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बॉलीवुड पर नोटबंदी का क्या हुआ असर?

समय ताम्रकर
नोटबंदी को एक साल पूरा हो गया और लोग नफे-नुकसान का अनुमान लगा रहे हैं। वैसे सटीक जवाब किसी के पास नजर नहीं आता। सारा खेल अनुमान पर है। क्या नोटबंदी का असर बॉलीवुड पर पड़ा है? असर तो पड़ा है, लेकिन नोटबंदी को ही दोष नहीं दिया जा सकता। पिछले कुछ वर्षों से लगातार 'फुटफाल' कम होते जा रहे हैं। यानी सिनेमाघर में टिकट खरीद कर फिल्म देखने वाले दर्शकों की संख्या का ग्राफ नीचे आ रहा है और ये बिना नोटबंदी के भी हो रहा था। भले ही मनोरंजन के कई विकल्प मिल गए हों, लेकिन फिल्म देखना ज्यादातर को पसंद है। ये बात और है कि वे सिनेमाघर के बजाय टीवी, मोबाइल या कम्प्यूटर पर ही फिल्म देख लेते हैं। पांच रुपये में नुक्कड़ की दुकान पर फिल्म मिल जाती हो तो महंगा टिकट कौन खरीदे? लिहाजा नुकसान फिल्म उद्योग को उठाना पड़ता है। 
 
नोटबंदी पूरे होने के एक वर्ष पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि इन 365 दिनों में कई कई फिल्में बुरी तरह असफल रही हैं। इनकी असफलता से बॉलीवुड हिल गया है। पिछले कुछ वर्षों में बड़े सितारों की जो फिल्में असफल होती थी, उनमें दस से बीस प्रतिशत तक घाटा होता था, लेकिन सलमान खान की ट्यूबलाइट, शाहरुख खान की 'जब हैरी मेट सेजल', शाहिद-कंगना की 'रंगून', रणबीर कपूर की 'जग्गा जासूस' जैसी फिल्मों से तगड़ा नुकसान हुआ। इन फिल्मों की ऐसी गत होगी किसी ने भी नहीं सोचा था। ये फिल्में भी ढंग की नहीं थी। कम बजट में बनी, भूमि, हसीना पारकर, लखनऊ सेंट्रल, सिमरन, राब्ता, नूर, बेगम जान ने भी पानी नहीं मांगा। इनसे भी इतना कम व्यवसाय की आशा नहीं थी। 
 
सिक्के का दूसरा पहलू देखा जाए तो नोटबंदी लागू होने के ठीक 32 दिन बाद 'दंगल' फिल्म रिलीज हुई और इस फिल्म ने आय के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए। भारत में 387 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया। दंगल का कीर्तिमान चार महीने ही कायम रहा और देखते ही देखते बाहुबली 2 द कॉन्क्लूज़न जैसी फिल्म इससे आगे निकल गई। इस फिल्म जैसी कामयाबी आज तक किसी को नहीं मिली। यह दोनों रिकॉर्डतोड़ सफलता बॉलीवुड को नोटबंदी लागू होने के बाद मिली। बाद में जीएसटी भी आ गया। नोटबंदी से ज्यादा असर जीएसटी का हुआ और खासतौर पर सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर इसकी चपेट में आए जो पहले से ही लड़खड़ाते हुए चल रहे थे। 
 
नोटबंदी का हम ये असर मान सकते हैं कि दर्शक बेहद चूज़ी हो गए हैं। मान लीजिए पहले चार लोगों का एक परिवार महीने में एक फिल्म देखता था तो वह अब तीन महीने में एक फिल्म देखने लगा है। वह पहले से निर्णय ले लेता है कि फलां फिल्म देखना है। जैसे राखी पर 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' या दिवाली पर 'गोलमाल अगेन'। फिल्म के अच्‍छे या बुरे होने से उन्हें मतलब नहीं है। वे उसी वक्त पैसा खर्च करेंगे जब खर्च करने का निर्णय लिया गया है। दर्शक के चूज़ी होने का असर ये हुआ कि हिट फिल्मों का व्यवसाय बहुत बढ़ गया और फ्लॉप फिल्मों का नुकसान और गहरा हो गया। नोटबंदी का ये असर मानना हो तो मान लीजिए।  

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