भारतीय राजनीति में परिवारवाद का मुद्दा उठता रहता है। इस मामले में इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या राजनीतिक परिवारवाद लोकतांत्रिक भावना के प्रतिकूल है, क्या वह संविधानसम्मत नहीं है? अगर कोई व्यक्ति पात्रता की परिधि में आता है, पर राजनीतिक पृष्ठभूमि से है और चुनाव लड़ता है, तो क्या वह लोकतांत्रिक भावना के प्रतिकूल और संविधान का उल्लंघन होता है?
चुनावी राजनीति में सबसे अहम भूमिका जनता की होती है। उसे ही फैसला लेना होता है कि वह राजनीतिक परिवार के प्रत्याशी को चुने या ग़ैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशी को। ऐसे में राजनीतिक परिवार को मुद्दा बनाने का क्या औचित्य है, क्या संगति है, क्या तर्क है? समय काफ़ी बदल चुका है। अब वह समय नहीं रहा कि केवल पारिवारिक पृष्ठभूमि के बल पर कोई प्रत्याशी चुनाव जीत जाए। अगर एक बार जीत भी गया, तो आगे वही टिकेगा जो मतदाताओं के समक्ष अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगा अन्यथा वह फुसफुसा पटाखा ही साबित होगा।
ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद को स्वीकार्यता मिली हुई है इसलिए वे परिवारवाद का मुद्दा नहीं उठातीं। गिनी-चुनी पार्टियां ही राजनीतिक परिवारवाद की आलोचना करती पाई जाती हैं। इनमें देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा शीर्षस्थ है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या स्वयं भाजपा परिवारवाद से मुक्त है?
ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिंधिया भाजपा की वरिष्ठ नेता रहीं, कई बार लोकसभा सदस्य रहीं। उनकी पुत्री वसुंधरा राजे भाजपा से राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं। वसुंधरा की बहन यशोधरा राजे मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार में पहले भी मंत्री रहीं, वर्तमान में भी हैं। राजमाता विजया राजे सिंधिया के पुत्र और माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया पहले कांग्रेसी थे। वह कुछ समय पहले भाजपा में शामिल हुए, उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया गया और वर्तमान केन्द्रीय सरकार में मंत्री पद से नवाज़ा गया।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं और उनके पुत्र संदीप सिंह उप्र सरकार की भाजपा सरकार में मंत्री हैं। भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह गौतमबुद्धनगर से भाजपा विधायक हैं। भाजपा के कोषाध्यक्ष और अटलबिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे वेदप्रकाश गोयल के पुत्र पीयूष गोयल वर्तमान केन्द्र सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हैं। हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रहे प्रेमकुमार धुमल के पुत्र अनुराग ठाकुर वर्तमान केन्द्रीय सरकार में खेल और सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री राव वीरेन्द्र सिंह के पुत्र राव इन्द्रजीत सिंह वर्तमान केन्द्रीय सरकार में सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग के स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री है।
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के पुत्र नीरज शेखर भाजपा से राज्यसभा सदस्य हैं। उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवतीनंदन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी यूपी की भाजपा सरकार में मंत्री रहीं और वर्तमान में इलाहाबाद से भाजपा की लोकसभा सदस्य हैं। रीता बहुगुणा जोशी के भाई विजय बहुगुणा उत्तराखंड की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री रहे। विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा उत्तराखंड की भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
उप्र सरकार और केन्द्र सरकार में मंत्री रहे राजमंगल पांडे के पुत्र राजेश पांडे भाजपा से उप्र के विधानसभा और विधान परिषद् सदस्य रहे। पिछली लोकसभा में भाजपा की ओर से पड़रौना से सांसद रहे। उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह के पुत्र फतेहबहादुर सिंह पिछली उप्र सरकार में मंत्री रहे। वर्तमान में कैम्पियरगंज से भाजपा विधायक हैं।
