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लता मंगेशकर की आवाज़ में दूर तक मन्दिर ही मन्दिर हैं, कभी मयखाना भी आ जाता है

नवीन जैन
सोमवार, 27 सितम्बर 2021 (19:09 IST)
किसी वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा था कि भारत रत्न सचिन तेंदुलकर या क्रिकेट शिखर पुरूष सुनील गावस्कर पर अब लिखने को बचा ही क्या है? उठाने वालों ने सवाल उठा दिया कि फिर तो रामचरित मानस पर भी बार बार मंथन क्यों होता है? ऐसा ही कुछ सुरों की देवी और आवाज़ जादूगरनी लता मंगेशकरजी के बारे में भी कहा जा सकता है। इस बात में कोई दास्य भाव तलाशता हो तो कदाचित उन तक एक जानकारी नहीं पहुंची होगी। क्या? यह कि कुछ नामी गिरामी विदेशी वैज्ञानिकों ने एक बार ऑफ द रेकॉर्ड कह दिया था कि हम लता मंगेशकर के गले की जाँच करना चाहते हैं। मुँह माँगी रकम चुकाकर। इस तरह की बेसिर पैर बातों को अन्यथा इसलिए नहीं लिया जाना चाहिए कि राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी को लेकर भी लगभग इसी तरह की बातें कही जाती रही हैं। 
 
लता का जन्म 28 सितम्बर 1992 को मध्यप्रदेश के इन्दौर शहर में मास्टर दीनानाथ के यहाँ हुआ था। पण्डितजी स्वयं गायक एवं नाट्यकर्मी थे। कुछ ही साल बाद मंगेशकर परिवार सांगली, कोल्हापुर और अंत में मुंबई शिफ़्ट हो गया। दोनों छोटी बहनों आशा और मीना का जन्म भी इसी दौरान हुआ।
 
बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि लता का असली नाम हेमा था। लोग आज भी कहते नहीं थकते कि लता तुनकमिजाज हैं, जरा से में गुस्से पर उतर आती रही हैं वगैरह। इस तरह की बातें सिर्फ़ बकवास ही होती हैं। प्रत्येक प्रतिभावान के व्यक्तित्व में कोई तो नैसर्गिक कमी होती ही है। चर्चा उनके कृतित्व पर होनी चाहिए। 
 
जहाँ तक गुस्सैल स्वभाव का तकाज़ा है तो 'सत्यम शिवम सुंदरम' बनाते वक़्त राजकपूर की किसी टिप्पणी से आहत होकर इस फ़िल्म के लिए लता ने गाने से साफ़ इनकार कर दिया। उधर, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने भी राज साहब से कह दिया कि लता के अलावा किसी के साथ काम नहीं कर पाएंगे। उक्त फ़िल्म का भविष्य ही अधर में लटक गया। किसी तरह लता को मनाकर रिकॉर्डिंग के लिए लाया गया। गुस्सा अभी भी उतरा नहीं था, लेकिन लता ने पूरा गाना अच्छे से याद कर लिया। फिर एक ही टेक में पूरा गाना फाइनल हो गया। लताजी घर लौट गईं। ये गाना आज भी सुन लो तो गीत जैसा रस कानों में घोलता है और कभी लगता है कि हम अध्यात्म की अनंत दुनिया में खो गए हैं। गाने के बोल हैं- 'सत्यम शिवम सुंदरम।' 
 
भारत रत्न, डॉक्टर ऑफ नेशन, दादा साहब फाल्के पुरस्कारों से सम्मानित के लता के सम्मान में मध्यप्रदेश में प्रत्येक वर्ष एक पुरस्कार भी दिया जाता है। 
 
फ़िल्म 'महल' में पहला गीत गाने वाली लता मंगेशकर की देवानन्द, किशोर कुमार, मुकेश से अच्छी केमिस्ट्री थी, लेकिन गानों की रॉयल्टी को लेकर मोहम्मद रफ़ी से वे ख़फ़ा हो गई थीं। फिर, कुछ समय तक डिप्रेशन में भी रहीं, लेकिन उनका सेकण्ड हाफ ज़्यादा यादगार माना जाता है। कहते हैं उनके ही खानसामा ने उन्हें धीमा ज़हर देने की कोशिश भी की थी। बाद में लताजी ने ही उसे माफ़ कर दिया।
 
फ़िल्म 'गाइड' का शैलेन्द्र द्वारा लिखित यह गाना नहीं सुना तो क्या सुना। बोल हैं- 'कांटों से खींचकर ये आँचल'। इस गाने की विशेषता बहुत कम लोगों को मालूम होगी कि इसमें अंतरा पहले गाया गया है और मुखड़ा बाद में।
 
