Special Report : कोरोना काल में बच्चों पर मंडराया कुपोषण का खतरा,गर्भवती महिलाओं पर भी संकट
6 महीने में 3 लाख बच्चों की मौत की आंशका : यूनिसेफ
देश में कोरोना महामारी का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है, पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा सवा दो लाख की संख्या को पार कर गया है। संक्रमण कितनी तेजी से फैल रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब एक दिन में नए संक्रमित मरीजों की संख्या 10 हजार का आंकड़ा छूने लगी है। ऐसे में आने वाले समय में स्थिति काफी डरावनी नजर आती है।
कोरोना संकट काल में भारत में बच्चों पर कुपोषण का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। बच्चों के लिए काम करने वाले संस्था यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट इस बात की आंशका जाहिर करती है कि कोरोना संकट काल में 6 महीने में तीन लाख बच्चों की मौत हो सकती है। भारत में पहले से ही पांच में से एक बच्चा कुपोषित था वहीं अब कोरोना ने इस संकट को और बढ़ा दिया।
कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरन देश में लाखों की संख्या में वो आंगनवाड़ी सेंटर पूरी तरह बंद हो चुके है जिनके जिम्मे बच्चों को कुपोषण से बचाने की पहली जिम्मेदारी थी। आंगनवाड़ी में काम करने वाले कर्मचारियों की ड्यूटी कोरोना संक्रमण की जांच में लगने के चलते गांव में पूरा सिस्टम दो महीने से अधिक समय से लगभग ठप्प पड़ा हुआ है।
अमेरिका के जान हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कोविड -19 के कारण जिस तरह मातृत्व और बाल स्वास्थ्य पोषण सेवाएं प्रभावित हुई है उसे देखते हुए भारत में हर महीन 49850 बच्चों की मौतें और 2398 में मातृत्व मौतें होने की आंशका है।
मध्यप्रदेश में स्थिति बेहद खराब– कुपोषण के मामले देश के पहले पांच राज्यों में शामिल मध्यप्रदेश में कोरोना ने स्थिति को और गंभीर कर दिया। कोविड-19 महामारी का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण पर पड़ा है। महामारी के चलते गर्भवती महिलाओं और नवजातों के टीकाकरण के कार्यक्रम पर भी बुरा असर पड़ा है जिसके दुष्परिणाम लंबे समय तक दिखाई देंगे।
बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था विकास संवाद ने 25 मार्च से 10 मई तक प्रदेश के 6 जिलों में 122 गांवों का अध्ययन कर जो रिपोर्ट तैयार की है वह एक बड़े संकट का इशारा करती है।रिपोर्ट के मुताबिक कोविड -19 महामारी का सबसे बुरा असर बच्चों और गर्भवती—धात्री महिलाओं के पोषण पर पड़ा है। गर्भवती माताओं की प्रति दिन शुद्ध कैलोरी में 67 फीसदी (2157 कैलोरी) स्तनपान करवाने वाली माताओं में 68 फीसदी (2334 कैलोरी) और बच्चों में 51 फीसदी (693 कैलोरी) प्रतिदिन की कमी दर्ज की गई है। साथ ही यह भी पता कि विभिन्न पोषण एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम 70 से 100 प्रतिशत तक निष्क्रिय रहे।
प्रभावित हुआ बच्चों का पोषण आहार – रिपोर्ट के मुताबिक 25 मार्च से 10 मई के दौरान 35 प्रतिशत परिवारों को कोई टीएचआर का पैकेट नहीं मिला, जबकि 38 प्रतिशत परिवारों को दो पैकेट ही मिले। इसी तरह 3 से 6 वर्ष के साठ प्रतिशत बच्चों को रेडी टू ईट फूड नहीं मिला है. जिन्हें मिला उनमें 10 प्रतिशत को 500 ग्राम सत्तू मिला है जबकि 30 प्रतिशत को 1,200 ग्राम (600 ग्राम दो हफ्ते के लिए) सत्तू ही मिला है।
वहीं आंगनवाड़ी बंद होने से कुपोषण की पहचान के लिए पिछले दो महीनों में किसी भी हितग्राही का वजन और कद नहीं नापा गया है। प्रायमरी स्कूल के 58 प्रतिशत बच्चों को मिड डे मील की जगह कोई भोजन भत्ता नहीं दिया गया है। उच्चतर स्कूलों में अनुशंसाओं के अनुसार 80 प्रतिशत छात्रों को मध्याह्न भोजन भत्ता (33 दिन के लिए 4,900 ग्राम) प्राप्त हुआ है, जबकि 20 प्रतिशत को अब भी मिलने का इंतजार है।
सतना जिले की एक गर्भवती महिला कहती हैं कि लॉकडाउन के चलते उनका नाम अब तक आंगनवाड़ी केंद्र में दर्ज नहीं हुआ है। मेरे पति मजदूर हैं चूंकि, सब कुछ बंद है, हम अपनी आहार की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं। मुझे आंगनवाड़ी से लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। सब्जियां और आवश्यक वस्तुएं अब उपलब्ध नहीं हैं और इस वजह से हमारे पास चावल और नमक के साथ सूखी रोटी या कभी-कभी सिर्फ सूखी रोटी खाने को हम मजबूर है
विकास संवाद के निदेशक सचिन जैन कहते हैं कि कोविड-19 ने पोषण और स्वास्थ्य के मोर्चे पर चुनौती और बढ़ा दी है। अब 70 दिन गुजरने के बाद इस पर व्यापक तौर पर ध्यान देना जरूरी है। अब पूरक पोषण कार्यक्रम को पूर्ण पोषण कार्यक्रम (सीएनपी) में बदलने की जरूरत है। इसमें स्व सहायता समूहों की भूमिका महत्वपूर्ण बनानी होगी। श्रमिकों के लिए पूर्ण पोषण लागू करना होगा व राष्ट्रीय खादय सुरक्षा कानून के तहत आने वाली योजनाओं को पूर्ण रूप से लागू करना जरूरी हो गया है।
लॉकडाउन से और बढ़ा संकट- लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां खो देने से और गांव लौटे प्रवासी मजदूरों के पास रोगजार के कोई साधन नहीं होने से आने वाले समय में हालात और खराब होने वाले है। स्थिति को समझने के लिए ऐसे कई उदाहरण काफी है जो मुश्किल से अपने परिवार को पेट भर पा रहे है।वेबदुनिया ने जब गांव लौटे प्रवासी मजदूरों से बात की थी तो उन्होंने साफ कहा था कि उनके सामने सबसे बड़ा संकट दो जून की रोटी का जुगाड़ करने का है।