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भूत द हांटेड शिप : फिल्म समीक्षा

भूत द हांटेड शिप : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020 (15:44 IST)
भूत नाम से रामगोपाल वर्मा ने एक बेहतरीन फिल्म बनाई थी और अब इसी नाम से करण जौहर ने ‍हॉरर प्लस थ्रिलर फिल्म प्रोड्यूस की है। 
 
ज्यादातर हॉरर फिल्मों में शुरुआती माहौल तो अच्छा बनाया जाता है। दर्शकों में उत्सुकता पैदा की जाती है। उन्हें डराया जाता है। सोचने पर मजबूर किया जाता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? 
 
लेकिन बारी जब इस प्रश्न का उत्तर देने की आती है तो ज्यादातर फिल्में निराश करती हैं। यही हाल 'भूत : पार्ट वन- द हांटेड शिप' का भी हो जाता है।
 
जैसा कि फिल्म के नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें एक जहाज की कहानी है जिसका नाम 'सी‍ बर्ड' है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह भूतहा है। 
 
यह पुराना, जंग लगा जहाज, जिसमें कोई नहीं है बहते-बहते मुंबई के किनारे आ लगा है। पृथ्वी (विक्की कौशल) उस कंपनी में काम करता है जिसे यह जहाज हटाने का जिम्मा सौंपा जाता है। 
 
पृथ्वी डिप्रेशन का भी शिकार है क्योंकि एक दुर्घटना में वह अपनी पत्नी सपना (भूमि पेडणेकर) और बेटी मेघा को खो चुका है। उसे ये दोनों अक्सर दिखाई भी देते हैं। 
 
विक्की जब सी-बर्ड की तलाशी लेता है तो उसके साथ अजीबो-गरीब घटनाएं घटती हैं। उसे कुछ पुराने कागजात और सीडी भी मिलती है जिसके जरिये उसे कुछ बातें पता चलती हैं कि इस जहाज में पहले क्या हुआ था। 
 
फिल्म का निर्देशन और लेखन का काम भानुप्रताप सिंह ने किया है। शिप का इस्तेमाल उन्होंने सिर्फ कुछ अलग कर दिखाने के लिए किया है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं उठा पाए। जहाज की बजाय घर भी होता तो भी कहानी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। 
 
फिल्म ढेर सारे सवाल छोड़ती है। यह जहाज कैसे आ गया? जहाज बहुत बड़ा और ऊंचा है। इस पर एक कपल कैसे पहुंच जाता है समझ से परे है। पृथ्वी जब चाहे इस जहाज पर पहुंच जाता है और उस समय आसपास कोई नहीं रहता। इतने बड़े जहाज के मुंबई में पहुंचने पर क्या कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई थी?  
 
जब इस बात पर से परदा हटता है कि जहाज में अजीब घटनाएं क्यों घट रही हैं तो बेहद निराशा होती है। कहानी पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। घिसी-पिटी बातें सामने आती हैं और क्लाइमैक्स भी कई सवाल छोड़ जाता है। लॉजिक और कॉमन सेंस का साथ भी फिल्म में कई बार छूट जाता है।  
 
हॉरर फिल्मों से ये भी अपेक्षा की जाती है कि यह हमें चौंकाए और डराए। ऐसे कुछ सीन हैं, लेकिन ज्यादा नहीं। और इन दृश्यों का कहानी से कोई खास मेल नहीं है। फिल्म का दूसरा हाफ बहुत ही कमजोर है। 
 
निर्देशक के रूप में भानु प्रताप सिंह कोई कमाल नहीं दिखा पाए। फिल्म बहुत ही धीमी गति से चलती है और फिल्म में बहुत ज्यादा अंधेरा रख कर वे न जाने क्या साबित करना चाहते थे?

इस तरह की फिल्मों में जिस तरह के कुछ डरावने और दिल धड़काने वाले मोमेंट्स की जरूरत होती है वो फिल्म से नदारद है। वे फिल्म को रियलिस्टिक भी बनाना चाहते थे लेकिन कुछ सीन और घटनाएं ऐसी हैं जो रियल नहीं लगती। दो घंटे की फिल्म भी काफी लंबी लगती है। 
 
विक्की कौशल अपने अभिनय के दम पर दर्शकों को बांधते हैं। उनके किरदार के पास ज्यादा संवाद नहीं थे और सिर्फ एक्सप्रेशन्स के जरिये ही उन्होंने काम चलाया है। आशुतोष राणा का किरदार फालतू किस्म का है। भूमि पेडणेकर के हिस्से में मुश्किल से दो-तीन सीन आए।
 
कुल मिलाकर भूत एक औसत फिल्म है। बड़े बैनर, बजट और अच्छे कलाकारों का फायदा लेने में निर्देशक भानु प्रताप सिंह असफल रहे। 
 
बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, ज़ी स्टूडियो 
निर्माता : करण जौहर, हीरू यश जौहर, अपूर्वा मेहता, शशांक खेतान
संगीत : भानु प्रताप सिंह 
कलाकार : विक्की कौशल, भूमि पेडणेकर, आशुतोष राणा, मेहर विज, आकाश धर 
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 
रेटिंग : 2/5 

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