Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

Olympics : खिलाड़ी तो देते हैं सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें...

स्मृति आदित्य
जीत गए तो पुरस्कारों की बरसात, मगर हार गए तो????
 
खेल, खेल भावना, खिलाड़ी...बहुत चर्चे हैं इन दिनों... हम जो घरों में बैठकर ओलंपिक देख रहे हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर्स चस्पा कर रहे हैं, हम जो उम्मीदों का बोझ, अपेक्षाओं का पहाड़, अरमानों का वजन अपने खिलाड़ियों पर लाद रहे हैं... क्या कभी सोचा है उन तेजस्वी और ऊर्जस्वी किरदारों के बारे में... कहां से आए हैं, कैसे आए हैं, कितना सफर तय किया है, वहां तक पंहुचने में कितनी जान की बाजी लगाई है.. हर पल रिजेक्शन और सिलेक्शन के बीच कितनी बार उनकी सांसें थमी है, फिर भी अपने प्रदर्शन के लिए मन के भीतर आग जलाए रखी है...

और फिर दौड़ते दौड़ते मन को सुस्थिर और मजबूत रखते हुए एक दिन होता है उनके सामने वह मैदान जब उन्हें अपना 100 प्रतिशत देकर करिश्मा रचना है... क्या कुछ होता होगा दिमाग में.... अपना देश, अपनी धरती, अपना राष्ट्रगान, अपना तिरंगा, मां की मन्नत, पिता का प्यार, बहन की बातें, भाई का भरोसा... कोच की ट्रेंनिंग, आपसी राजनीति और भी जाने क्या क्या..... 
 
जीत गए तो पुरस्कारों की बरसात हो जाएगी, तारीफों के ढेर लग जाएंगे मगर हार गए तो???? उफ कितनी कठोर परीक्षा है, हम हार के लिए भारतीय मानस को अब तक तैयार नहीं कर सके हैं.. .. वे जो भारतीय जिन्हें सिर्फ अपनी कलम या जुबान चलानी है, मैदान में आकर दो दो हाथ कैसे किए जाते हैं वह नहीं जानते, ना ही जानना चाहते हैं... ऐसी तमाम जानकारियां वे रखते हैं संभाल कर तब के लिए जब खिलाड़ी जीत जाता है तब परोसने के लिए.... उनके लिए खिलाड़ी बस टीवी पर चमकने वाले दो किरदार हैं जिन्हें जीत कर ही आना है... 
 
हम दर्शकों का मन कभी निराशा में डूब जाता है, कभी हम खिलाड़ी को कोसने लगते हैं, कभी पत्थर बरसा देते हैं, कभी लानत-मलामत और कभी कभी मन रोमांचित भी होता है.. .. लेकिन हम तब संवेदनशील नहीं होते,  सहनशील नहीं होते जब उन्हें हमारी तरफ से इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है. ... 
 
आप देखिए पूरे भीगे मन से इन मासूम और कर्मशील चेहरों को .... पसीने से भीगे, खून से सने, आंसूओं से सराबोर, सांसों की रफ्तार पर काबू करते क्या ये आपको किसी तपस्वी से कम लगते हैं... सालों की साधना और तपस्या यहां भी तो लगी है न... क्या ये सीमा पर बैठे किसी जवान से कमतर हैं? 
 
इनकी संघर्ष की कहानियां बस दूसरों से शेयर ही करने के लिए नहीं है कि ये कहानियां अपने आपको सुनाने और समझाने के लिए भी हैं... मन की गहराइयों के भीतर उतारने के लिए भी हैं... सोचने और सुविचारने के लिए भी हैं... 
 
देखिए ध्यान से इनको, इनकी तस्वीरों को पसीने की बूंदें ऐसे लरज रही है जैसे गुलाब जल हो.... खून ऐसे रिस रहा है जैसे पानी हो... उसमें कभी दर्द ही न रहा हो.... 
 
अपनी जान लगा कर खेलते और वहां तक पंहुचे ये खिलाड़ी आपसे दया नहीं मांगते लेकिन मैडल लाकर देते इन खिलाड़ियों को हमने क्या दिया है, कभी पूछिए न इमानदारी से, अपने आपसे.... हम कितने निष्क्रिय हैं.... इनके सामने.... साधन संपन्न और एयरकंडीशंड कमरों में आराम फरमाते.... कितने छोटे और बौने हैं ....

कभी सोचिएगा कमतर पोषण और अभावों के बीच से पनपती, पुष्पित, पल्लवित होती इस खास तरह की पीढ़ी के बारे में.... कभी रखिएगा अपने नाजुक पैर इनके गरीब जूतों में ... फिर आपकी हर प्रतिक्रिया सर माथे पर होगी....‍ फिलहाल इन्हें सहलाने के लिए दो शब्द दीजिए .. अपना ज्ञान कहीं और रख दीजिए....  

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

CG राज्य पॉवर कंपनी के कर्मचारियों को दिवाली का तोहफा, CM ने की 12 हजार के बोनस की घोषणा

दिवाली और छठ पूजा के लिए 7000 विशेष ट्रेनें चलाएगा रेलवे

माधवी पुरी बुच की अनुपस्थिति पर बैठक स्थगित, बीजेपी ने साधा वेणुगोपाल पर निशाना

આગળનો લેખ
Show comments