श्यामा में शोखी और चुलबुलापन भले ही न रहा हो जितना कि मधुबाला या गीताबाली में नजर आता था। संजीदगी भी हालांकि कम ही थी जिसे नरगिस या मीना कुमारी ही अदा कर सकती थी, पर श्यामा, श्यामा थीं और यदि यह कहा जाए कि उन्होंने अपनी अदाकारी को बहुआयामी बना डाला तो कोई आतिशयोक्ति न होगी।
उन्होंने सामाजिक, स्टंट, वेशभूषा प्रधान, ऐतिहासिक, हास्य, गरज कि प्रत्येक तरह की फिल्मों में भूमिकाएं कीं। उनके नायकों में अगर जॉनी वाकर थे तो अशोक कुमार भी। बलराज साहनी थे तो देव आनंद भी। मोतीलाल थे तो राजकुमार भी और सुरेश थे तो सज्जन भी।
तात्पर्य यह कि श्यामा इस बात का कदाचित दावा कर सकती हैं कि उन्होंने ही फिल्म संसार में अधिकतम नायकों के साथ काम किया और फिल्में भी इतनी अधिक कीं कि अच्छी -अच्छी नायिकाओं ने नहीं कीं।
फिल्म जीनत की कव्वाली 'आहें न भरी शिकवे न किए कुछ भी न जुबां से काम लिया' में श्यामा के भी दृश्य थे और 1951 के बाद तो श्यामा ने फिल्मों को कुछ इस तरह से पकड़ा कि आने वाले चौदह-पंद्रह वर्षों तक उसे छोड़ा नहीं।
इन वर्षों में उन्होंने अपने समकालीन लगभग प्रत्येक नायक-नायिका के साथ अभिनय किया।
हास्य फिल्मों में श्यामा की शोखियों को परवान चढ़ाया कॉमेडियन जॉनी वॉकर ने- दुनिया रंग-रंगीली, माई-बाप, खोटा पैसा, छूमंतर, मुसाफिरखाना, मिस्टर कार्टून एम.ए. ऐसी ही फिल्में हैं और संयोग से उक्त फिल्मों को एक ही निर्देशक एम. सादिक ने निर्देशित किया है।
हाहा-हीही-हूहू, मि. चक्रम, मक्खीचूस, पिलपिली साहब भी श्यामा के अभिनय में बंधी हास्य फिल्में थीं।
गुल सनोवर, सल्तनत, तातार का चोर, शाही मेहमान, ताजपोशी, जबक, नागपद्मिनी, स्टंट और वेशभूषा प्रधान फिल्में रहीं तो भाई-भाई, भाभी, चंद, प्यासे नेन, धूप-छांव, ठोकर, दिले नादान, बरसात की रात, तराना और सजा जैसी सामाजिक तथा प्रणय फिल्मों में भी श्यामा वर्ण नुमायां हुआ है।
7 जून 1935 को लाहौर में जन्मी श्यामा का वास्तविक नाम खुर्शीद अख्तर था। चालीस के दशक में वे लाहौर से मुंबई चली आईं और कम उम्र में ही फिल्मों में काम शुरू कर दिया।
फिल्म निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें फिल्मों के लिए श्यामा नाम दिया।
श्यामा ने अभिनय का कोई विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया था। उनका मानना था कि स्टार पैदा होते हैं बनाए नहीं जाते।
एक इंटरव्यू में श्यामा ने कहा था कि मुझे कभी अभिनय सीखने की जरूरत नहीं पड़ी। मैं आत्मविश्वास से भरपूर थी और मुझे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ती थी।
श्यामा ने सिनेमाटोग्राफर फाली मिस्त्री से 1953 में विवाह किया। गुजरात के रहने वाले फाली पारसी थे।
श्यामा ने अपने विवाह की बात दस वर्षों तक छिपाए रखी क्योंकि उस दौर में कोई एक्ट्रेस विवाह कर लेती थी तो फिल्म निर्माता उसे काम नहीं देते थे और न ही दर्शक उस अभिनेत्री की फिल्म में रूचि लेते थे।
अपनी पहली संतान के जन्म के कुछ महीने पूर्व श्यामा और फाली ने अपने विवाह की बात बताई।
फाली की 1979 में मृत्यु हुई और उसके बाद श्यामा मुंबई में ही रहीं। 14 नवम्बर 2017 को श्यामा का 82 वर्ष में निधन हुआ।