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मिर्जापुर 3 में कालीन भैया बनकर फिर वापसी कर रहे पंकज त्रिपाठी, बोले- कुछ अलग तरीके से सोचना पड़ता है | Exclusive Interview

मिर्जापुर 3 में कालीन भैया बनकर फिर वापसी कर रहे पंकज त्रिपाठी, बोले- कुछ अलग तरीके से सोचना पड़ता है | Exclusive Interview

रूना आशीष

, गुरुवार, 4 जुलाई 2024 (11:10 IST)
Pankaj Tripathi Interview : मुझे नहीं लगता मुझ में कोई खास बदलाव आए हैं। मैं जैसा पहले था, अभी भी वैसा ही हूं। हां थोड़ा अगर कुछ तब्दीली हुई है तो इतना कह सकता हूं कि मुझ में विनम्रता ज्यादा हो गई है। मैं अब बहुत ज्यादा विनम्र महसूस करता हूं। अभी हाल ही की बात है मेरे बिल्डिंग में ही एक डॉक्टर साहब रहते हैं। सुबह जब हम मॉर्निंग वॉक करे थे तब उन्होंने रोका और कहा कि उन की कोई परिचित है जो मेरे बड़े फैन है। तब मैंने झुक कर उनको कहा कि मेरा प्रणाम उनको कहिएगा बस इतना ही अंतर आया है पहले और आज के पंकज त्रिपाठी में।
 
ये कहना है पंकज त्रिपाठी का जो वेब सीरीज मिर्जापुर 3 के साथ एक बार फिर से लोगों के सामने आ रहे हैं। मिर्जापुर एक और दो दोनों में ही पंकज त्रिपाठी के दमदार अभिनय और उनके खौफनाक वाले रोल की वजह से इस सीरीज को बहुत ज्यादा पसंद किया गया। साथ ही कालीन भैया के किरदार को लोगों ने हाथों-हाथ लिया है। अपने इसी वेब सीरीज के तीसरे भाग के प्रमोशन इंटरव्यू के दौरान पंकज त्रिपाठी ने मीडिया से खुलकर बातचीत की।
 
पंकज त्रिपाठी आगे बताते हैं, अब मुझे काम करने के लिए कुछ अलग तरीके से सोचना पड़ता है। पहले शूटिंग की कोई खबर आती थी कि चलिए यह काम करना है तो मुझे कम से कम 20 दिन की शूटिंग हो रही है इतना ही काफी है। लेकिन अब यह हो गया है कि कोई स्क्रिप्ट मैं पढ़ता हूं तो मुझे लगता है या तो वह कहानी हमें डराए या हमें हंस आए रोना आ आए। ऐसा किरदार में कुछ हो जो मुझे रातों में जगाया करे।
 
मैं जब भी कोई किरदार चुनता हूं अपने लिए तो जैसे बड़ा ही किसी पेड़ में कुर्सी देख लेता है मैं भी अपने किरदार में एक हूं हुक प्वाइंट ढूंढता हूं। जहां मुझे लगता है कि हां, यह कहानी में कह सकता हूं और यह कहानी जब मैं पर्दे पर उतार लूंगा तो लोग भी जानना चाहेंगे कि यह किस तरीके का व्यक्ति है जिस तरीके का व्यक्तित्व रखता है।
 
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आप इतनी सारी फिल्मों के बीच में मिर्जापुर करते हैं सब कैरेक्टर अलग होते हैं कभी ऐसा नहीं हुआ कि आपके किरदार में दूसरा किरदार चला आया। 
बिल्कुल ऐसा होता है स्वाभाविक ऐसा होना। कालीन भैया की जब मैंने शूटिंग शुरू की थी तो एक टेक दिया ठीक ठाक रहा। हमें लगा सब कुछ ठीक है। फिर निदेशक साहब पीछे से और धीरे से बोले कि कुछ ठीक नहीं है इसको ऐसे मत निभायें। कालीन भैया जो है वह कभी भी किसी भी बात पर अपनी राय नहीं रखता है। तब बहुत देर तक समझ में नहीं आता है कि इस विषय पर कालीन भैया ने हां कहा है या ना कहा है। आप भी इस किरदार को वैसे ही आगे बढ़ाइए। इस सीजन में भी और कोई राय मत दीजिए। तो 1 या दो टेक मुझे लगे कि मैं अपने किरदार में लौट सकूं फिर काम ठीक हो गया, लेकिन यह तो कहने की बात है। ऐसा सच में मेरे साथ हुआ था जहां मेरे एक किरदार में दूसरे किरदार मैं ले आया था। 
 
अटल फिल्म जब मैं कर रहा था तो नोएडा में मैंने काम खत्म किया। पूरी फिल्म खत्म हुई और अगले दिन मैं ललितपुर पहुंच गया जहां पर मुझे स्त्री की शूटिंग करनी थी। एक दो टेक हो भी गए और निर्देशक साहब आए और बोले कि पंकज जी अभी भी स्त्री में अटल दिखाई दे रहा है और मैं चौंक गया। मैंने फिर भी पूरी कोशिश की जब दो तीन टेक और लिए फिर निर्देशक साहब ने कहा कि पंकज जी ऐसा कीजिए आजा ब्रेक ले लीजिए। मैं बड़ा खुश हो गया। 
 
मैंने निर्देशक को देखकर कहा, अच्छा हुआ ब्रेक मिल रहा है। मैं कल रात को ही अटल खत्म करके सुबह तुम्हारे पास ललितपुर में स्त्री शूट करने के लिए पहुंचा हूं। यह ब्रेक मुझे बड़ा अच्छा लगा, मैं गया पूरा दिन सोता रहा और अगले दिन फ्रेश होकर स्त्री की शूटिंग करने में जुट गया
 
सब आपको बहुत प्यार करते हैं, लेकिन आपकी जिंदगी में आपका असली क्रिटिक कौन है? 
मैंने अपने घर में एक क्रिटिक रख लिया है। मेरी पत्नी मेरी सबसे बड़ी क्रिटिक है। सही-सही बता देती क्या ठीक है और क्या ठीक नहीं है उसके बाद मैं खुद अपना बहुत बड़ा क्रिटिक हूं। मैं हर चीज को देखकर परख कर बार-बार मूल्यांकन करके सोचता हूं कि ऐसा करूं या ना करूं? हालांकि मैं खुद फिल्में ज्यादा नहीं देखता हूं। लेकिन अब सोच रहा हूं कि मैं फिल्में देखना शुरू करूं। बतौर अभिनेता मेरे लिए ठीक नहीं है तो बस आने वाले दिनों में मैं अमेजॉन प्राइम की मेंबरशिप ले लूंगा। और नहीं मुझे अमेजॉन प्राइम की मेंबरशिप बिल्कुल फ्री नहीं मिली है। मुझे पैसे दे कर ही देखना पड़ेगा। 
 
हमने सुना आप अपना टेक भी कभी मॉनिटर में नहीं देखते। 
मुझे अच्छा नहीं लगता मैंने शॉट दे दिया है, निर्देशक ने ओके बोल दिया है उसके बाद फिर मैं कौन हूं, उसे सही गलत साबित करने वाला मेरे लिए मॉनिटर में देखना इतनी बड़ी बात नहीं होती है। यह सब चीजें मैं अपने निर्देशक की आंखों में देख लेता हूं। अगर उसे ठीक लग रहा है तो उसकी आंखें मुझे बता देती हैं कि टेक ठीक हुआ है। और ऐसा ही मैं अपने मेकअप के साथ भी करता हूं। मैं कभी आईने में यह नहीं देखता की मेकअप ठीक हुआ है या नहीं? मेरे मेकअप दादा है सुरेश मोहंती। उन्होंने देख लिया, वह जानकार है। उनको लगा मेरा मेकअप ठीक हुआ है तो बस ठीक हुआ है।
 
कुछ सालों पहले जब काम नहीं मिलता था तब का स्ट्रगल और अब सबसे अच्छा काम कौन सा है। दोनों में कितना अंतर है? 
पहले कि स्ट्रगल में मुझे यह मालूम था कि काम मिल जाए तो मेरे आस-पास किसी को बुरा भी नहीं लगेगा। लेकिन अब जब अच्छा काम मिलता है तो मुझे मालूम है कि मेरे आस-पास के कई लोगों को बुरा लग सकता है। कामयाबी की सीढ़ी चढ़ने पर कई सारे लोग बुरा मानने लग जाते हैं। 

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