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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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बॉक्स ऑफिस पर कलंक फ्लॉप होने के 5 कारण

बॉक्स ऑफिस पर कलंक फ्लॉप होने के 5 कारण
करण जौहर की 150 करोड़ रुपये के बजट वाली मल्टीस्टारर फिल्म 'कलंक' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई है। पहले दिन ही फिल्म अच्छा प्रदर्शन कर पाई क्योंकि उत्सुकतावश दर्शक बिना फिल्म की रिपोर्ट जाने सिनेमाघर पहुंच गए थे।

जैसे ही फिल्म के बारे में नकारात्मक खबरें सामने आईं दर्शकों ने मुंह फेर लिया और फिल्म दूसरे दिन से ही धड़ाम हो गई। कलंक में ऐसा कुछ भी नहीं था‍ जो दर्शकों को पसंद आता। पेश हैं ऐसे पांच कारण जिनकी वजह से फिल्म को असफलता का मुंह देखना पड़ा। 

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कमजोर बुनियाद
किसी भी फिल्म की बुनियाद कहानी होती है। कलंक यही मार खा गई। कहानी बिलकुल भी विश्वसनीय नहीं है। फिल्म देखते समय कई प्रश्न दर्शकों के दिमाग में कौंधते हैं जिनका जवाब नहीं मिलता। क्यों किरदार अजीब व्यवहार कर रहे हैं ये भी समझ नहीं आता? 
 
एक पति अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता है और उसके होते हुए वह दूसरी महिला से शादी करने के लिए केवल इसलिए राजी हो जाता है क्योंकि उसकी पत्नी मरने वाली है। इस तरह की बातें दर्शक पचा नहीं पाते। 
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स्क्रीनप्ले में भी बात नहीं 
कई बार कमजोर कहानी को मजबूत स्क्रीनप्ले बचा लेता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो पाता। स्क्रीनप्ले पर चल रहे घटनाक्रमों से दर्शक जुड़ नहीं पाते। 
 
शहर का भूगोल समझ नहीं आता। गानों के लिए ठीक से सिचुएशन ही नहीं बनाई गई है। बुल फाइट जैसे सीन क्यों रखे गए हैं समझ से परे है। 
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सपाट निर्देशन
अभिषेक वर्मन ने दर्शकों को महंगे सेट, बड़ी स्टार कास्ट और शानदार सिनेमाटोग्राफी से रिझाने की कोशिश की है। कहने को तो फिल्म एक इंटेंस ड्रामा है, लेकिन इमोशन दिल को नहीं छू पाते।
 
न मुख्य किरदारों की मोहब्बत दर्शकों के दिल को छूती है और न ही षड्यंत्र दिल दहलाते हैं। अभिषेक का डायरेक्शन सपाट है। उन्होंने उथल-पुथल तो खूब दिखाई है लेकिन यह कहीं भी अपील नहीं करती।
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अखरने वाली लंबाई
2 घंटे 48 मिनट लंबी यह फिल्म है। फिल्म अच्छी हो तो उसकी अवधि का पता ही नहीं लगता, लेकिन कलंक देखते समय ऐसा लगता है कि फिल्म खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। 
 
ऐसा महसूस होता है कि यह फिल्म 6 घंटे की हो। समय काटते नहीं बनता। सम्पादन में बिलकुल भी कसावट नहीं है। दृश्य बेहद उबाऊ, लंबे और दोहराव लिए हुए हैं। 

मनोरंजन का नामो-निशान नहीं 
मनोरंजन का फिल्म में नामो-निशान नहीं है। न हंसी आती है और न रोना। न एक्शन रोमांचित करता है और न ही गाने। फिल्म में एक अजीब सी उदासी छाई हुए है जो दर्शक को भी उदास कर देती है। 
 
इस फिल्म से मैसेज तो छोड़िए मनोरंजन भी नहीं मिलता जिसकी आस में दर्शक टिकट खरीदता है। 

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