उप्र सरकार में मंत्री रहे, वरिष्ठ भाजपा नेता रवीन्द्रकिशोर शाही के भतीजे सूर्यप्रताप शाही उप्र सरकार में मंत्री हैं, पहले भी रहे। उप्र सरकार के पूर्व मंत्री और मप्र के पूर्व राज्यपाल लालजी टंडन के पुत्र आशुतोष टंडन उप्र की पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रहे और वर्तमान में लखनऊ पूर्व से विधायक हैं। मनकापुर रियासत के राजा रहे आनन्द सिंह उप्र सरकार में मंत्री और लोकसभा सदस्य रहे। उनके पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह वर्तमान में गोंडा से भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं। कैसरगंज से भाजपा के लोकसभा सदस्य ब्रजभूषण शरण सिंह के पुत्र प्रतीकभूषण सिंह गोंडा से भाजपा विधायक हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए, उन्हें विधान परिषद सदस्य बनाया गया। वर्तमान में उप्र सरकार में मंत्री हैं।
पूर्व विधायक कंवरपाल सिंह के पुत्र प्रदीप कुमार भाजपा की ओर से कैराना के लोकसभा सदस्य हैं। हुकुम सिंह भाजपा से उप्र सरकार में मंत्री और कैराना के लोकसभा सदस्य रहे। उनकी पुत्री मृगांका सिंह को पहले लोकसभा के लिए, फिर विधान सभा के लिए टिकट दिया गया यद्यपि उन्हें सफलता नहीं मिली। लोकसभा के पूर्व सदस्य किशनपाल दिलेर के पुत्र राजवीर दिलेर हाथरस से भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं।
उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री रहे मुलायम सिंह यादव के समधी हरिओम यादव को भाजपा ने 2022 में सिरसागंज (फिरोजाबाद) विधान सभा क्षेत्र से टिकट दिया यद्यपि वह सफल नहीं हो सके। मुलायम सिंह यादव की छोटी पुत्रवधू अपर्णा यादव और साढ़ू प्रमोद गुप्त को भाजपा में शामिल किया गया। 2022 के उप्र विधान परिषद् चुनाव में भाजपा ने विधान परिषद के पूर्व सभापति रमेश यादव के पुत्र आशीष यादव को मथुरा-एटा-मैनपुरी से, सपा विधायक रमाकांत यादव के पुत्र अरुणकांत यादव को आजमगढ़ से, विधायक राकेश प्रताप सिंह के भाई दिनेश प्रताप सिंह को रायबरेली से और विधायक सुनील दत्त द्विवेदी के चचेरे भाई प्रांशु दत्त द्विवेदी को इटावा-फ़र्रुख़ाबाद से प्रत्याशी बनाया जिसमें अरुण कांत यादव को छोड़कर सभी विजयी हुए।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई के पुत्र बसवराज बोम्मई कर्नाटक की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के उप मुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे की पुत्री पंकजा मुंडे महाराष्ट्र की भाजपा सरकार में मंत्री रहीं और वर्तमान में भाजपा की राष्ट्रीय सचिव हैं। गोपीनाथ मुंडे की दूसरी पुत्री डॉ. प्रीतम मुंडे बीड से भाजपा की लोकसभा सदस्य हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता रहे प्रमोद महाजन की पुत्री पूनम महाजन उत्तर-मध्य मुम्बई से भाजपा की लोकसभा सदस्य हैं। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवाजी राव नीलंगेकर के पौत्र सम्भाजी पाटिल नीलंगेकर नीलंगा से विधायक बने और पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रहे।
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेन्द्रकुमार सखलेचा के पुत्र ओमप्रकाश सखलेचा और यहीं से राज्यसभा सदस्य रहे कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग मप्र की वर्तमान भाजपा सरकार में मंत्री हैं। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी की पुत्री ऋतु खंडूरी भूषण कोटद्वार से विधानसभा सदस्य हैं और विधानसभा की अध्यक्ष हैं। ऐसे ही बहुत-से उदाहरण मिल जाएंगे।
उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि भाजपा में भी अन्य पार्टियों की तरह परिवारवाद है यद्यपि वह स्वीकार नहीं करती और उसके कुछ नेता अन्य पार्टियों के परिवारवाद की आलोचना करते नहीं थकते। ये दोहरे मानदंड गले से नहीं उतरते। ख़ुमार बाराबंकवी का शेर बरबस याद आता है- दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए, आईना सामने रख लिया कीजिए।
राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों का राजनीति में अवतरण लोकतांत्रिक भावना के अनुकूल और संविधानसम्मत है। दरअसल इस मामले में जनता जनार्दन की भूमिका महत्वपूर्ण और निर्णायक होती है। उसे ही तय करना होता है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि का प्रत्याशी उपयुक्त है या ग़ैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि का। खुला खेल फ़र्रुख़ाबादी! वैसे भारतीय राजनीति में परिवारवाद राजनीतिक मजबूरी है। जब पार्टियों को लगता है कि राजनीतिक परिवार का प्रत्याशी चुनाव जीत सकता है तो वे उसे टिकट देने में नहीं हिचकतीं। भारतीय राजनीति में परिवारवाद समाप्त करना निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता। इसलिए इसका भौकाल खड़ा करना, दहाड़ें मारकर हाय-तौबा मचाना अर्थहीन है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala