Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

खतरनाक ‘वायरस’ से ऐसे सुरक्षि‍त रखेगा ‘मल्टीलेयर मास्क’

खतरनाक ‘वायरस’ से ऐसे सुरक्षि‍त रखेगा ‘मल्टीलेयर मास्क’
, मंगलवार, 9 मार्च 2021 (12:22 IST)
नई दिल्ली, मास्क या फेस मास्क, एयरोसोल और व्यक्ति के बीच दीवार बनकर वायरस के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करते हैं। हालांकि इसका प्रभावी होना कई अन्य कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि मास्क किस मैटिरियल से बने हैं, किस आकार के हैं और उनमें कितनी परतें हैं।

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के एक नए अध्ययन में यह बात एक बार फिर पुष्ट हुई है। इस अध्ययन के अनुसार जब कोई व्यक्ति खांसता है तो उसके द्वारा लगाए गए मास्क के भीतरी सिरे पर बहुत तेजी से बड़े ड्रॉपलेट्स गिरते हैं। इनका आकार करीब 200 माइक्रोन से अधिक होता है।

ये बहुत तेजी से मास्क की सतह पर फैलते हैं और छोटे-छोटे हिस्सों में बंटकर एयरोसोल में परिवर्तित हो जाते हैं। इस कारण सार्स कोव-2 जैसे वायरस के संक्रमण की आशंका और ज्यादा बढ़ जाती है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक हाई स्पीड कैमरे का इस्तेमाल कर एक, दो या तीन परतों वाला मास्क पर कफ ड्रॉपलेट्स के छितराव का जायजा लिया। इसमें पाया गया कि एक परत वाले मास्क में ड्रॉपलेट्स का आकार 100 माइक्रोन से भी कम होता है, जिससे न्यून आकार में होने के कारण उनसे संक्रमण के जोखिम की आशंका बढ़ जाती है।

webdunia
इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक और संस्थान में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सप्तर्षि बसु ने इस पर कहा, 'एक परत वाले मास्क से आप खुद को तो सुरक्षित महसूस कर सकते हैं, लेकिन आपके इर्दगिर्द जमा लोग इससे सुरक्षित नहीं होंगे।'

ऐसे में कपड़े से बने तीन परत वाला मास्क या एन-95 ही वास्तविक रूप से कारगर और पूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करने में सक्षम हो सकते हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि तीन परत वाले मास्क उपलब्ध न हों तो एक परत वाले मास्क का ही कम से कम उपयोग सुनिश्चित किया जाए जो किसी न किसी प्रकार से संक्रमण को दूर रखने में मददगार होता है।

इस अध्ययन की विशेषता के विषय में प्रो बसु ने बताया कि इस मामले में पुराने अध्ययनों में यही पड़ताल की गई कि ड्रॉपलेट्स का मास्क के किनारों से कैसे रिसाव होता है, लेकिन इसमें यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि मास्क खुद इस दौरान कैसे और कितना प्रभावित होता है। खांसते समय निकलने वाले ड्रोपलेट्स के आकार और गलती के विश्लेषण के लिए शोधकर्ताओंने एक कृत्रिम ड्रोपलेट डिस्पेंसरके प्रयोग द्वारा मास्क की परत पर 200 माइक्रोन से लेकर 1.2 मिलीमीटर तक के कृत्रिम ड्रोपलेट्स उत्पन्न कर उसका अध्ययन किया

आईआईएससी द्वारा यह अध्ययन यूसी सैन डियागो और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो इंजीनियरिंग के साथ मिलकर किया गया। अध्ययनकर्ताओं ने इस शोध के निष्कर्ष शोध पत्रिका “ साइंस एडवांस” में प्रकाशित किये हैं। (इंडिया साइंस वायर)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

बात फूलों की: सीएसआईआर की प्रयोगशालाओं में विकसित हो रही फूलों की उन्नत किस्में