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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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कोरोनाकाल में आचार्य चाणक्य की ये 3 बातें, सभी संकट से बचाए

कोरोनाकाल में आचार्य चाणक्य की ये 3 बातें, सभी संकट से बचाए
आचार्य चाणक्य की कई बातें आज भी प्रासंगिक हैं। चाणक्य के दौर में भी महामारी का प्रकोप था और इससे बचने के लिए कई उपाय किए जाते थे। आओ जानते हैं कि चाणक्य के विचार आपकी किस तरह से सहायता कर सकते हैं।
 
1. स्वच्छता, सुरक्षा और अनुशासन : आचार्य चाणक्य के मुताबिक महामारी के संकट में राज्य और विद्वानों द्वारा जो-जो भी सुरक्षा के उपाय बताए जा रहे हैं उनका पालन करना चाहिये है। यह आपकी और देश की सुरक्षा के लिए आवश्‍यक है। दूसरा यह कि महामारी से निपटने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखें। स्वच्छता एक ऐसा हथियार है जिससे महामारी दूर भागती है। इस दौरान व्यक्ति को आलस छोड़ अनुशासित जीवन जीना चाहिए। इसके लिए उसे समय पर खाना, सोना चाहिए। संकट की स्थिति में अनुशासित जीवन शैली व्यक्ति को महामारी से बचाने में सहयोग करती है। इस दौरान संक्रमण से बचने या लोगों को संक्रमित करने से बचने के लिए घरों में ही रहना श्रेयष्कर है। जो लोग घरों से बाहर निकलते हैं उन्हें संक्रमित होने या फिर दूसरे लोगों को संक्रमित करने का खतरा बढ़ जाता है।
2. उत्तम भोजन : आचार्य चाणक्य के अनुसार उत्तम भोजन और व्यायाम से कोई भी बीमारी भगाई जा सकती है या उसके शिकार होने से बचा जा सकता है। इससे व्यक्ति के भीतर बीमारी से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। ऐसे में व्यक्ति को अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नियमित पौष्टिक आहार लेना चाहिए और कसरत करना चाहिए।
 
3. दुष्टों से दूर रहें : संकट के दौर में आपराधिक गतिविधियां तो बढ़ती ही साथ ही छल कपट भी बढ़ जाता है। ऐसे में अचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे। इसके अलावा जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है। इसी तरह चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना। अत: उपरोक्त बातों का ध्यान रखें।

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