महागठबंधन का दिवाली धमाका, भाजपा की महा हार
243 में से जेडीयू+ 178, बीजेपी+58, अन्य 7
पटना। सभी एक्जिट पोल को गलत साबित करते हुए नीतीश कुमार नीत महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत राजग को करारी शिकस्त दी है। विकास के मुद्दे पर भारी रहा जातिवाद और प्रांतवाद का मुद्दा। जहां मुस्लिम और यादव वोट को लालू ने पकड़ कर रखा वहीं नीतीश ने सुशासन का हवाला देकर जंगलराज के मुद्दे की हवा निकाल दी।
मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा प्रस्तुत नहीं करना, बिहार में शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेताओं के मोदी विरोधी सूर, भाजपा और शिवसेना के बीच तनाव, मोहन भागवत का आरक्षण वाला बयान, नीतीश को धोका देने वाले जीतनराम मांझी से हाथ मिलाना, महंगाई की मार जैसी अन्य कई बातें भाजपा को ले डूबी। भाजपा के लिए यह न भूलने वाला चुनाव होगा।
243 सदस्यीय सदन में 178 सीटें जीतकर महागठबंधन ने जहां अपना किला मजबूत किया, वहीं अपना सब कुछ दांव पर लगाकर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथ सिर्फ 58 सीटें लगीं।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद सबसे अधिक सीटें जीतकर फिर से बिहार में एक बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे हैं। लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में से 31 सीटें जीतने वाले भाजपा गठबंधन को विधानसभा चुनाव में ‘महाहार’ का सामना करना पड़ा जबकि उसके ‘महानायक’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी महाप्रचार का बीड़ा उठाते हुए विधानसभा चुनाव में 30 जनसभाएं की थी।
पिछले साल के लोकसभा चुनाव में मोदी के हाथों करारी हार का मलाल धोते हुए नवगठित जद (यू).राजद-कांग्रेस ने आंखें चौंधिया देने वाला प्रदर्शन किया। इनमें भी राजद को सबसे ज्यादा 80, जद (यू) को 71 और कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। महागठबंधन के सीट बंटवारे के तहत जदयू और राजद ने जहां 101.101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, वहीं कांग्रेस के खाते में 41 सीटें आई थी।
भाजपा को सबसे तगड़ा झटका उसके सहयोगियों की तरफ से मिला, जो 87 सीटों पर चुनाव लड़े और केवल पांच पर जीत दर्ज कर सके। भाजपा को उम्मीद थी कि वह राम विलास पासवान, जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा के जरिये पिछड़े और अति पिछड़े वोटों में सेंध लगा पायेगी लेकिन ऐसा हो न सका। पासवान और आरएलएसपी को जहां दो दो सीटें नसीब हुईं वहीं मांझी की पार्टी को तो सिर्फ एक ही जीत से संतोष करना पड़ा।
चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, मुलायम सिंह की सपा, मायावती की बसपा जैसी पार्टियां कोई प्रभाव नहीं दिखा सकीं और नतीजों में रीते हाथ रहीं। इस चुनाव में राजग और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर थी लेकिन चौथे चरण को छोड़कर सभी चरणों के मतदान में महागठबंधन का भारी दबदबा रहा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जदयू नेता नीतीश कुमार को फोन करके बिहार विधानसभा चुनाव में उनके गठबंधन की जीत के लिए बधाई दी, जिसके लिए नीतीश कुमार ने उनका धन्यवाद किया। बिहार विधानसभा चुनाव में विजयी के तौर पर उभरने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ‘‘मील के पत्थर’’ साबित हुए बिहार चुनाव में समाज का ध्रुवीकरण करने के प्रयास खारिज हो गए और इसके परिणाम में देश का मिजाज झलकता है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विकल्प चाहता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और जदयू को जहां 115 सीटें मिली थीं वहीं भाजपा 91 सीटें जीतने में सफल रहा था। राजद और कांग्रेस भी अपने अपने दम पर चुनाव मैदान में उतरी थीं और राजद को जहां 22 सीटें मिली थीं वहीं कांग्रेस केवल 4 पर सिमट गई थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए बिहार चुनाव के नतीजे पिछले 10 महीने में दूसरा बड़ा झटका है। इससे पहले दिल्ली के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर पार्टी को कहीं का नहीं छोड़ा था। भाजपा को मात्र तीन सीटें ही मिल सकी थीं।
