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सैरा नरसिम्हा रेड्डी : फिल्म समीक्षा

सैरा नरसिम्हा रेड्डी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, बुधवार, 2 अक्टूबर 2019 (21:12 IST)
बाहुबली की विराट सफलता के बाद दक्षिण भारतीय सुपरस्टार्स में खलबली मच गई। अचानक उन्हें लगा कि कल का आया कलाकार प्रभास उनसे आगे निकल गया है। इससे क्या रजनीकांत और क्या चिरंजीवी, सभी में एक बड़ी सफल फिल्म देने की होड़ लग गई। करोड़ों रुपये की फिल्मों का निर्माण होने लगा। 
 
चिरंजीवी की इसी ख्वाहिश को उनके बेटे रामचरण ने पूरा करने के लिए सैरा नरसिम्हा रेड्डी का निर्माण किया है जिसमें चिरंजीवी को 'बाहुबली' अंदाज में पेश किया गया है। 
 
सैरा नरसिम्हा रेड्‍डी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और अंग्रेजों को देश से भगाने के लिए पुरजोर कोशिश की थी। इसी किरदार को चिरंजीवी ने फिल्म में जिया है। 
 
सैरा नरसिम्हा रेड्डी नामक किरदार पर बाहुबली का हैंगओवर नजर आता है यही बात फिल्म को भव्य तो बनाती है, लेकिन नकलीपन की ओर भी ले जाती है। 
 
 
परुचुरी ब्रदर्स ने फिल्म को लिखा है और सुरेंदर रेड्डी ने इसे निर्देशित किया है। इन्होंने फिल्म को तीन भागों में बांटा है। 
 
फिल्म के पहले 45 मिनट में सैरा के किरदार को स्थापित किया गया है। वह कितना बलशाली है, पराक्रमी है, निडर है, ये गुण दर्शाने के लिए दृश्य बनाए गए हैं। फिल्म का यह पार्ट बहुत बोरिंग है क्योंकि हर बात को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है जिससे यह भाग बिलकुल भी विश्वसनीय नहीं है।
 
इसके बाद दूसरे हिस्से में सैरा और एक अंग्रेज ऑफिसर के बीच के टकराव को दिखाया गया है। लगान के नाम पर जनता को परेशान करने वाले इस अफसर को सैरा मार डालता है। 
 
इस अफसर की मौत से अंग्रेजों का पारा चढ़ जाता है और वे सैरा को पकड़ने के लिए तोप, बंदूक से लैस सेना को भेजते हैं और सैरा उन्हें छकाता रहता है। यह कहानी का तीसरा भाग है। 
 
अखरने वाली बात है फिल्म की लंबाई और दोहराव। कई दृश्य बेवजह लंबे रखे गए हैं। एक पाइंट के बाद लेखक और निर्देशक के पास बताने के लिए कुछ नहीं रहा तो कहानी दोहराव का शिकार हो गई। 
 
अंग्रेजों और सैरा की लुका छिपी वाले दृश्य लगातार चलते रहते हैं और कहानी ठहरी हुई महसूस होती है। कहानी को आगे बढ़ाने वाले घटनाक्रम जोरदार नहीं है जिससे फिल्म में बोरियत भी पैदा होती है। 
 
क्लाइमैक्स में ही फिल्म थोड़ा भावुक करती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और दर्शक घर जाने के मूड में आ जाते हैं। 
 
चिरंजीवी पर बहुत ज्यादा फोकस करना भी फिल्म का माइनस पाइंट है। इससे कहानी और अन्य किरदार कमजोर हो गए हैं जिसका सीधा-सीधा असर फिल्म पर पड़ा है। रवि किशन, जगपति बाबू मुकेश ऋषि और सुदीप जैसे कलाकार साइड लाइन हो गए। 
 
हैरानी तो अमिताभ बच्चन के लिए होती है। उन्हें सिर्फ इसलिए रखा गया है कि वे नामी कलाकार हैं और इस वजह से उत्तर भारतीय दर्शक फिल्म के प्रति आकर्षित हो। अमिताभ ने यह रोल सिर्फ चिरंजीवी से मित्रता की खातिर ही किया है। नयनतारा और तमन्ना भाटिया को भी ज्यादा मौका नहीं मिला।  
 
निर्देशक सुरेंदर रेड्डी, एसएस राजामौली बनने की कोशिश में बुरी तरह विफल रहे। उनका प्रस्तुतिकरण औसत रहा। महंगा बजट और उम्दा कलाकारों का ठीक से उपयोग नहीं करना पाने का पूरा दोष उनका ही है। एक बेहतर निर्देशक इस कहानी, बजट और स्टार कास्ट के साथ बेहतर न्याय कर सकता था। 
 
फिल्म की एडिटिंग भी ठीक नहीं है। तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। संगीत के मामले में कमजोर है। 
 
चिरंजीवी का अभिनय प्रभावित करता है। इस उम्र में भी उन्होंने शानदार स्टंट किए हैं। किरदार को जरूरी एटीट्यूड दिया है और लार्जर देन लाइफ किरदार को अपने अभिनय से प्रभावी बनाया है। बड़ी आंखें उनकी एक्टिंग का अहम हिस्सा साबित हुई हैं। एक महानायक जैसे वे लगे हैं। अफसोस इस बात का है कि स्क्रिप्ट और निर्देशक उनके स्तर तक नहीं पहुंच पाए। 
 
कुल मिलाकर 'सैरा नरसिम्हा रेड्डी' अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाती। 
 
निर्माता : रामचरण 
निर्देशक : सुरेंदर रेड्डी
संगीत : अमित त्रिवेदी
कलाकार : चिरंजीवी, नयनतारा, तमन्ना भाटिया, अमिताभ बच्चन, सुदीप, रवि किशन, मुकेश ऋषि
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 50 मिनट 50 सेकंड 
रेटिंग : 2.5/5 

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