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गदर 2 फिल्म समीक्षा : तारा सिंह फिर चला पाकिस्तान

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 11 अगस्त 2023 (13:46 IST)
  • 66 की उम्र में भी सनी देओल का जोश और जज्बा देखने लायक 
  • अनिल शर्मा की फिल्म मेकिंग स्टाइल हुई पुरानी 
  • अमरीश पुरी की फिल्म में महसूस होती है कमी 
  • लेखक सनी देओल के लिए नहीं लिख पाए जोरदार सीन
Gadar 2 movie review: गदर एक प्रेमकथा 2001 में रिलीज हुई थी और हिंदी सिनेमा इतिहास की सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में से एक रही। इस फिल्म के कई रिकॉर्ड अभी भी कायम है। 22 साल बाद इस का सीक्वल 'गदर 2' रिलीज हुआ है। इन 22 सालों में सनी देओल नामक सितारे की रोशन बहुत मद्धिम हो गई है और अनिल शर्मा की फिल्म मेकिंग तकनीक आउटडेटेड हो गई, लेकिन गदर ब्रैंड की ताकत इतनी है 66 वर्ष की उम्र में भी सनी देओल स्टारर मूवी को आज के युवा सितारों की फिल्मों की तुलना में गजब की शुरुआत बॉक्स ऑफिस से मिली है। 
 
गदर में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौर की कहानी थी। एक्शन से सजी फिल्म में जोरदार ड्रामा, बेहतरीन संवाद और एक प्यारी सी लव स्टोरी भी थी जो सीधे दर्शकों के दिल को छू गई थी। फिल्म के गाने भी मधुर थे। गदर 2 में लेखक शक्तिमान तलवार और निर्देशक अनिल शर्मा ने तारा सिंह की कहानी को आगे बढ़ाया है। 
 
बात 1971 में आ गई है और तारा सिंह का बेटा जीते (उत्कर्ष शर्मा) अब जवान हो गया है। गदर 2 की कहानी पूरी तरह से गदर वाली ही है। गदर को दोहरा दिया गया है। गदर में तारा सिंह अपनी पत्नी को लेने पाकिस्तान गया था इस बार वह अपने बेटे को लेने के लिए पाकिस्तान गया है।
 
शक्तिमान द्वारा लिखी की कहानी में कोई नई बात नहीं है क्योंकि हम गदर में ये देख चुके हैं। गदर में जो जोरदार पंच थे, उतार-चढ़ाव थे, लवस्टोरी थी, दमदार संवाद थे, वो गदर 2 में मिसिंग है। गदर टीवी पर हजारों बार दिखाई जा चुकी है और ज्यादातर लोगों ने इसे एक से ज्यादा बार देखा है। इसलिए गदर 2 से अपेक्षाएं बहुत ज्यादा रहती हैं, वो पूरी नहीं हो पाती हैं। 
 
फिल्म तारा सिंह, जीते और सकीना के हल्के-फुल्के दृश्यों से शुरू होती है। कुछ कॉमेडी सीन देखने को मिलते हैं, लेकिन ये बहुत असरदार नहीं हैं। इसके बाद सनी को फिल्म से गायब कर दिया जाता है और सारा भार उत्कर्ष शर्मा के कंधों पर डाल दिया जाता है। 
 
लेखक और निर्देशक यहां भूल गए कि दर्शक सनी देओल को देखने के लिए आए हैं, ना कि उत्कर्ष को। सनी की इस हिस्से में कमी महसूस होती है और बोरिंग सीक्वेंसेस से सामना भी होता है। 
 
कुछ अंतराल बाद सनी की फिल्म में एंट्री होती है। जब उनका किरदार पाकिस्तान जाता है तो ड्रामे में थोड़ी जान आती है और एक्शन दृश्य देखने को मिलते हैं जिसका इंतजार दर्शक सांस थामें कर रहे होते हैं।

 
 
लेखक शक्तिमान बहुत जोरदार सीन नहीं लिख पाए। फिल्म में सनी के 'हीरोगिरी' दिखाने वाले दृश्य कम है। जब गदर का सीक्वल और सनी को तारा सिंह के किरदार में देख रहे होते हैं तो दर्शक चाहते हैं कि सनी अपनी दहाड़ और बाजुओं से दुश्मनों के हौंसले पस्त कर दें। 
 
