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Attack Movie Review अटैक फिल्म समीक्षा: सुपर सोल्जर बने जॉन अब्राहम ने इरा के साथ किया दुश्मनों का काम तमाम

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022 (13:52 IST)
जॉन अब्राहम मॉडल से एक्टर बने। फिर फिल्म प्रोड्यूसर बने और अब लेखक भी बन गए हैं। फिल्म 'अटैक' की कहानी उन्होंने लिखी है। चूंकि इस फिल्म के वे निर्माता भी हैं इसलिए कहानी पर फिल्म बनाने के लिए कोई सवाल भी नहीं हुए होंगे। जॉन की कहानी में कोई नई बात नहीं है। 
यह एक मिशन की कहानी है। संसद भवन पर आतंकियों ने हमला कर दिया है। प्रधानमंत्री और 300 सांसदों को बंदी बना लिया है। आतंकवादियों की तीन शर्तें हैं जिन्हें नहीं माना गया तो वे सभी को मार डालेंगे। कहानी में ट्विस्ट डाला गया है आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का। भविष्य में जो युद्ध होंगे उसमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होगा और सैनिक आधुनिक तकनीक से लैस होकर सुपरहीरो की तरह लड़ेंगे। रोबोट का भी इस्तेमाल हो सकता है। 
 
तो, अटैक में जॉन अब्राहम में ऑपरेशन कर माइक्रोचिप चिप 'इरा' (सिरी और एलेक्सा जैसी) डाल कर उन्हें ऐसे सुपर सोल्जर के रूप में तैयार किया जाता है जो पूरी बटालियन के बराबर है। जॉन के किरदार का नाम है अर्जुन। यह अर्जुन, संसद में आतंकियों के चक्रव्यूह को भेदने के लिए अकेला ही कूद जाता है। कुछ दिनों पहले ओटीटी पर विद्युत जामवाल की सनक रिलीज हुई थी और उसकी कहानी भी कुछ इसी तरह की थी।   
 
फिल्म की शुरुआत एक मिशन से होती है जो अर्जुन ने 2010 में किया था और एक मशहूर आतंकी को पकड़ा था। इस मिशन के बाद फिल्म में जैकलीन फर्नांडिस की एंट्री हो जाती है और लव स्टोरी शुरू हो जाती है। ये प्रेम कहानी फिल्म का बहुत बोरिंग हिस्सा है। दो घंटे की फिल्म के लिए भी कंटेंट कम पड़ गया तो जॉन-जैकलीन की लव स्टोरी डाल दी गई। चूंकि जॉन रोमांटिक सीन में कमजोर पड़ते हैं, इसलिए उनकी अधिकांश फिल्मों में उनका लव स्टोरी वाला एंगल ट्रैजिक बना दिया जाता है ताकि फिर जॉन आसानी से चेहरा लटका कर घूम सके। 
 
जैसे ही ये प्रेम कहानी वाला ट्रैक खत्म होता है तो एक्शन शुरू हो जाता है। सुपर सोल्जर अर्जुन 'इरा' के सहारे दुश्मनों के खात्मे में जुट जाता है। इरा उसे हर संभव डेटा उपलब्ध कराती है। अपराधी कहां है? कहां बम लगा है? किस कोण से गोली आ रही है? ये सारे डेटा अर्जुन के सामने सेकंड में उपलब्ध हो जाते हैं। 
 
इंटरवल के बाद ही क्लाइमैक्स शुरू हो जाता है, लेकिन होस्टेज ड्रामा को जो रोमांच है वो फिल्म में कम मात्रा में हैं। धड़कन बढ़ा देने वाले या सांसें रोक देने वाले सीन फिल्म में न के बराबर है। फिल्म 'टेक्नीकल' थोड़ी ज्यादा हो गई। अर्जुन की बजाय 'इरा' ज्यादा स्मार्ट है। वो कोई भी काम चुटकियों में कर देती है जिससे हीरो के सामने मुसीबतें कम आती हैं। मुसीबतें कम रहेंगी तो रोमांच का काम होना भी स्वाभाविक है। 
 
फिल्म में कई किरदार हैं, लेकिन पूरा फोकस जॉन अब्राहम पर ही है। खूबसूरत गर्लफ्रेंड (जैकलीन फर्नांडिस), देखभाल करने वाली मां (रत्ना पाठक शाह), ये करो वो करो जैसे आदेश देने वाल बॉस (प्रकाश राज), सुपर चीप बनाने वाली वैज्ञानिक (रकुलप्रीत सिंह), प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर फैसले लेने वाला गृहमंत्री (रजत कपूर) और विलेन हमीद (एलहम एहसास) जैसे किरदार नजर आते हैं, लेकिन इनमें से कुछ कैरीकेचर लगते हैं तो कुछ को ज्यादा मौका ही नहीं मिलता है। 
 
लक्ष्यराज आनंद द्वारा निर्देशित मूवी में डिटेल्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। एक साल से व्हीलचेयर पर बैठा अर्जुन हमेशा ऐसे नजर आता है जैसे जिम में ही 24 घंटे बिताता हो। हजारों गोलियों के बीच भी अर्जुन को खरोंच नहीं आती। चिप लगते ही वह धुआंधार एक्शन कैसे कर रहा है इसके बारे में भी ज्यादा बताया नहीं गया है। लक्ष्य का लक्ष्य सिर्फ एक्शन पर रहा और इंटरवल के बाद उन्होंने फिल्म एक्शन डायरेक्टर के हवाले कर दी। अच्छी बात यह है कि फिल्म को ज्यादा लंबा नहीं खींचा गया।
जॉन अब्राहम जैसे हर फिल्म में नजर आते हैं यहां पर भी वैसे ही हैं। एक्टिंग में कोई सुधार नहीं है। हां, मार-काट उन्होंने अच्छे से मचाई है और निशाना सटीक लगाया है। जैकलीन फर्नांडिस भी एक्टिंग के मामले में जॉन की राह पर ही हैं। बच्चन पांडे जैसा रोल उनका अटैक में भी है। रकुल प्रीत सिंह, प्रकाश राज, रत्ना पाठक शाह को ज्यादा मौके नहीं मिले। रजत कपूर ओवरएक्टिंग का शिकार नजर आए।
 
फिल्म के विज्युअल इफेक्ट्‍स में सुधार की काफी गुंजाइश है। एक-दो गाने भी हैं जो ठीक-ठाक है। सिनेमाटोग्राफी और टेक्नीकल सपोर्ट बहुत ऊंचे स्तर का नहीं है। अटैक ऐसी फिल्म है जो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखना ही बेहतर है। अभी पार्ट 1 आया है, उम्मीद है कि पार्ट 2 बेहतर होगा। 

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