Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

राजेश रोशन : भूल गया सब कुछ, याद नहीं अब कुछ

राजेश रोशन : भूल गया सब कुछ, याद नहीं अब कुछ
, मंगलवार, 24 मई 2022 (11:34 IST)
सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध में हिंदी फिल्म जगत में संगीतकारों के बेटों का उद्‍भव भी बड़े जोर-शोर के साथ हुआ। सचिनदेव बर्मन के बेटे राहुल देव तो सन् 1961 से ही फिल्मों में आ गए थे और उन्होंने अपनी प्रतिभा को 1975 के आते-आते प्रमाणित भी कर दिया था, लेकिन इस समय संगीतकार रोशन के बेटे राजेश और बंगाल के प्रसिद्ध संगीतकार अपरेश लाहिरी के बेटे बप्पी के आगमन ने एक बार फिर से लोगों के मन में यह सवाल पैदा किया कि वे उदीयमान बेटे अपने पिताओं की ख्याति के अनुरूप काम कर दिखलाएंगे या नहीं।
 
यह एक विचित्र संयोग है कि जिस  कॉमेडियन महमूद ने पहली बार राहुल देव की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें मौका दिया (तब तो स्वयं सचिन दा को उनकी प्रतिभा के बारे में शंका थी!) उन्हीं ने राजेश को भी अपनी फिल्म 'कुँवारा बाप' में पहला मौका दिया। 
 
यह कैसे हुआ यह उन्हीं के शब्दों में सुनिए- 'आनंद बख्शी की सलाह पर जब मैं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सहायक के रूप में काम कर चुका तो अपनी स्वयं की बनाई धुनें निर्माताओं को सुनाने लगा। महमूद भाई जान के भाई अनवर और शौकत मेरे दोस्त हैं। उन्हें मेरी कुछ धुनें बहुत पसंद आईं और वे मुझे भाईजान के पास ले गए। उन्होंने अपनी अगली फिल्म की एक लोरी वाली सिचुएशन सुनाई। बस रात भर बैठकर मैंने एक धुन बनाई और दूसरे दिन सुबह पहुंच गया। महमूद साहब को धुन तत्काल पसंद आ गई।' 
 
कुँवारा बाप के बाद आई जूली। जूली में उनके किशोर द्वारा गाए 'भूल गया सब कुछ, याद नहीं अब कुछ' तथा लता के साथ 'ये राहें नई पुरानी' ने उन्हें चोटी के संगीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। 
 
24 मई 1955 को जन्मे राजेश रोशन अपने संगीत में मेलोडी के साथ-साथ आधुनिकता का स्पर्श देना जरूरी मानते हैं व इस मामले में बर्मन (सीनियर) को अपना आदर्श मानते हैं। राजेश की सचिन दा के प्रति इस श्रद्धा का शायद देव आनंद को इलहाम हो गया और उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'देस परदेस' आर.डी. को न देकर राजेश को सौंप दी। 
 
राजेश ने एक बार फिर किशोर कुमार से उनकी सर्वश्रेष्ठ आवाज में तू पी और जी, नजर लगे न साथियों, ये है देस परदेस जैसे गीत गवा कर देव आनंद ने जो भरोसा किया था, उसे सही साबित कर दिया। बर्मन शैली में ही इस फिल्म में उन्होंने एक गीत 'आप कहें और हम ना आएं' लता से भी गवाया। 
 
राजेश रोशन की कुछ अन्य बड़ी फिल्मों में अमिताभ बच्चन की 'मि. नटवरलाल' भी थी जिसमें उन्होंने स्वयं अमिताभ से 'मेरे पास आओ मेरे दोस्तों' गीत गवाया जो बच्चों और बड़ों में एक-सा लोकप्रिय हुआ। 
 
राजेश रोशन की अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में बासु चटर्जी की स्वामी, जिनी और जानी, उधार का सिंदूर, दो और दो पांच, लूटमार, याराना, खुद्दार, कामचोर, खुदगर्ज, काला पत्थर, मनपसंद, बातों बातों में, खून भरी मांग आदि है। 
 
जैसा कि अभिनेता पुत्रों के साथ हुआ वैसा ही दुर्भाग्यवश राजेश के साथ भी हुआ कि प्रारंभिक चमत्कारी सफलता के बाद वे अपनी रचनात्मकता को ज्यादा लंबे समय तक बनाए नहीं रख सके। हो सकता है कि फिल्म संगीत में जो गिरावट आई है उसका खामियाजा राजेश को भी भुगतना पड़ा हो। 
 
स्वयं उनके अनुसार 'रफ-टफ, मार-धाड़ वाली फिल्मों में संगीत देना मेरे बस की बात नहीं है। मैं एक महीने में चार या पांच से ज्यादा गाने रिकॉर्ड नहीं कर पाता। 
 
सन् 2000 के बाद राजेश की रफ्तार धीमी हो गई। उनकी सिद्धांतवादिता के कारण अब वे अपने भाई की फिल्मों के अलावा बहुत ही कम फिल्मों में संगीत दे पा रहे हैं।  
(पुस्तक 'सरगम का सफर' से साभार) 
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

थॉर: लव एंड थंडर (हिंदी) का ट्रेलर रिलीज, 8 जुलाई को होगी रिलीज