ऐसा नहीं है कि ऐसे दृश्य नहीं हैं, हैं, लेकिन इनकी संख्या बढ़ाई जानी थी। क्योंकि सनी देओल जब दुश्मनों को अपनी बाहुबली शक्ति के सहारे रौंदते हैं तो सिनेमाघर में दर्शकों का रिएक्शन देखते ही बनता है। सीटियां और तालियों के साथ दर्शक झूम उठते हैं और लंबे अंतराल के बाद मल्टीप्लेक्स में भी सिंगल स्क्रीन वाला माहौल नजर आता है। ये 'गदर' ब्रैंड का ही कमाल है। यकीन मानिए, ऐसे दृश्यों की संख्या ज्यादा होती तो फिल्म की सफलता दूर तक जाती। 
 
निर्देशक अनिल शर्मा का फिल्म मेकिंग का स्टाइल बरसों पुराना ही है। पिछले कुछ सालों में तकनीक ने फिल्म प्रोडक्शन में भी खासी तरक्की की है, लेकिन अनिल शर्मा वक्त के साथ अपडेट नहीं हुए। वे कहानी को प्रस्तुत करने और इमोशन पैदा करने के लिए जाने जाते हैं। गदर 2 की मेकिंग पुरानी दौर की फिल्मों जैसी है। दर्शकों में भावना पैदा करने में वे फिल्म के अंतिम घंटे में कामयाब रहे हैं। हल्के-फुल्के दृश्यों में वे प्रभाव नहीं पैदा कर पाए। बार-बार गदर के सीन और गाने दोहरा कर उन्होंने दर्शकों को बहलाया है और नॉस्टेल्जिया इम्पेक्ट के जरिये दर्शकों के मन के तार छेड़ने की कोशिश की है।  
 
फिल्म के सकारात्मक पक्ष की बात की जाए तो सनी का हैंड पंप को देखना और उसके बाद पाकिस्तानियों का रिएक्शन, सनी का खंबा उखाड़ना, सनी की दहाड़ से दुश्मनों की पतलून गीली होना, जैसे कुछ सीन हैं जो बढ़िया बने हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्तों और वर्तमान हालातों को देखते हुए जिस तरह के दृश्यों की ज्यादातर दर्शकों को चाहत रहती है उस तरह के कुछ मसाले गदर 2 में भी देखने को मिलते हैं। देशभक्ति वाले धागे को भी कहानी से अच्छे से पिरोया गया है।  
 
यह फिल्म सिंगल स्क्रीन के दर्शकों को ध्यान में रख कर बनाई गई है जो तारा सिंह को इतना पसंद करते हैं कि उसके आगे उन्हें किसी लॉजिक की जरूरत नहीं है। यदि तारा सिंह के पास और दमदार सीन होते तो बात ही कुछ और होती। 
 
सनी देओल को एक बार फिर तारा सिंह के रूप में देखना अच्छा लगता है। उम्र बढ़ गई है, लेकिन किरदार के जोश और जज्बे को उन्होंने अच्छे से पकड़ा है और अपनी शक्तिशाली पुरुष की छवि के रूप में उन्होंने दर्शकों को आंदोलित किया है। एक्शन और गुस्सा करने वाले सीन में वे विशेष प्रभाव छोड़ते हैं। उनके किरदार को दमदार संवाद नहीं मिले।
 
सकीना के रूप में अमीषा पटेल कोई विशेष प्रभाव नहीं छोड़ती। उत्कर्ष शर्मा को खासे फुटेज मिले हैं। गाने, रोमांस और एक्शन करने का मौका भी मिला है, लेकिन वे फिल्म की कमजोर कड़ी साबित होते हैं। उनकी लव स्टोरी वाला ट्रैक बोरिंग है। 
 
मनीष वाधवा मेन विलेन के रूप में हैं। उन्होंने अच्छी एक्टिंग की है, लेकिन बार-बार यहां पर अमरीश पुरी की याद आती है। गदर की कामयाबी में अमरीश पुरी को बहुत श्रेय जाता है। विलेन दमदार हो तो हीरो भी निखर जाता है। फिल्म के अन्य कलाकार ठीक सहयोग देते हैं। 
 
कुछ गाने नए हैं, लेकिन ज्यादातर जगह 'गदर' के हिट गानों का ही इस्तेमाल किया गया है। एक्शन दृश्यों में बजट की कमी महसूस होती है। फिल्म का आर्टवर्क, कैमरा वर्क, एडिटिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक औसत किस्म का है।
 
गदर 2 बाइस साल पुरानी फिल्म गदर का ही दोहराव है, नयापन तो छोड़िए लेकिन उसमें गदर वाली बात भी नहीं है। तारा सिंह का किरदार और गदर की फ्रैंचाइज वैल्यू ही ऐसी कड़ियां हैं जो दर्शकों को फिल्म से जोड़े रखती है। 

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