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बाला : फिल्म समीक्षा

बाला : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 8 नवंबर 2019 (15:10 IST)
अच्छा दिखने का आजकल इतना दबाव रहता है कि कई कंपनियां इसका लाभ उठा कर माल कूटती हैं। लंबाई बढ़ाने, रंग गोरा करने से लेकर गंजे सिर पर बालों की फसल लहलहाने के विज्ञापन हमारे चारों ओर है। 
 
लोग भी क्या करें, समाज की डिमांड ही कुछ ऐसी है। लड़कियां गंजे या नाटे कद वाले लड़कों से शादी नहीं करती तो लड़कों को 'गोरी' ही चाहिए और इसकी डिमांड 'वधू चाहिए' के विज्ञापन में देखी जा सकती है। 
 
इन्हीं बातों के इर्दगिर्द 'बाला' की कहानी बुनी गई है। पिछले सप्ताह ही इस विषय पर आधारित उजड़ा चमन देखने को मिली थी जहां पर कम उम्र में झड़े बाल वाला नायक और मोटी नायिका थी। 'बाला' में गंजेपन के साथ त्वचा के रंग का मुद्दा दिखाया गया है। 
 
कहानी कानपुर में सेट है और अब उत्तर प्रदेश को हिंदी फिल्मों में इतना दिखा दिया गया है कि फिल्में टाइप्ड लगने लगी हैं। वहीं गली-मोहल्ले, बड़बोले किस्म के किरदार, स्ट्रीट-स्मार्टनेस दिखाते लड़के-लड़कियां। 
 
बाला के ब्रह्मचर्य खत्म होने के पहले ही बाल झड़ गए। इस वजह से उसकी कंपनी में भी उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होने लगा। गंजा होने के कारण उसे यंग और एनर्जेटिक नहीं माना जाता। बचपन की गर्लफ्रेंड भी उसका साथ छोड़ देती है जिसके गोरे रंग पर वह फिदा था। 
 
प्याज के रस लेकर सांड के वीर्य तक को उसने अपने सिर पर पोत डाला, लेकिन बाल आने के बजाय और कम हो गए। डायबिटीज होने के कारण हेअर ट्रांसप्लांटेशन का खतरा भी मोल नहीं लिया जा सकता था। 
 
हार कर वह विग लगाता है और एक गोरी रंग की लड़की परी (यामी गौतम) उसे दिल दे बैठती है। शादी तय हो जाती है, लेकिन परी को यह बात पता नहीं है कि बाला के सिर पर असली नहीं नकली बाल हैं। 
 
निरेन भट्ट की कहानी में ज्यादा घुमाव-फिराव नहीं हैं, इसलिए उन्होंने किरदारों को मजबूत बनाकर दर्शकों को बहलाने की कोशिश की है। बाला के पिता (सौरभ शुक्ला) रंजी ट्रॉफी का एक मैच खेल चुके हैं। जावेद जाफरी का किरदार अमिताभ बच्चन का दीवाना है जो बिग-बी के अंदाज में रहता और बात करता है। एक हेअर सलून वाला है तो मूंछ वाली मौसी भी है।  
 
यामी गौतम का किरदार भी बढ़िया है। जो टिक-टॉक पर वीडियो अपलोड कर 'सेलिब्रिटी' बन गई है और दिखावे को ही सब कुछ समझ बैठी है। 
 
लेकिन भूमि पेडणेकर का किरदार ठीक से नहीं लिखा गया है। एक तो भूमि की त्वचा को डार्क करने के लिए उन पर कुछ ज्यादा ही रंग लगा दिया गया है। उनका किरदार और लंबा होना था। साहसिक बात तो तब होती जब फिल्मकार ऐसी एक्ट्रेस को चुनता जो नैसर्गिक रूप से सांवली हो। 
 
बाला फिल्म लिखी अच्छी गई है, लेकिन इसका मेकिंग उतना अच्छा नहीं है। यह एक किताब पढ़ने वाला मजा देती है फिल्म देखने वाला नहीं। निर्देशक अमर कौशिक अपनी ओर से ज्यादा कुछ जोड़ नहीं पाए। 
 
मजेदार किरदार और वन लाइनर के जरिये फिल्म को बढ़ाया गया है और लेकिन दूसरे हाफ में फिल्म हांफने लगती है।  परी और बाला की लव स्टोरी पर पूरी तरह विश्वास नहीं होता। कैसे परी जैसी स्मार्ट लड़की यह जान नहीं पाती कि बाला के बाल नकली हैं? आखिरी के 15-20 मिनट बढ़िया है।
 
आयुष्मान खुराना ने एक गंजे व्यक्ति के दर्द को अच्छी तरह से स्क्रीन पर पेश किया है। हर सीन के मुताबिक एक्सप्रेशन्स उनके चेहरे पर नजर आए हैं। यामी गौतम भी फॉर्म में दिखी हैं और छोटे रोल में अच्छा प्रभाव छोड़ती है। भूमि पेडणेकर को फिल्म के अंत में अच्छे सीन मिलते हैं और उनका रोल लंबा होना था। सौरभ शुक्ला सहित तमाम सपोर्टिंग कास्ट का काम अच्छा है। विजय राज का वाइस ओवर बेहतरीन है। 
 
बाला फिल्म हिस्सों में बढ़िया है। थोड़ा मनोरंजन करती है। कुछ मुद्दे उठाती है और कुछ जगह कमजोर भी है पर अपना काम कर जाती है। 
 
बैनर : जियो स्टूडियोज़, मैडॉक फिल्म्स 
निर्माता : दिनेश विजन
निर्देशक : अमर कौशिक
संगीत : सचिन-जिगर 
कलाकार : आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, सौरभ शुक्ला, जावेद जाफरी, सीमा पाहवा 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 11 मिनट 
रेटिंग : 3/5

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