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Cannes Film Festival: क्लासिक सेक्शन में मणिपुरी फिल्म 'ईशानो' की हुई स्क्रीनिंग

प्रज्ञा मिश्रा
रविवार, 21 मई 2023 (12:50 IST)
Photo credit : Twitter
Cannes Film Festival 2023: कान फिल्म फेस्टिवल में क्लासिक सेक्शन में मणिपुरी फिल्म 'ईशानो' देखने का मौका मिला। यह फिल्म पहली बार 1991 में इसी फेस्टिवल में अन सर्टेन रेगार्ड सेक्शन में शामिल हुई थी और इतने लंबे समय के बाद अपने रिस्टोरेट वर्जन रीस्टोरेड वर्जन के साथ एक बार फिर से दिखाई गई। 

 
88 साल के फिल्म के डायरेक्टर अरिबम श्याम शर्मा कान फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने के लिए यहां तक तो पहुंच गए लेकिन स्क्रीनिंग में शामिल नहीं हो सके क्योंकि उनकी तबियत ख़राब हो गई। इस फिल्म को लिखा है बिनोदिनी देवी ने। फिल्म का रीस्टोरेशन फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की कोशिशों से पूरा हुआ। फाउंडेशन ने शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर कहते हैं कि पहली बार इस फिल्म को 2021 में देखा था और उसी वक़्त तय कर लिया था कि जिस फिल्म ने मणिपुरी सिनेमा को दुनिया के नक़्शे पर लगा दिया उसे तो सहेजना भी है और फिर से दुनिया के सामने लाना है।
 
यह फिल्म मणिपुर के लोगों की जिंदगी और वहां की मान्यताओं की कहानी है। फिल्म की शुरुआत में ही बताया जाता है कि मणिपुर में माईबी मान्यता के हिसाब से कोई अपनी मर्ज़ी से माईबी नहीं बनता। उसे भगवान् ने चुना होता है। लेकिन अगर कोई महिला माईबी बनती है तो उसकी बेटी भी माईबी बनेगी ऐसा भी माना जाता है।
 
फिल्म शुरू होती है थम्पा और उसके छोटे से परिवार से, जहां उसकी बेटी है, पति है और मां। सब कुछ सुकून से चल रहा होता है कि अचानक थम्पा परिवार को छोड़ कर माईबी बन जाती है। यहां परिवार की उन अनकही मुश्किलों को महसूस करना होता है जब लोग कम से कम शब्दों में बात करते हैं।
 
फिल्म में धनबीर का किरदार निभाने वाले कंगबम तोम्बा भी कान फेस्टिवल में शिरकत कर रहे हैं। रेड कारपेट पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुके हैं और अपनी इस फिल्म के दोबारा यहां आने पर बहुत खुश हैं। बताते हैं कि एक ही दिन में पासपोर्ट और वीजा सब हासिल किया तब जाकर यहां आ पाए हैं।
 
बुनुएल थिएटर में इस फिल्म को देखना एक शानदार अनुभव है। बहुत ख़ुशी होती है कि भारत के अलग अलग इलाकों से फिल्में यहां तक आ पाती हैं लेकिन कहीं न कहीं दुःख भी होता है कि ऐसी फिल्मों की जानकारी भी हमें कान फिल्म फेस्टिवल की वजह से मिलती है। इस बात की कोशिशें करना बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी कला की धरोहर को बेहतर ढंग से सहेज पाएं।
 

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