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मेरी तो औकात नहीं है कि मैं उनको मना कर सकूं : ईशान खट्टर

रूना आशीष
'मुझे मस्टैंग कार बहुत पसंद है। मेरे पास अभी वो नहीं है लेकिन मैं ले लूंगा। वो मेरा सपना है। लेकिन ये भी उतना ही सही है कि मस्टैंग एक स्पोर्ट्स कार है, तो मुंबई में वो नहीं चलाई जा सकती है और मैं तो काम के सिलसिले में मुंबई में ही रहता हूं।' अपने इंस्टाग्राम और यूट्यूब वीडियोज के जरिए फिल्मी सर्कल में आने वाले ईशान की फिल्म 'धड़क' लोगों के सामने पहुंच चुकी है। उनसे बात कर रही हैं 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष।
 
आप किस तरह की फिल्में देखना पसंद करते हैं?
मुझे लगता है कि मुझे जितनी तालीम मिली है, वो सिनेमा से मिली है। तो फिर वो किसी भी तरह का सिनेमा हो उससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं उसे बस देखना पसंद करता हूं। मैं उसका इंतजार करता हूं कि कोई फिल्म आए और मैं उसे देखूं। मैं वर्ल्ड सिनेमा देखता हूं या पुरानी हिन्दी फिल्में देखता हूं या फिर अंग्रेजी फिल्में भी देख लेता हूं। मुझे ऐसा लगता है कि सिनेमा इतिहास को दिखाता है। मैं अपने लिए भी ऐसी फिल्म करना चाहता हूं जिसमें कहानी बहुत अच्छी हो। अभी तक दोनों फिल्म जो मैंने की है, वो अच्छी कहानी कह रही है।
 
'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में आपको बहुत पसंद किया गया। माजिद जैसे बड़े निर्देशक के साथ काम करना कैसा रहा?
मेरी तो औकात भी नहीं है कि मैं माजिद मजीदी जैसे निर्देशक को मना कर सकूं कि वो मुझे फिल्म में ले लें। ये कोई सोची-समझी नीति भी नहीं थी कि मैं पहली ही फिल्म अंतरराष्ट्रीय फिल्मकार के साथ करूं। मुझे याद है कि मैंने 2 साल पहले कहा था कि मेरा सपना है कि मैं किसी दिन माजिद मजीदी जैसे निर्देशकों के साथ काम कर सकूं। तो 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' के जरिए वो सपना मेरा पूरा हो गया। शायद मैं बहुत लकी रहा कि सही समय पर सही शख्स से मिल सका। मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मैं उनके जैसे निर्देशक से मिल सका और उन्हें ऑडिशन दे सका।
 
आपके लिए मधु का किरदार कितना आसान या मुश्किल रहा, क्योंकि इस किरदार को लोग 'सैराट' में देख चुके हैं?
आपको मधु नहीं मालूम है, क्योंकि 'धड़क', 'सैराट' का ऑफिशियल अडैप्टेशन है, नकल नहीं है। 'सैराट' के पश्या और आर्ची महाराष्ट्र के कर्माड़ा गांव में रहते थे जबकि मधु और पार्थवी उदयपुर, राजस्थान में रहने वाले लोग हैं। इस फिल्म के जरिए हम दिखाना चाहते थे कि कहानी महाराष्ट्र के कर्माड़ा गांव की हो या फिर उदयपुर की, ये दोनों जगहों पर प्रासंगिक है। 
 
आपके साथ या थोड़ी पहले कई एक्टर्स आए हैं, तो कोई प्रतिस्पर्धा लगती है?
नहीं... मैं इस बात को अलग होकर सोचता हूं कि जो मेरे सामने लोग खड़े हैं, उनमें ऐसा क्या है, जो मैं सीख सकूं या अपना सकूं। मैं उनसे डरना या हीनभावना में नहीं जाना चाहता हूं। अगर कोई अच्छा काम कर रहा है, तो उसमें घबराना क्यों है? 
 
आप प्रेरणा किससे लेते हैं?
मेरे घर में दो एक्टर पहले से ही मौजूद हैं। मेरी मां और भाई। मेरी मां की वजह से मैंने बचपन से कई कॉन्सर्ट देखे हैं। मां कथक डांसर हैं, तो मैंने बिरजू महाराज जैसे शख्स को बचपन से देखा है। मैं इन दोनों के अलावा कई निर्देशकों से बहुत कुछ सीखता रहता हूं। मैं सिनेमा से बहुत कुछ सीख-समझ जाता हूं। सिनेमा ने मुझे जिंदगी सिखाई है और जिंदगी ने सिनेमा। कई एक्टर्स हैं, जो मुझे पसंद हैं। दिग्गज जैसे दिलीप कुमार साहब या मार्लिंन ब्रैंडो या फिर मुझे हीथ लैजर का काम बहुत पसंद था। आज के समय की बात करें तो हमारे सामने विकी कौशल जैसे कलाकार हैं या रणबीर कितने कमाल के एक्टर हैं। मर्लिन स्ट्रीप कितनी अच्छी एक्टर हैं, वे जो रोल करती हैं उसमें कुछ न कुछ नया करती रहती हैं। 

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