Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक तनातनी में भारत के लिए स्वर्णिम अवसर

शरद सिंगी
पिछले कुछ दशकों से विश्व की अर्थव्यवस्था मुक्त बाज़ारों की ओर बढ़ रही थी और विश्व को उसके लाभ भी मिलने लगे थे किन्तु अचानक इस व्यवस्था में अवरोध आया और अवरोध भी ऐसा कि लगने लगा है कि दुनिया शायद पहली बार एक बड़े आर्थिक शीतयुद्ध की ओर बढ़ रही है। दुनिया की इसी वर्तमान आर्थिक तनातनी का विश्लेषण करता है यह लेख। अमेरिका जिसने अपने घरेलू बाज़ारों को पूरी दुनिया के लिए खोल रखा था, अब कुछ समय से उसे अहसास होने लगा है कि कुछ देश उसकी नेकनीयती और सद्भावना का दुरुपयोग कर रहे हैं विशेषकर चीन।


चीन ने अमेरिका के खुले बाज़ार की नीतियों का भरपूर लाभ लिया और अमेरिकी बाज़ारों को सस्ते चीनी माल से पाटकर अमेरिकी उद्योगों को चौपट कर दिया वहीं स्वयं अपने बाज़ारों और उद्योगों को बड़ी ही चतुराई से अमेरिकी उत्पादों से संरक्षित करके रखा हुआ है। इस तरह धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच होने वाले आयात-निर्यात के बीच फासला लंबा होता चला गया और डॉलर का बहाव पूरी तरह चीन की ओर हो गया। राष्ट्रपति ट्रंप जो स्वयं एक व्यवसायी हैं, को शुरू से ही यह स्थिति अमेरिकी हितों के प्रतिकूल लग रही थी। उन्होंने कई मर्तबा प्रयास किए कि चीन स्वयं इस धोखाधड़ी से दूर हो जाए और दोनों देशों के बीच संतुलन के साथ आयात-निर्यात हो, किन्तु चीन के नेतृत्व ने ट्रंप की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर दिया।

आज दोनों राष्ट्रों के बीच व्यवसाय का अंतर 500 अरब डॉलर वार्षिक का है, जो अमेरिकी विदेशी मुद्रा के रिसाव का एक बड़ा कारण है। अंततः राष्ट्रपति ट्रंप ने कड़ा कदम उठाते हुए चीन से आयात होने वाले स्टील और एल्युमीनियम पर पच्चीस प्रतिशत का आयात शुल्क लगा दिया, जिससे अमेरिका को पचास अरब डॉलर का राजस्व मिलेगा साथ ही अमेरिकी स्टील मिलों को सस्ते चीनी स्टील के साथ स्पर्धा से राहत भी। स्वाभाविक है चीन को यह कदम पसंद नहीं आया और उसने जवाबी कार्यवाही करते हुए अमेरिका से आने वाले उत्पादों विशेषकर कृषि उत्पादों जैसे सोयाबीन, कपास, मक्‍का आदि पर आयात शुल्क ठोक दिया।

इस कदम से अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ा। ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी कृषकों को लक्ष्य कर चीन ने इस शुल्क को लगाया है, जो उचित नहीं है। उन्होंने प्रशासन को चीनी माल की दूसरी सूची जारी करने का सुझाव दे दिया जिन पर शुल्क चस्पा किया जा सके ताकि सौ अरब डॉलर का नया शुल्क इकट्ठा किया जा सके। ट्रंपकी इस घोषणा से चीन फिर जवाबी कार्यवाही के लिए तैयार है। बात अब इतनी आगे बढ़ चुकी है कि इसका कोई सरल उपाय संभव नहीं है। उधर, विशेषज्ञों का मानना है कि इतने वर्षों से अमेरिकी जनता सस्ते चीनी माल की आदी हो चुकी है।

अब यदि सामान महंगा मिलेगा तो अमेरिका के गरीब लोगों पर भार बढ़ेगा। जैसा हम पहले भी लिख चुके हैं कि चीन के राष्ट्रपति पर अब किसी प्रकार का शासकीय अथवा जनता की ओर से अंकुश नहीं है। अतः वे नहीं झुकेंगे और उसी तरह राष्ट्रपति ट्रंप राष्ट्रवादी सरकार का नेतृत्व करते हैं। अतः वे भी नहीं झुकेंगे। स्पष्टतः इन कारणों से आर्थिक मोर्चे पर युद्ध आरम्भ हो गया है और इसका असर विश्व के बाज़ारों पर दिखने लगा है। संसार के सभी देश इस लड़ाई से दबाव में आई वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की समीक्षा करने में जुटे हैं और अपनी-अपनी नीतियों को नए समीकरणों के अनुसार, समायोजित करने में लगे हैं।

यद्यपि भारत सरकार ने भी अपने कुछ उद्योगों और बाज़ारों को संरक्षित कर रखा है, किन्तु चीन की तरह एक तरफ़ा धोखाधड़ी नहीं है, इसलिए इन परिस्थितियों में इस लेखक को लगता है कि भारत, चीन और अमेरिका के बीच इस उलझी और तनावपूर्ण स्थिति का लाभ ले सकता है, यदि उसने अपने पासे बराबर खेले तो। अमेरिका की कई कंपनियां अब निवेश के लिए दूसरे देशों में अवसर को देखेंगी, क्योंकि चीन के साथ अमेरिका की सरकार अब समझौते के मूड में नहीं है। भारत को निर्यात बढ़ाने के अवसर हैं और चीन के असहयोग से भारत में निवेश की संभावनाएं बढ़ेंगी। यही मौका है जब भारत को युद्ध स्तर पर प्रयास करना चाहिए। मार्ग का रोड़ा है भारत में निचले स्तरों पर भ्रष्टाचार।

उद्योगों के लिए सरकार ने उपयुक्त नियम तो बना दिए हैं, किन्तु विदेशी कंपनियों का मानना है कि निचले स्तरों पर अभी भी फाइलें बाबुओं की टेबल से आगे बढ़ती नहीं। यद्यपि भारत ने विश्व में 'व्यवसाय करने की सहूलियत' की अपनी रैंकिंग में इजाफा तो किया है किन्तु वह काफी नहीं है। वर्तमान स्थिति का लाभ लेने के लिए भारत को अभी बहुत प्रयास करने की आवश्यकता होगी, किन्तु सरकार और राजनीति को विपक्ष ने अभी धर्म और जाति के मुद्दों में उलझा रखा है और यह चलता रहा तो भारत के हाथ आया यह स्वर्णिम अवसर फिसल जाएगा।

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

महाराष्ट्र में कौन बनेगा मुख्यमंत्री, सस्पेंस बरकरार, क्या BJP फिर लेगी कोई चौंकाने वाला फैसला

संभल हिंसा पर कांग्रेस का बयान, बताया BJP-RSS और योगी आदित्यनाथ की साजिश

Delhi Pollution : दिल्ली में प्रदूषण घटा, 412 से 318 पर पहुंचा AQI

આગળનો લેખ
Show comments