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मोदी का संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण

शरद सिंगी
शनिवार, 28 सितम्बर 2019 (19:02 IST)
भारत ने संसार को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं
 
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक बहुत ही पवित्र परिकल्पना और सार्थक विचार के आधार पर हुई थी। संयुक्त राष्ट्र चार्टर 4 प्रमुख उद्देश्यों को निर्धारित करता है- दुनियाभर में शांति और सुरक्षा बनाए रखना। राष्ट्रों के बीच संबंधों को विकसित करना। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या मानवीय अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना तथा मानवाधिकारों का संरक्षण।
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किंतु धीरे-धीरे इस वैश्विक मंच का इस्तेमाल पाकिस्तान जैसे कुछ देशों ने अपनी घरेलू राजनीति और दूसरे देशों के प्रति विषवमन के लिए आरंभ कर दिया तथा इस मंच की गरिमा को इतनी क्षति पहुंचाई कि इस मंच को कोई देश अब गंभीरता से नहीं लेता।
 
यद्यपि यह एक ऐसा मंच बन सकता था जिस पर विश्व के नेता खड़े होकर विश्व का मार्गदर्शन कर सकते थे। विश्व की समस्याओं से निपटने के लिए साझा रणनीति बना सकते थे। विश्व को संक्रामक बीमारियों, सामाजिक कुरीतियों, वर्णभेद और गरीबी से मुक्त करने के लिए सामूहिक प्रयास कर सकते थे। किंतु यहां तो सब अपनी ढपली और अपना राग लेकर ही पहुंचते हैं।
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ट्रंप के उद्घाटन भाषण को यदि आपने सुना हो तो वर्तमान विश्व की परिस्थितियों पर उनकी चिंता वाजिब लगती है। अमेरिका हो या भारत, सभी देशों को अपनी सीमाओं की सुरक्षा करनी है। कुछ देशों ने मिलकर पूरे विश्व की शांति को खतरे में डाल रखा है। यदि आतंकियों पर कुछ देशों की सरकारों की सरपरस्ती न हो तो उनका सफया करना कोई मुश्किल काम नहीं है। किंतु ये देश ऐसे हैं जिनके आका आतंकी बने हुए हैं, सरकार तो बस मुखौटा है।
 
मोदी का अपना भाषण एक विश्व नेता की तरह था जिन्होंने विस्तार से बताया कि उनकी सरकार, आम और गरीब जनता के हितों का ध्यान रखते हुए अपनी विभिन्न योजनाओं को कितनी रफ्तार से आगे बढ़ा रही है। भारत बहुत बड़े पैमाने पर सफलतापूर्वक इन योजनाओं को लागू कर रहा है। विकासशील राष्ट्र भारत के अनुभवों का लाभ ले सकते हैं।
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दूसरी ओर भारत अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों के प्रति भी सजग है और जलवायु संकट को रोकने के प्रति योगदान देने वाले अग्रणी देशों में से एक है। साथ ही उन्होंने भारत के दर्शन को उद्धृत करते हुए जनकल्याण से जगत कल्याण की बात की और आतंक की समस्या से एकजुट होकर निपटने का आव्हान किया।
 

बाद में इसी संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से हमने इमरान को मातम मनाते भी देखा। जिनके पास गर्त में जाते अपने देश के बारे में बताने के लिए कुछ नहीं था, ऊपर से विश्व को नसीहत और धमकी देने लगे। ह्यूस्टन के कार्यक्रम को देखने के बाद भी जिनकी अकल पर पर्दे पड़े हैं।
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ये ऐसे दिवालिए देश के वजीरे आजम हैं जिसके पास विश्व को देने के लिए न कोई दर्शन है, न इतिहास। न विज्ञान है और न ही अर्थशास्त्र। विश्व को ये दे सकते हैं तो केवल दूषित जिहादी विचार ही। जहां जिहाद की कल्पना को रूहानी बताने वाले कट्टरपंथी रहते हैं। जिनकी अपनी औकात नहीं, वे दूसरों की जमानत के लिए खड़े हैं। जिन्हें सपने देखने की मनाही है, वे क्या भविष्य की कल्पना करेंगे?
 
मजे की बात यह है कि न्यूयॉर्क में इमरान, राष्ट्रपति ट्रंप के साथ प्रेस वार्ता में अपने हाथ में तसबीह (माला) जपते दिखाई दिए। पाठकों को जानकर गुदगुदी होगी कि टोना-टोटका करने वालीं उनकी वर्तमान बेगम ने उन्हें नसीहत देकर भेजा था कि इसको ट्रंप के सामने घुमाने से टोना-टोटका होगा और ट्रंप कब्जे में आ जाएंगे।
 
ध्यान रहे, ये वही इमरान खान हैं, जो प्लेबॉय के रूप में दुनिया में मशहूर थे और वही आज दुनिया के सामने माला जप रहे हैं। आधुनिक भौतिक संसाधनों और तकनीकों का उपयोग तो उन्हें करना है किंतु आधुनिक बनना नहीं है। जिहाद उनका एक राजनीतिक हथियार है। ऐसे देश का वजीरे आजम जब अंतरराष्ट्रीय मंच से बोलेगा तो विषवमन ही करेगा।
 
दोनों के भाषणों में वैषम्य था। एक विश्व मंच से विश्व को संबोधित कर रहा था तो दूसरा नुक्कड़ की चुनावी रैली में बोल रहा था। प्रधानमंत्री मोदी ने जहां विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध देने की बात की तो इमरान ने विश्व को युद्ध की धमकी दे डाली!
मोदी ने एक विश्व की बात की तो उसने एक अल्लाह की। प्रधानमंत्री ने तमिल कवि को उद्धृत करते हुए 'एक कुटुम्ब' की बात की तो दूसरी ओर वजीरे आजम ने इस्लामोफोबिया का गलत बताते हुए आतंकी मुसलमानों की पैरवी की। दोनों के भाषणों के स्तर में कोई तुलना नहीं थी। एक ने विश्व को अपने में समाहित करने की कोशिश की और दूसरे ने आसमान में थूकने की।

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