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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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आम बजट : जानिए इन शब्दों के सही अर्थ ?

आम बजट  : जानिए इन शब्दों के सही अर्थ ?
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी) में बढ़ोतरी का असर आपकी कमाई पर पड़ता है। जीडीपी का बढ़ना नौकरीपेशा लोगों और कारोबारियों के आमदनी बढ़ना है।

 
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अगर आप पिछले एक दशक के दौरान अपना वेतन, आमदनी की तुलना कर खुद को काफी अच्छी स्थिति में समझते हैं, तो इसका कारण है कि इस दौरान जीडीपी में जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई है। उपरोक्त अवधि में जीडीपी लगभग 690 अरब डॉलर के स्तर से उछलकर करीब 2.3 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया है।

अगर ग्रोथ में आधा 0.50 फीसद का भी उछाल आता है। (अगर यह 5.5% से 6% हो जाए) तो मौजूदा जीडीपी लेवल के हिसाब से अर्थव्यवस्था में 11.5 अरब डॉलर की वृद्धि होगा। इसका अर्थ है कि करीब 700 अरब रुपए अतिरिक्त आते हैं और ये 700 अरब रुपए आपके वेतन या कमाई का हिस्सा होंगे। बाकी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए खर्च होते हैं।

वित्तीय घाटा और उधारियां : सरकार के खर्च और आमदनी का अंतर फिस्कल डेफिसिट कहलाता है। इसका अर्थ होता है कि इतनी रकम सरकार खर्च चलाने के लिए उधार लेती है। केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा इस वक्त लगभग 5.3 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। यह जीडीपी के 4% से ज्यादा है। सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि बजट घाटे को 4.1 फीसद के स्‍तर पर बनाए रखे या संभव हो तो यह 4 फीसद से भी कम हो।

बाजार के जानकारों, अर्थशास्त्रियों और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का कहना है कि 4% से ज्यादा का आंकड़ा काफी ऊंचा स्तर है। इसके चलते सरकार ज्यादा उधार लेगी तो आपके और आपके के लिए बैंक लोन कम बचेगा। लोन हासिल करने की होड़ मचेगी और ब्याज दरें बढ़ेंगी।

अगर सरकारी घाटा ज्यादा हो तो शेयर बाजार लड़खड़ा सकते हैं, ग्लोबल रेटिंग में कमी आ सकती है, विदेशी निवेश घट सकता है और इसका असर लोगों की नौकरियों और आमदनी पर पड़ता है। अगर फिस्कल डेफिसिट का बढ़ना आपके लिए आपकी आमदनी के लिए ठीक नहीं है। इसी तरह अगर फिस्कल डेफिसिट कम होता है तो आपके लिए लाभदायक होगा क्योंकि सरकार के पास खर्च के लिए अधिक राशि होती है।

विनिवेश : इस शब्द का मतलब है कि सरकार अपने उपक्रमों (पीएसयूज) में अपनी हिस्सेदारी को बेचती है या कम करती है और इस तरह से बाजार से पैसा उगाहने का काम करती है। अगर विनिवेश का लक्ष्य ऊंचा होता है तो इसका मतलब अधिक आय और कम घाटा (डेफिसिट) होता है। इसका इस्तेमाल विनिवेश से सिर्फ बजट घाटा ही कम नहीं किया जाता है वरन सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी इसके जरिए से फंड जुटाती है।

नौकरी पेशा लोगों या व्यवसाय करने वालों लोगों के लिए इसके 2 अर्थ हैं। ज्यादा सरकारी कंपनियों के शेयर बेचे जाएंगे तो बाजार में ज्यादा पैसे आएंगे। स्टॉक मार्केट्स में तेजी देखने को मिलेगी और अगर विनिवेश से फिस्कल डेफिसिट घटता है तो यह सभी के लिए अच्छा बात होगी।

सब्सिडी (राज सहायता) : सरकार खाने-पीने की चीजों, डीजल-पेट्रोल-कैरोसिन-गैस और उर्वरकों पर सब्सिडी देती है। डीजल और एलपीजी में सब्सिडी के कारण ही यह वस्तुएं हमें कम कीमतों में मिल पाती हैं लेकिन सरकार पर सब्सिडी का टोटल बिल 2.5 लाख करोड़ रुपए अर्थात जीडीपी का करीब 2.5% है।

फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के 4% से ज्यादा है। सब्सिडीज के कारण डेफिसिट ज्यादा बना रहता है। सब्सिडी में कटौती होने से आम आदमी प्रभावित होता है और सरकार डीजल के दाम नियमित अंतराल पर 50 पैसे/लीटर बढ़ाने जैसे उपाय अपनाती है। सब्सिडीज में कटौती का अर्थ यह होगा कि केंद्र सरकार राजनीतिक समर्थन खोए बगैर डेफिसिट घटा सकेगी और इस तरह और अधिक आर्थिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

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