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बलूच संघर्ष और पाकिस्तान का फौजी दमन

बलूच संघर्ष और पाकिस्तान का फौजी दमन
, शनिवार, 17 जून 2017 (14:18 IST)
पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में बलूचिस्तान दरअसल अंग्रेजी राज और बंटवारे की आग में झुलस रहा है और यह आग सैकड़ों बरसों से जल रही है।  दक्षिण में ओमान की खाड़ी के उत्तर पर्वत, नदी, जंगल,  दलदल और रेगिस्तानी इलाकों का अबूझ देश बलूचिस्तान 1948 में जबरन पाकिस्तान में शामिल  किए जाने के बाद अपने अकूत प्राकृतिक संसाधनों की वजह से निरंतर टकराव का क्षेत्र बना हुआ है। पाकिस्तानी सैनिक शासकों ने प्राकृतिक संसाधनों के  दोहन और बाहरी आबादी को वहां बसाने की वजह से यह टकराव अपने चरम पर है। इसमें एक तरफ स्थानीय अलगाववादियों से पाकिस्तानी फौज लड़  रही है तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी तालिबान जैसे हिंसक सुन्नी संगठन वहां अल्पसंख्यक हिंदुओं और शिया आबादी पर हमले करते रहे हैं।
 
यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में फैला हुआ है, लेकिन  इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान में है जो कि पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है। इसी इलाके में अधिकांश बलूच आबादी रहती है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का महज 5 प्रतिशत के आसपास है। यह सबसे गरीब और उपेक्षित इलाका भी है। कई इलाकों के लोगों का आज  भी बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं हैं।
 
इस समूचे इलाके यानी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान में अपनी आजादी और स्वतंत्र शासन के लिए सक्रिय बलूच राष्ट्रवादी बृहत्तर बलूचिस्तान की मांग कर रहे हैं। यानी ये तीनों देशों में फैले हिस्सों को मिलाकर एक आजाद देश चाहते हैं।
 
वर्ष 2005 में ईरान में भी यह संघर्ष तेज हुआ था लेकिन इसका जोर पाकिस्तान वाले इलाके में ही सबसे ज्यादा है। पहली लड़ाई तो बंटवारे के फौरन बाद  1948 में छिड़ गई थी लेकिन उसके बाद के दौर  में संघर्ष तेज रहा। मौजूदा अलगाववादी संघर्ष का हिंसक दौर 2003 से शुरू हुआ। इसमें सबसे प्रमुख संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी को बताया जाता है जिसे पाकिस्तान और ब्रिटेन ने प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। इसके अलावा भी कई छोटे संगठन सक्रिय हैं जिनमें लश्कर-ए-बलूचिस्तान और बलूच लिबरेशन यूनाइटेड फ्रंट प्रमुख हैं।
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बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण प्रदेश है। उसका क्षेत्रफल कुल पाकिस्तान के आधे क्षेत्रफल से भी अधिक है मगर उसकी आबादी पाकिस्तान की आबादी का मात्र साढ़े तीन प्रतिशत ही है। बलूचिस्तान की सीमाएं अफगानिस्तान और ईरान से मिलती है। यह राज्य अधिकांश पहाड़ी है मगर इसमें पेट्रोल, गैस, तांबे और सोने के अपार भंडार हैं, जबकि बलूच पाकिस्तान में सबसे गरीब लोग माने जाते हैं।
 
बलूच राष्ट्रवादियों या अलगाववादियों की बढ़ती सक्रियता पर पाकिस्तानी फौज की कार्रवाइयों से टकराव होता है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने पाकिस्तान  सरकार के मुख्य ठिकानों पर हमले करने शुरू किए। राजधानी क्वेटा के फौजी ठिकाने, सरकारी इमारतों और फौजियों तथा सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया जाने लगा। पाकिस्तान की फौजी कार्रवाई में सैकड़ों लोगों की जानें गईं और हजारों लोग लापता बताए जाते हैं।
 
कुछ मानवाधिकार संगठनों के अनुमान के मुताबिक 2003 से 2012 के बीच पाकिस्तानी फौज ने 8000 लोगों को अगवा किया। 2008 में करीब 1100  बलूच लापता बताए जाते हैं। सड़कों पर कई बार गोलियों से छलनी और अमानवीय अत्याचार के निशानों वाली लाशें पाई जाती रही हैं।
 
लगभग 2010 से एक दूसरा टकराव पाकिस्तानी तालिबान और कट्टर सुन्नी गुटों- लश्कर-ए-झांगवी और जमायत-ए-इस्लामी के हिंदुओं और शिया समुदाय  तथा अन्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने से शुरू हुआ। ऐसे कई हमलों में हाल के वर्षों में 600 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं। इससे करीब 3 लाख लोगों के विस्थापन की आशंका है।
 
