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अजीब दास्तांस : फिल्म समीक्षा

अजीब दास्तांस : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, मंगलवार, 20 अप्रैल 2021 (18:35 IST)
अजीब दास्तान का बहुवचन करते हुए अंग्रेजी का 'एस' जोड़ अजीब दास्तांस कर दिया गया है। जैसा अजीब नाम है, वैसा ही अजीब अंत फिल्मों का है। चौंकाने वाला अंत। कुछ ऐसा अंत करने की कोशिश जो दर्शक के उम्मीद के बिलकुल विपरीत हों। 'अजीब दास्तांस' चार छोटी फिल्मों का गुलदस्ता है जो नेटफिलक्स के लिए करण जौहर ने प्रोड्यूस की है। शॉर्ट फिल्म में ये बात अच्छी होती है कि फिल्म पसंद न आने पर ऊब का ग्राफ ऊंचा हो उसके पहले ही फिल्म खत्म हो जाती है और फिर नई फिल्म से नई शुरुआत होती है। 
 
मजनू 
इस गुलदस्ते की पहली फिल्म है 'मजनू' जिसे शशांक खेतान ने निर्देशित किया है। शशांक ने वरुण धवन को लेकर कुछ कमर्शियल फिल्में बनाई हैं, लेकिन बात जब वेबसीरिज या वेब फिल्म के कलेवर की आती है तो शशांक लड़खड़ा गए। यह कहानी है लिपाक्षी की जिसका पति बबलू शादी की रात ही ऐलान कर देता है कि यह शादी उसकी पसंद से नहीं हुई है इसलिए वह लिपाक्षी को कभी प्यार नहीं करेगा। लिपाक्षी इसका बदला अलग तरीके से लेती है। वह बबलू के सामने ही दूसरों मर्दों के साथ फ्लर्ट करती है। बबलू का किरदार डॉननुमा है। वह अपनी पत्नी का यह अंदाज कैसे बर्दाश्त कर लेता है समझ के परे है। राज नामक युवा बबलू-लिपाक्षी की जिंदगी में आता है और तहस-नहस कर आगे बढ़ जाता है। बबलू का राज पर हद से ज्यादा भरोसा अखरता है। यह कहानी विश्वसनीय नहीं है। जयदीप अहलावत फॉर्म में नहीं दिखे। फातिमा सना शेख ही प्रभावित कर पाईं। शशांक समां नहीं बांध पाए और अजीब दास्तांस की सबसे कमजोर कड़ी साबित होती है 'मजनू'। 
रेटिंग : 1.5/5 
 
खिलौना 
खिलौना का निर्देशन राज मेहता ने किया है जो सुपरहिट फिल्म 'गुड न्यूज' बना चुके हैं। यह समाज के उस वर्ग की कहानी है जो लोगों के घरों में काम करते हैं। नुसरत भरूचा घरों में झाड़ू/पोंछा/बर्तन का काम करती है। उसके साथ उसकी छोटी बहन भी है। दोनों बहनें जानती हैं कि भावनाओं के बूते पर किस तरह से अमीरों का दिल जीता जाता है। नुसरत और छोटी बालिका इनायत वर्मा की एक्टिंग और जुगलबंदी लाजवाब है। फिल्म का अंत जो दर्शक सोच नहीं पाते हैं उन्हें दहला देता है। राज का निर्देशन कसा हुआ है और उन्होंने समाज के दो वर्गों की सोच को अच्छा-बुरा ठहराए बिना जस का तस पेश किया है। 
रेटिंग : 2.5/5  
 
गीली पुच्ची
नीरज घेवान ने 'गीली पुच्ची' को निर्देशित किया है। इस फिल्म को ऊंचाई पर ले जाती है कोंकणा सेन शर्मा और अदिति राव हैदरी की एक्टिंग। इस छोटी-सी फिल्म में नीरज ने कई बातों को समेटा है। जातिवाद, पक्षपात, दबी इच्छाएं, भेदभाव, महत्वाकांक्षाएं गीली पुच्ची में उभर कर सामने आती हैं। अंत चौंकाता है। किस पर कितना भरोसा किया जाए इसकी एक लाइन होना चाहिए, फिल्म यह बात रेखांकित करती है। निर्देशक ने फिल्म को कसावट के साथ बुना है। कोंकणा सेन के किरदार के ताप को दर्शक महसूस करते हैं। दो एक-दूसरे से विपरीत शख्सियत को लेकर दर्शकों का समर्थन बदलता रहता है और यही फिल्म की खासयित है।
रेटिंग : 3/5 
 
अनकही 
निर्देशक केयोज़ ईरानी की इस फिल्म में भावनाएं हावी है। नताशा की टीनएज बेटी की सुनने की क्षमता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। नताशा को पति रोहन से शिकायत है कि वह इस बात पर ध्यान नहीं दे रहा है। कबीर नामक शख्स से नताशा का जुड़ाव पैदा होता है। इस फिल्म का अंत दर्शाता है कि आप अपनी सोच के आधार पर ही किसी व्यक्ति को जज करते हैं ना कि उस व्यक्ति के मिजाज या कर्मों के बल पर। मानव कौल और शैफाली शाह अपने भावपूर्ण अभिनय से फिल्म का स्तर ऊंचा उठाते हैं। 
रेटिंग : 3/5 
 
कुल मिलाकर 'अजीब दास्तांस' को वक्त दिया जा सकता है। जरूरी बात यह है कि ज्यादा उम्मीद ना करें तो फायदे में रहेंगे। 

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