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आमिर ने कहा- 'वेलकम टू दंगल...': साक्षी तंवर

रूना आशीष
फिल्म 'दंगल' में एक हानिकारक पिता और लड़कों से दो-दो हाथ करने वाली बेटियों की मां बनना कोई आसान बात नहीं है। लेकिन फिल्म में अपने लक्ष्य को हासिल करने में लगे पिता और उनके सपनों को परवाज देने वाली बेटियों के बीच रियलिटी चेक रखने वाली मां है। इस अहम रोल को निभाने वाली हैं साक्षी तंवर। उनसे खास बातचीत की हमारी संवाददाता रूना आशीष ने...
 
साक्षी, जब पहली बार नाम सुना फिल्म का 'दंगल' तो क्या बात जेहन में आई?
मैंने जब पहली बार नाम सुना तो पहलवानी ही दिमाग में आई। नाम से भी जाहिर था। मैंने भी न्यूजपेपर में पढ़ा था कि आमिर ऐसी कोई फिल्म कर रहे हैं। कास्टिंग चल रही है व लड़कियों की तलाश चल रही है। ये सब मैं पढ़ती थी लेकिन कभी ये खयाल जेहन में आया नहीं कि मैं इसका हिस्सा बनने वाली हूं। पहला जब मुझे कॉल आया था कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की ऑफिस से, तो यकीन नहीं हो रहा था कि मुझे बुलाया गया। मुझे लगा कि ये उन कॉल्स में से हैं जो आते हैं,  आप ऑडिशन में जाते हैं और फिर कुछ नहीं होता है। मैंने कहा कि क्यों मजाक कर रहे हो? ये इतनी बड़ी फिल्म है, इसमें मैं कहां? उन्होंने कहा कि अरे, आप आओ तो सही। तो मैं गई ऑडिशन में और मुकेश सर ने कहा कि बहुत ही अच्छा रोल है आप करके तो देखो। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि आमिर सर आपसे मिलना चाहते हैं तो थोड़े दिनों बाद मैं उनसे मिली। बहुत छोटी-सी मुलाकात थी। उन्होंने कहा कि चलो सीन करते हैं। ये वो ही वाला सीन था जिसमें वे कहते हैं कि 'म्हारी छोरी किसी छोरे से कम है के'?


 
ये सीन ही आपका ऑडिशन वाला सीन बन गया?
हां, ये हमने सीन किया फिर थोड़े से वैरिएशन के साथ सीन किए। कभी थोड़े सख्त अंदाज में, कभी थोड़े सरल अंदाज में। मुझसे पूछा गया कि आपकी डेट्स के बारे में बता दीजिए, तो मैंने उस समय एक ट्रिप तय किया हुआ था भूटान का। मेरे घर वाले और मेरी बहन जाने वाले थे। मैंने तो वो बताया भी नहीं। मैंने कह दिया नहीं मैं तो फ्री ही हूं। फिर मुझे बोला गया कि एसोसिएट प्रोड्यूसर राव से बात तय कर लो। फिर मैं राव साहब से मिली तो उन्होंने मुझे बहुत सारी डेट्स की लिस्ट थमा दी। यहां तक कि अगले साल के जून की भी डेट थी तो मैंने कहा कि बाप-बेटी की कहानी में मेरा कितना काम होगा? फिर भी मैंने अपनी डेट्स दे दी और फिर उसी शाम को आमिर सर का मैसेज आया तो मैंने कॉल बैक किया। उन्होंने कहा कि 'वेलकम टू 'दंगल', यू आर ऑन बोर्ड।' ये सब बहुत फटाफट हुआ था। मेरी कास्टिंग भी बहुत बाद में हुई थी यानी बेटियां पहले आई थीं और मां बाद में आई फिल्म में। थोड़े ही दिनों बाद में मुझे लुधियाना जाना था लेकिन मैं उस समय तक बिलकुल ब्लैंक थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था तो आमिर सर बोले, ठीक है, ऑफिस में से कोई आपको स्क्रिप्ट के लिए कॉल कर लेगा तो मैंने कहा, ओके। उस समय मुझे बस इतना याद है कि मैंने अपनी बहन को फोन लगाया और कहा कि मैं भूटान नहीं आ सकती हूं तो वो गुस्सा करने लगी। मैंने कहा कि शायद मैं एक फिल्म कर लूं यानी तब तक भी यकीन नहीं हो रहा था। बाद में फिर जब पेपर्स में आया तो सबने कॉल किया और कहा कि तुमने कभी बताया नहीं हमें, तो मैंने कहा मुझे भी अभी मालूम पड़ा।
 
