Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

पीएम नरेन्द्र मोदी : फिल्म समीक्षा

पीएम नरेन्द्र मोदी : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

अनोखा संयोग है कि 23 मई 2019 को नरेन्द्र मोदी ने धमाकेदार तरीके से दूसरी बार सत्ता हासिल की और अगले ही दिन 'पीएम नरेन्द्र मोदी' नामक फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई। 
 
वैसे चुनाव में लाभ लेने के लिए इस फिल्म को लगभग दो माह पूर्व रिलीज करने की योजना थी, लेकिन रिलीज की अनुमति नहीं मिली। रिलीज टाइम अब इतना बढ़िया हो गया है कि इससे फिल्म के कलेक्शन में थोड़ा इजाफा हो सकता है।  
 
फिल्म का निर्देशन उमंग कुमार ने किया है और पीएम नरेन्द्र मोदी उनके द्वारा निर्देशित चौथी फिल्म है। चार में से तीन उन्होंने बायोपिक बनाई है। 'मेरीकॉम' और 'सरबजीत' वे इसके पहले बना चुके हैं। 
 
'पीएम नरेन्द्र मोदी' को बायोग्राफिकल फिल्म कहना तकनीकी रूप से सही नहीं होगा। इसके पीछे दो कारण हैं: 
 
1) इसमें नरेन्द्र मोदी से जुड़ी चुनिंदा घटनाएं ही दिखाई गई हैं। 2014 में मोदी प्रधानमंत्री चुने जाते हैं और यही पर फिल्म खत्म हो जाती है। मोदी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल को पूरी तरह से गायब कर दिया गया है। 
 
2) फिल्म की शुरुआत में ही कह दिया गया है कि कुछ काल्पनिक किरदार और घटनाओं का समावेश इसमें किया गया है। सिनेमा के नाम पर छूट ली गई है। इस वजह से फिल्म देखते समय संदेह बना रहता है कि जो देख रहे हैं वो हकीकत है या कल्पना? 
 
फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया है कि कैसे मोदी बचपन से ही होशियार थे। अपने पिता की चाय की दुकान पर काम करते हुए वे लोगों की 'चाय पर चर्चा' सुना करते थे। यहां पर फिल्म को कुछ ज्यादा ही ड्रामैटिक तरीके से फिल्माया गया है। 
 
युवा अवस्था में मोदी दुविधा में थे। सैनिक बनूं, आरएसएस में शामिल हूं या संन्यासी बन जाऊं? इन प्रश्नों का जवाब खोजने के लिए वे पहाड़ों में जाकर एक साधु के साथ वे रहते हैं और उन्हें उत्तर मिलता है। ये वाला प्रकरण फिल्मी बन गया है। 
 
मोदी की शादी और उनकी पत्नी वाला प्रसंग निर्देशक और लेखक ने छोड़ दिया जबकि फिल्म देखते समय यह उम्मीद रहती है कि इस बारे में कुछ जानने को मिलेगा। 
 
आरएसएस में शामिल होने से गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सफलता का परचम लहराने वाली यात्रा को जरूर फिल्म अच्‍छे से दिखाती है। 
 
गुजरात में आए विनाशकारी भूकम्प, गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों से मोदी किस तरह निपटे थे इसमें थोड़ी अंदर की जानकारी मिलती है, जैसे दंगों के समय मोदी ने आसपास के राज्यों से मदद मांगी थी जो उन्हें नहीं मिली थी।
 
इस घटना के जरिये यह भी दर्शाया गया है कि हिंदू और मुस्लिम में मोदी कोई भेद नहीं करते और इंसानियत को वे पहले मानते हैं। किस तरह से उन्हें इस मामले में उलझाया गया था यह भी दिखाया गया है, लेकिन जजों के सामने उन्होंने किस तरह से बात रखी, कैसे अपनी पैरवी की यह बात छिपा ली गई। 
 
कहने का मतलब ये कि इस फिल्म को मोदी के फैन की तरह बनाया गया है। निर्देशक और लेखक ने वहीं बातें चुनीं जो वे दिखाना चाहते थे। दर्शकों के आगे कुछ नया या 'इनसाइड स्टोरी' को बताने का उनका कोई इरादा नहीं था। 
 
दर्शक जानना चाहते थे कि प्रधानमंत्री के रूप में 'नोटबंदी' और 'जीएसटी' जैसे कड़े फैसले मोदी ने क्यों लिए? क्या इनसे फायदा था? इन फैसलों का क्या परिणाम रहा? सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे मोदी की क्या भूमिका थी? लेकिन इन प्रसंगों का फिल्म में जिक्र नहीं है। 
 
फिल्म में कुछ दृश्य अच्‍छे हैं, जैसे मोदी का लाल चौक में झंडा फहराना (वैसे मुरली मनोहर जोशी वहां गए थे और मोदी उनके साथ थे), मोदी-शाह का जोड़ी के रूप में काम करना, अपने मंत्रियों को कर्मयोगी बनाना, टाटा को गुजरात में कार फैक्ट्री के लिए जमीन देना। 
 
विरोधी पार्टी के कुछ नेताओं का फिल्म में मजाक भी बनाया गया है, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। शायद निर्देशक ने मोदी फैंस को खुश करने के लिए इस तरह के दृश्य बनाए हैं। 
 
क्लाइमैक्स में रोमांच पैदा करने के लिए दिखाया गया है कि मोदी धमकी के बावजूद जान जोखिम में डाल कर एक सभा को संबोधित करने जाते हैं। इधर आतंकवादी सभा में घुस जाते हैं और मंच के नीचे बम लगा देते हैं। ये पूरी घटना बेहद फिल्मी है और बायोपिक में फिट नहीं बैठती। 
 
उमंग कुमार ने यह फिल्म केवल मोदी फैंस के लिए बनाई है। वे गहराई में नहीं उतरे। जल्दबाजी में उन्होंने काम किया है। मोदी विश्व की चर्चित हस्ती हैं और उन पर बायोपिक बनाने के लिए खूब तैयारी की जरूरत है। गंभीरता की जरूरत है जो उमंग कुमार के काम में नजर नहीं आती। एक बड़ा मौका उन्होंने खोया है। 
 
विवेक ओबेरॉय ने लीड रोल अदा किया है। वे मोदी कम और विवेक ओबेरॉय ज्यादा लगे हैं। उम्रदराज मोदी के रूप में फिर भी ठीक लगते हैं, लेकिन इसमें भी मेकअप का कमाल ज्यादा है। कुछ दृश्यों में उनका अभिनय अच्छा है, लेकिन पूरी फिल्म के लिए यह बात नहीं की जा सकती है। 
 
एक भ्रष्ट व्यवसायी के रूप में प्रशांत नारायण प्रभावित करते हैं। ज़रीना वहाब और मनोज जोशी के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। अन्य कलाकारों को फिल्म उभरने का अवसर नहीं देती। 
 
फिल्म 'पीएम नरेन्द्र मोदी' इतनी लोकप्रिय शख्सियत के साथ न्याय नहीं कर पाती। 
 
निर्माता : सुरेश ओबेरॉय, आनंद पंडित, संदीप सिंह 
निर्देशक : उमंग कुमार 
कलाकार : विवेक ओबेरॉय, मनोज जोशी, ज़रीन वहाब, प्रशांत नारायण
रेटिंग : 2/5 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

फिल्म 'पागलपंती' की शूटिंग के दौरान घायल हुए जॉन अब्राहम, डॉक्टर ने दी यह सलाह