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ए थर्सडे फिल्म समीक्षा : यामी गौतम की फिल्म में गंभीरता का अभाव

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022 (13:34 IST)
A Thursday movie review in Hindi starring Yami Gautam: होस्टेज ड्रामा बनाना आसान नहीं है। एक-दो लोकेशन पर ही पूरी फिल्म खत्म हो जाती है और दर्शकों को बहलाने के लिए ऐसा ड्रामा पेश करना पड़ता है जो उन्हें सीट पर बैठाए रखे। उनके सवालों का जवाब दे। बेहज़ाद खम्बाटा ने 'ए थर्सडे' फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है, लेकिन लेखक के रूप में, उन्होंने ऐसी गलतियां की हैं, जो फिल्म देखते समय आपको परेशान करती है। सवाल उठते हैं कि यह कैसे हुआ? क्यों हुआ? और जवाब नहीं मिलते। कुछ ऐसी परिस्थितियां दिखा दी गई हैं, जिन पर यकीन नहीं होता इस वजह से फिल्म अपनी पकड़ नहीं बना पाती। 
नैना जायसवाल (यामी गौतम) एक टीचर है। प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाती है। एक दिन वह 16 नन्हें-मुन्नों को स्कूल में ही कैद कर लेती है और इन बच्चों को रिहा करने के बदले में पुलिस के सामने कुछ डिमांड रखती है। वह अपने अकाउंट में 5 करोड़ रुपये चाहती है। दो लोगों को पकड़ कर लाने का आदेश पुलिस को देती है। साथ ही देश के प्रधानमंत्री से आमने-सामने सवाल-जवाब करना चाहती है। 
 
नैना ये क्यों कर रही है? इसके पीछे उसका क्या उद्देश्य है? ये सब बातें, फिल्म में बहुत देर से बताई गई हैं, तब तक बात को जिस तरह से खींचा गया है, वो थ्रिल पैदा नहीं करता। 
 
कहने को तो यह फिल्म थ्रिलर है, लेकिन सब कुछ बहुत ही आराम से घटित होता है। नैना आदतन अपराधी नहीं है, लेकिन बहुत ही 'रिलैक्स' और शातिर नजर आती है। उसे पुलिस का जरा डर नहीं लगता। दूसरी ओर पुलिस सिर्फ बातें करती है, कुछ करते हुए नजर नहीं आती। जावेद खान (अतुल कुलकर्णी) और कैथी (नेहा धूपिया) बेहद काबिल ऑफिसर बताए गए हैं, लेकिन आपस में झगड़ने और सिगरेट फूंकते ही वे नजर आएं। उनके जांच का तरीका रोमांचक नहीं है। 
 
सामान्य सी लड़की नैना गन कहां से ले आई? एक निशानेबाज की तरह वे इसे कैसे चला लेती है? प्रधानमंत्री और नैना की फेस टू फेस मुलाकात तो हैरान करती है। किसे मारा जाना चाहिए, इस बात का ओपिनियन पोल लेना, फिल्म की गंभीरता को कम करता है। टीआरपी के लिए मीडिया का स्तरहीन होने वाला मुद्दा भी दिखाया गया है, लेकिन अब मीडिया को टाइप्ड तरीके से पेश किया जाने लगा है। 
 
होस्टेज ड्रामा में लोकेशन का बहुत महत्व होता है और इसे पूरी तरह से दर्शकों समझाना पड़ता है, लेकिन निर्देशक बेहज़ाद खम्बाटा इस मामले में कच्चे साबित हुए। बतौर निर्देशक उन्होंने थोड़ी-थोड़ी देर में दर्शकों को चौंकाया जरूर है, लेकिन लेखन की कमियां, उनके निर्देशकीय प्रयासों को कमजोर करती है। 
 
क्लाइमैक्स में जो बातें सामने आती हैं वो जरूर दर्शकों को इमोशनल करती है। एक महत्वपूर्ण संदेश को भी उठाया गया है, लेकिन जिस तरह से बात को प्रस्तुत किया गया है वो गंभीर मुद्दे को हल्का करता है। 
 
यामी गौतम की एक्टिंग बढ़िया है। चेहरे पर भोलापन और खूंखार भाव बहुत तेजी से बदलने में वह कामयाब रही हैं। अपनी एक्टिंग स्क्ल्सि के जरिये वे दर्शकों को अंत तक बिठाकर रखती हैं। अतुल कुलकर्णी अपनी एक्टिंग से प्रभावित करते हैं। नेहा धूपिया का रोल ठीक से लिखा नहीं गया है। डिम्पल कपाड़िया की एक्टिंग अच्छी है, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में वे बहुत कमजोर दिखाई गई हैं, जिनके निर्णय भी उनके नीचे काम करने वाले लोग ले लेते हैं। 
 
ए थर्सडे बुनावट में कमजोर है। अच्छी बात,  कहने के अंदाज के कारण मार खा जाती है। यामी, अतुल, डिम्पल जैसे कलाकारों की एक्टिंग और कुछ चौंकाने वाले लम्हें ही फिल्म की खासियत हैं।  

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