2005 में बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती और मीर बलूच मर्री ने बलूचिस्तान की स्वायत्तता के लिए पाकिस्तान सरकार को 15-सूत्रीय एजेंडा दिया था जिनमें प्रांत के संसाधनों पर स्थानीय नियंत्रण और फौजी ठिकानों के निर्माण पर प्रतिबंध की मांग प्रमुख थी। वर्ष 2006 में नवाब अकबर खान बुगती पाकिस्तानी फौज से लड़ते हुए मारे गए। उसमें पाकिस्तानी फौज के भी करीब 60 लोग मारे गए थे।
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अप्रैल 2009 में बलूच नेशनल मूवमेंट के सदर गुलाम मोहम्मद बलूच और दो अन्य नेताओं- लाला मुनीर और शेर मुहम्मद को कुछ बंदूकधारियों ने एक छोटे-से दफ्तर से अगवा कर लिया। पांच दिन बाद 8 अप्रैल को गोलियों से छलनी उनके शव एक बाजार में पड़े पाए गए। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी इसे पाकिस्तान फौज की करतूत मानती है। इस वारदात से पूरे बलूचिस्तान में हफ्तों तक बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों, हिंसा तथा आगजनी का दौर चला।
 
डॉन के अनुसार गत एक वर्ष में बलूचिस्तान में आतंकवाद की 165 घटनाएं हुई हैं जिनमें 6 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। इससे साफ  है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान से मुक्ति पाने की ज्वाला बड़ी तेजी से भड़क रही है, लेकिन भारत पर आरोप हैं कि भारत इस मामले में हस्तक्षेप कर रहा  है? किस तरह से बलूच के लोग इस पूरे मामले पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं? क्या यह भारत-पाक रिश्‍तों को भी प्रभावित करेगा? आइए जानते हैं  बलूचिस्तान से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जोकि इसके महत्व को बताने ‍के लिए पर्याप्त हैं।
 
पाक का 44 फीसदी हिस्सा : बलूचिस्तान पाकिस्तान के 4 प्रांतों में से एक है और यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है जो लगभग 44% हिस्से को  कवर करता है। इस इलाके की आबादी तकरीबन 1.3 करोड़ है, जो पाक की आबादी का मात्र 7 फीसदी है। यहां रहने वाले लोगों को बलूच कहा जाता है। बलूचिस्तान को ‘ब्लैक पर्ल’ या ‘काला मोती’ भी कहा जाता है। तेल, गैस, तांबे और सोने जैसी प्राकृतिक संपदाओं की यहां भरमार है। 
 
बलूच राष्‍ट्रवाद का उभार : इस प्रांत को चार हिस्सों में बांट दिया गया और बाद में बलपूर्वक पाकिस्तान में इसका विलय करा दिया गया। पर 1948 में  विलय के समय बलूच लोगों ने यह बात भी कही थी कि यदि मुस्लिम आबादी होने की वजह से हमें पाकिस्तान में मिलाया जा रहा है तो अफगानिस्तान  और ईरान को क्यों नहीं?
 
प्राकृतिक रूप से सम्पन्न होने के बावजूद यह हिस्सा सबसे ज्यादा पिछड़ा है। बलूच लोग सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से पाकिस्तान के बाकी हिस्से से काफी अलग हैं और वे खुद को पंजाबियों के हाथों में शोषित महसूस करते हैं। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी, पाकिस्तान का टेररिस्ट ग्रुप है। यह खास तौर पर बलूच अलगाववादी समूह के रूप में जाना जाता है। इस ग्रुप ने पाकिस्तान सुरक्षा एजेंसी और  नागरिकों पर कई हमले कराए हैं।
 
भारत के संयमित कदम की मजबूरी : भारत ने लंबे समय तक इस बात का ख्याल रखा है कि वह अन्य देशों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं दे। यही कारण है कि भारत ने कभी इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर बलूचिस्तान का मामला नहीं उठाया, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान कश्‍मीर के मामले को लगातार भड़का रहा है और इस्लामी कट्‍टरपंथियों की मदद से प्रॉक्सी युद्ध बनाए हुए है।
 
पाकिस्तान ने कई बार भारत पर आतंकवादी गतिविधियां चलाने और बलूच राष्‍ट्रवादियों की मदद करने का आरोप लगाया है। लगभग 10 दिन पहले जब क्वेटा में हुए आतंकवादी हमले में करीब 50 लोगों की मौत हो गई तो बलूचिस्तान के सीएम ने इसके लिए भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनलेसिस विंग) को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि पाकिस्तान इसे लेकर कोई भी सबूत नहीं दे पाया है।

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