आपका फिल्म में एक संवाद है कि मैं आपको लड़का नहीं दे पाई जी?
ये संवाद कुछ झिंझोड़ देता है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण संवाद है। आपको दुख या दर्द आपको समझ में तभी आएगा, जब आप फिल्म देखेंगे। उस औरत की कहानी और जीवन के उतार-चढ़ाव को देखेंगे। मेरे लिए बहुत जरूरी था कि जिस तरह के इमोशन उस समय चाहिए हैं, उसे मैं निभा सकूं और दर्शकों तक उस भाव को सही तरीके से पहुंचा सकूं। मुझे नितीश सर ने मुझे बहुत बढ़िया ब्रीफ दिया था। उन्होंने मुझे जो बताया था तो पर्दे पर मैं वही हूं।
 
आपकी मुलाकात महावीरसिंहजी के परिवार से हुई, बच्चियों से हुई, कैसा था वो सब?
हां, मैं मिली उस परिवार से। मैं गीता की शादी में गई थी और इसके पहले वे मुहूर्त शॉट वाले दिन आए थे। मैं गीता-बबीता से भी मिली। बड़ी प्यारी हैं वे दोनों। सीधी-सादी हैं। असल में तो स्टार्स वही हैं ना। इतनी सिंपल हैं। उनकी वजह से हमें देश के बाहर के लोग जानते हैं। कोई बनावटीपन नहीं। महावीरसिंहजी ने तो हमारा पहला शॉट दिया था। बाकी जो दयाजी हैं गीता की मां, उनसे गीता की शादी के समय में मैं मिली। मैं फिल्म की शूटिंग के दौरान कभी नहीं मिली। मैं तो जब शादी में उनसे मिली तो कहकर भी आई थी कि आप मुझे देखकर बताना कि कितना मैं आपके करीब पहुंच सकी या गीता-बबीता की जिंदगी में जो आपका किरदार रहा है, वो बताना। तो वे बोलीं कि जरूर बताऊंगी मैं।
 
आप पिता और बेटियों के बीच फंसी एक मां हैं?
नहीं, मैं इसे कहूंगी कि वो पिता और बेटियों के बीच एक पुल का काम कर रही है, क्योंकि पिता जो करना चाहते हैं उनके तरीके से वे खुश नहीं हैं। वो कहती भी है कि कहीं अपने सपने के लिए आप तो नहीं ये सब कर रहे हैं ना? लेकिन फिर भी वो ये समझती है कि बेटियों के भविष्य के लिए सही है। वो अपने पति के लिए हर समय तनकर खड़ी रही है, उनका साथ निभाती है।
 
आमिर सेट पर कैसे रहते हैं?
आमिर सेट पर सिर्फ एक एक्टर रहते हैं और बिलकुल फोकस्ड रहते हैं सींस को लेकर। आप ऐसा बिलकुल नहीं कह सकते हैं कि ये फिल्म के निर्माता हैं। बेहद सादगी वाले इंसान हैं। सेट पर कोई किसी से आगे नहीं था, चाहे वे आमिर हों या निर्देशक हो या फिल्म से जुड़े लोग हों। शूट शुरू होने के पहले हमारे सेलफोन ले लिए जाते थे और फिर शाम को मिलते थे। किसी तरह का कुछ अलग था नहीं। आपको कभी नहीं लगता कि आप आमिर खान के साथ काम कर रहे हैं। वे किसी भी काम में दखलंदाजी करते ही नहीं। कभी ये नहीं बोला कि मेरा शूट का समय बदल दो। सुबह 4.45 बजे होटल से निकलना ही है, मतलब निकलना है। 5.30 बजे लोकेशन पर पहुंचना है। 6 बजे तक मैकअप होना है और 6.15 बजे शॉट लगना है। मेरा काम तो फिर भी सीमित था। चारों लड़कियां और आमिर सर की शूट के आगे-पीछे रेसलिंग की ट्रेनिंग भी होनी थी।  जिम, रनिंग, तैरना सब करते थे और उनकी वजह से कभी भी शूट में देरी नहीं हुई है। कभी कोई दखलंदाजी नहीं होती थी।
 
आपकी फिल्म को वे महिलाएं जरूर देखने आएंगी, जो 'पार्वती भाभी' को पसंद करती हैं या 'मिस्टर कपूर' कहने की आपकी स्टाइल को मिस करती हैं?
मैं चाहूंगी कि वे महिलाएं फिल्म जरूर देखें। उन्होंने इतने सालों तक प्यार किया है मुझे। मैंने बड़ी अनोखी-सी चीजें की हैं, जो रोल की जरूरत के हिसाब से भी थीं। गोबर के कंडे भी थापे हैं, रोटियां बनाई हैं, सिलाई मशीन भी चलाई हैं तो आप सभी महिलाएं इसमें अपने आपको देखेंगी और आशा है कि जो प्यार मुझे टीवी पर इन महिलाओं से मिलता रहा है, वह भी मिलता रहेगा।
 
फिल्म के जरिए आपका क्या संदेश है?
वह जो फिल्म में लिखा है न, वह ही मैसेज या संदेश है मेरा- 'छोरियां क्या छोरों से कम हैं?'

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