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Movie Review - मैरी क्रिसमस मूवी रिव्यू: रात संगीन, सुबह रंगीन | Merry Christmas review in Hindi

विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ की अजीबो-गरीब जोड़ी है फिल्म का यूएसपी

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 12 जनवरी 2024 (13:26 IST)
Merry Christmas movie review: निर्देशक श्रीराम राघवन को 70 और 80 का दशक बहुत पसंद है और समय-समय पर यह बात उनकी फिल्मों से झलकती है। 'मैरी क्रिसमस' उस दौर की कहानी जब मुंबई को बॉम्बे कहा जाता था और एसटीडी-पीसीओ के टेलीफोन बूथ हुआ करते थे। एक रात की की कहानी है जो क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू हो कर क्रिसमस की सुबह तक पहुंचती है। शाम में दो अजनबी अलबर्ट (विजय सेतुपति) और मारिया (कैटरीना कैफ) मिलते हैं और सुबह तक उनकी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव आ जाता है। 
 
श्रीराम राघवन ने यह फिल्म मशहूर डायरेक्टर शक्ति सामंत को समर्पित की है जो उस दौर की फिल्मों के प्रति उनके प्यार को दर्शाता है। उस दौर में बनने वाली थ्रिलर्स के एलिमेंट 'मैरी क्रिसमस' में नजर आते हैं। 
 
'मैरी क्रिसमस' तेज भागती हुई थ्रिलर मूवी नहीं है। भले ही कहानी चंद घंटों की हो, लेकिन बात कहने में हड़बाहट नजर नहीं आती। सभी किरदार इस तरह से बर्ताव करते हैं मानो उनके पास वक्त की कोई कमी न हो। 'स्लो बर्न' थ्रिलर का जामा अपने प्रस्तुतिकरण में निर्देशक ने पेश किया है। 
 
फिल्म के दोनों प्रमुख किरदार दु:खी हैं। थोड़ा बताते हैं, थोड़ा छिपाते हैं। फिल्म का शुरुआती एक घंटा इसी में निकल जाता है। यह थोड़ा दिलचस्प भी है तो थोड़ा बोरिंग भी। हालांकि राघवन अपने निर्देशन के दम पर कोशिश करते हैं कि दर्शक किरदारों को सोख लें और माहौल में रम जाए। 

 
इसके बाद परतें खुलने लगती हैं और एक्साइटमेंट की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। ऐसा लगता है कि अब फिल्म खत्म हो गई है तब क्लाइमैक्स में कहानी के खुले तार आपस में ऐसे जुड़ते हैं कि अनसोचा धमाका हो जाता है।
 
कहानी के अंत में चंद मिनटों में बिना संवादों के इतना कुछ घट जाता है कि सिनेमाहॉल छोड़ते-छोड़ते भी कई बातें दिमाग में घूमती रहती है। कुछ प्रश्न उठते हैं और फिर उनके जवाब भी मिलते हैं। यहां पर निर्देशक के रूप में श्रीराम राघवन कमाल करते हैं। 
 
कुछ कमियां भी उभरती हैं जैसे दो अजनबियों का इतना जल्दी घुलना-मिलना ठीक नहीं लगता। हालांकि कुछ राज खुलने के बाद जवाब मिलते हैं लेकिन कुछ अविश्वसनीय बातों को थोड़ा विश्वसनीय बनाया जा सकता था। 

 
एक फ्रेंच नॉवेल पर आधारित इस मूवी को श्रीराम राघवन ने अपने रंग में ढाला है। एक कहानी जो शुरू में रोमांटिक लगती है थ्रिलर पर जाकर खत्म होती है। 80 के दशक का साउथ बॉम्बे, कोलाबा, रीगल सिनेमा एक किरदार की तरह नजर आते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या पर त्योहार का माहौल, घरों में रोशनियां, केक की महक और सांता बने युवा से फिल्म में शानदार माहौल बनता है।
 
दर्शक इसे श्रीराम राघवन की पूर्व में बनाई गई थ्रिलर्स 'जॉनी गद्दार' या 'अंधाधुंध' से तुलना कर सकते हैं, लेकिन श्रीराम राघवन ने 'मैरी क्रिसमस' में खुद ट्रैक चेंज किया है और टी-20 की तेजी के बजाय टेस्ट मैच की तरह खेलना पसंद किया है। 
 
फिल्म की लीड पेयर कैटरीना कैफ और विजय सेतुपति का अजीबो-गरीब जोड़ी होना एक यूएसपी है। कैटरीना कैफ अपनी एक्टिंग से दर्शकों को चौंकाती है और दिखाती हैं कि अच्छा डायरेक्टर उनसे अभिनय निकलवा सकता है। विजय सेतुपति कुछ नहीं करते हुए दिखते हैं, लेकिन बहुत कुछ कर जाते हैं। उनकी हिंदी बोलने की स्टाइल मनोरंजक लगती है। संजय कपूर, विनय पाठक, टीनू आनंद जैसे कलाकारों के किरदार स्क्रीन टाइम कम होने के बाद भी फिल्म में असर छोड़ते हैं। 
 
तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। मधु नीलाकंदन की सिनेमाटोग्राफी शानदार है और डेनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड बिलकुल दृश्यों के मुताबिक है। प्रीतम का संगीत बढ़िया है और गाने सिचुएशन में फिट हैं। 
 
मैरी क्रिसमस आपसे धैर्य मांगती है और एक शानदार टेस्ट पारी देखने जैसा मजा देती है। 

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