शुरू में लता की आवाज़ को पतली बताकर दरगुज़र किया जा रहा था, लेकिन पाकिस्तान के गुलाम हैदर और नूरजहाँ ने उनकी बहुत मदद की। लता एवं आशा के रिश्तों में तनाव के किस्से भी मशहूर हैं। कहा जाता है कि कवि प्रदीप द्वारा लिखित कालजयी गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों', संगीतकार सी. रामचन्द्र आशा भोसले से गवाना चाहते थे, लेकिन अंतिम समय में लता को मौका दे दिया गया। कहते हैं इसके पीछे पण्डित नेहरू का हाथ था। जब यह गीत 15 अगस्त पर पहली बार लता ने लाल किले से गाया तो सामने बैठे अधिकांश मेहमान रो रहे थे। नेहरूजी ने बाद में कहा, बेटी तूने मुझे आज रुला दिया। 
 
इस कार्यक्रम में एक ऐसी भूल हुई कि इस गीत के रचनाकार कवि प्रदीप को उक्त कार्यक्रम में आमंत्रण ही नहीं दिया गया। इस प्रोग्राम के बाद कहते हैं लम्बे समय तक दोनों सगी बहनों लता और आशा में बात तक नहीं हुई।
 
इन्दौर की यादें तो उनके दिल में हरदम से बसी हुई हैं। यहाँ का नमकीन और मिष्ठान्न उनके लिए खास तौर पर भेजा जाता है। पूरी दुनिया की दीदी हो चुकी लताजी ने गाने के लिए आवश्यक लगभग सभी परहेज शुरू से छोड़ रखे हैं। वे खूब मिर्चियाँ खाती थीं। उन्हें अचार, खटाई और दही भी बहुत पसंद रहा है, पर वे रियाज़ की पक्की हैं। 
 
उनका बचपन मुंबई में गुज़रा। खाने को रोटला तो बहरहाल जुट जाता था, लेकिन रहने को कहीं एक ओटला मिला। तीनों बेटियों को रात में वहीं सुलाकर उनकी माताजी रात भर सुरक्षा के लिए जागती और फिर दिन में सोतीं। एक बार यूँ हुआ कि एक बदमाश के पीछे कुछ गुंडे पड़ गए। तीनों बहने तो सोई हुई थीं, पर माताजी ने दौड़कर उस बदमाश की उन गुंडों से जान बचा ली। कहते हैं, उस बदमाश ने ग़लत कामों से हरदम के लिए तौबा कर ली और रात में उक्त ओटले पर आकर खुद जाग कर पहरा देता और पूरा मंगेशकर परिवार आराम से सोता।
 
लताजी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शुरू में उनके हिंदी उच्चारण में मराठी टच आता था। इसे सुधारने के लिए उन्होंने पहले ऊर्दू सीखी। एक काल खंड में तो उन्होंने एक दिन में सात-आठ गाने तक कम्पोज़ करवाए। कहा जाता रहा कि जब उनके पास काम बढ़ गया तो सुमन कल्याणपुर को मौका दिया गया। सुमन, यानी डुप्लीकेट लता, लेकिन बाद में सुमन कल्याणपुर अदृश्य हो गईं।
 
स्व. अटलजी ने प्रधानमंत्री रहते हुए भरसक कोशिश की कि लताजी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति का पद सौंप दिया जाए, पर बात बनी नहीं। जब अटलजी का निधन हो गया तो कहते हैं लम्बे समय तक गुमसुम लताजी ने किसी का फोन तक नहीं लिया।
 
लताजी के लिए दुनिया के तमाम विख्यात क्रिकेट स्टेडियम की सीट सालों रिजर्व्ड रखी गईं। उन्होंने ही कभी क्रिकेट को भारत का धर्म और सचिन तेंदुलकर को उसका भगवान बताया था। किसी ने लता और आशा में फ़र्क की परिभाषा इस तरह की थी- लता की आवाज़ में दूर तक मन्दिर ही मन्दिर हैं, हाँ, कभी मयखाना भी आ जाता है, लेकिन आशा भोसले के कन्ठ में तो अक्सर मयखाना ही लहराता है। 
 
इन्दौर के कभी गुमनाम मोहल्ले सिक्ख मोहल्ले में लताजी का जन्म सितम्बर 28 सन 1929 को हुआ था। परिवार में बाद में एक भाई ह्र्दयनाथ का आगमन भी हुआ। उन्होंने अपने लगभग सभी समकालीन संगीतकारों के साथ काम करते हुए कुल बीस भाषाओं में हजारों गाने गाए। वे पाकिस्तान की गायिका नूरजहाँ से भी प्रभावित रहीं।

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