में भी जाएगा। ऐसा होने पर सीधा फायदा कांग्रेस को होगा।
 
गौरतलब है कि पंजाब में कांग्रेस का मुख्य मुकाबला अकाली दल और आम आदमी पार्टी से है। अगर इन दोनों पार्टियों में से किसी भी एक की तरफ सरकार विरोधी वोट का ध्रुवीकरण होता तो कांग्रेस को नुकसान होता। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास जाट सिख वोट के अलावा दूसरी पूंजी नहीं है और वही वोट अकाली दल की भी पूंजी है और उसी वोट का एक हिस्सा आम आदमी पार्टी के साथ भी रहा है।
 
अगर कैप्टन और भाजपा का गठबंधन इस वोट में सेंध लगाता है और चरणजीत सिंह चन्नी के रूप में दलित मुख्यमंत्री बनाए जाने से अगर 32 फीसदी दलित वोट एकमुश्त कांग्रेस को मिलता है और 31 फीसदी ओबीसी वोट का कुछ हिस्सा भी कांग्रेस के साथ जाता है तो वह दोबारा चुनाव जीत सकती है। सूबे में मुस्लिम और ईसाई आबादी 3 फीसदी से कुछ ज्यादा है। उसका वोट भी कांग्रेस के साथ ही जाएगा।
 
हालांकि अमरिंदर सिंह अपनी नई पार्टी की संभावनाओं को लेकर बहुत ज्यादा आशान्वित हैं। उन्हें लगता है कि उनकी नई पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस का एक बड़ा हिस्सा उनके साथ आ जाएगा। हालांकि इस बात की संभावना बहुत कम है, फिर भी कांग्रेस सतर्क है। पार्टी के नए प्रभारी प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी उन नेताओं की सूची बना रहे हैं, जो कांग्रेस छोड़कर कैप्टन की पार्टी में जा सकते हैं। जिस नेता के बारे में जरा भी यह संदेह है कि वह कैप्टन के साथ जा सकता है, उससे बात की जा रही है और शिकायतों और नाराजगी को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इस काम में मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी प्रमुख रूप से जुटे हुए हैं।
 
कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि कैप्टन के साथ जाने वाले संभावित नेताओं की सूची बहुत लंबी नहीं है। जो नेता विभिन्न कारणों से नाराज हैं, उनमें से भी बहुत कम कैप्टन के साथ जाना चाहते हैं। पार्टी के विधायकों में तो 2-3 ही ऐसे हैं, जो कैप्टन के साथ जा सकते हैं। इस सिलसिले में कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि अगर कैप्टन में हिम्मत होती तो वे पत्नी और पटियाला से कांग्रेस की सांसद परनीत कौर से ही इस्तीफा दिलवाकर उनको उपचुनाव लड़ाने और जिताने की चुनौती स्वीकार कर लेते। अगर कैप्टन ऐसा करते तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता था और ज्यादा लोग पार्टी छोड़कर उनके साथ जा सकते थे। लेकिन ऐसा करने के बजाय कैप्टन ने तो अपनी अलग पार्टी का ऐलान करने के साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि उनकी पत्नी कांग्रेस की सांसद हैं और वे कांग्रेस नहीं छोड़ रही हैं। कैप्टन के इस बयान के बाद तो कांग्रेस के दूसरे नेताओं के उनके साथ जाने की संभावना और भी कम हो गई है।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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