पिछले वर्ष मई में लोकसभा चुनाव में प्रचंड वेग के साथ अपनी पार्टी का विजयरथ हांकने वाले मोदी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के साथ जम्मू कश्मीर में अकेले या गठबंधन सरकार बनाई। इस बात को ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब लोकसभा चुनाव में मोदी ने कांग्रेस, राजद और जदयू का सूपड़ा साफ करके राज्य की 40 में से 31 सीटें जीती थीं। इस जीत ने राजनीति के एक कुटिल सिद्धांत कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, को सतह पर ला दिया और इन तीनों पराजित योद्धाओं ने मोदी के खिलाफ कमर कस ली। एक महीने बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में तीनों दलों ने थोड़े संकोच के साथ हाथ मिलाया, लेकिन 10 में से 6 सीटों पर जीत ने तीनों पार्टियों को एक होने का हौंसला दिया और उसी का नतीजा था कि मोदी के सामने लोकसभा चुनाव में पिद्दी साबित हुई पार्टियां मोदी को ही बौना करने में कामयाब रहीं।
सीपीआई (एमएल.एल) को सिर्फ दो सीटें मिल सकीं, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार चार सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रहे। परिणाम आने के बाद मीडिया से मुखातिब महागठबंधन के ‘चाणक्य’ नीतीश कुमार और ‘किंगमेकर’ लालू प्रसाद ने कहा कि इन चुनाव परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इनसे ऐसा आभास मिला है कि लोग भाजपा के एक अच्छे और मजबूत विकल्प और एक शक्तिशाली विपक्ष के लिए तरस रहे हैं।
चुनाव नतीजों को ‘मील का पत्थर’ करार देते हुए कुमार ने कहा कि परिणाम सौहार्द के लिए और असहिष्णुता के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि ध्रुवीकरण के प्रयास धराशायी हो गए।
लालू ने मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि गठबंधन भाजपा के खिलाफ एक मजबूत राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाएगा और ‘दिल्ली कूच‘ के तहत प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में 10 दिन के भीतर एक रैली का आयोजन किया जाएगा।
लालू ने यह भी घोषणा की कि कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे। नीतीश कुमार ने कहा कि नयी सरकार न्याय और समग्र विकास के साथ खुशहाली को अपनी प्राथमिकता बनाएगी। उन्होंने कहा कि किसी के खिलाफ किसी तरह की दुर्भावना के बिना सरकार विपक्ष के साथ मिलकर काम करेगी।
अगले पन्ने पर क्या कहा अमित शाह ने...
बिहार विधानसभा चुनाव में हार स्वीकार करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को बधाई दी और कहा कि उनका दल जनादेश का सम्मान करता है।
राहुल गांधी ने महागठबंधन की जीत को विभाजनकारी सोच पर एकता की, अहंकार पर विनम्रता की और नफरत पर प्यार की जीत करार दिया।
भाजपा नेता राम माधव ने हालांकि इन दावों को खारिज किया कि बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। उन्होंने हालांकि इस हार के मद्देनजर सुधारात्मक कदम उठाने की बात कही।
आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी नीतीश कुमार को ‘ऐतिहासिक जीत’ पर बधाई दी।
चुनाव में भाजपा नीत गठबंधन की हार के बीच सहयोगी शिवसेना ने चुटकी लेते हुए कहा कि बिहार चुनाव परिणाम ‘एक नेता के पराभव’ का संकेत हैं।
कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कहा, ‘शाबास बिहार। कांग्रेस, राजद और जदयू के नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को बधाई। उन्होंने राजग के झूठे दावों को पराजित करने के लिए कठिन परिश्रम किया।’ चुनाव के समय महागठबंधन के पक्ष में खुलकर समर्थन में आई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विजय के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को बधाई दी और इसे ‘सहिष्णुता की विजय और असहिष्णुता की पराजय’ बताया।
यहां यह उल्लेख दिलचस्प है कि नीतीश कुमार ने जहां खुद ही चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया वहीं लालू भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके। हालांकि लालू के दो पुत्र तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव चुनावी महासमर में अपने हाथ आजमाने उतरे और विजयी रहे। इन चुनाव परिणामों ने जहां नीतीश को एक बार फिर बिहार की राजनीति का चाणक्य साबित किया वहीं हाशिए पर खड़े लालू प्रसाद को एक बार फिर राज्य की सियासत की धुरी बना दिया।
राजग की हार के साथ ही गठबंधन में विरोध के स्वर सुनाई देने लगे। भाजपा सांसद एवं पत्रकार चंदन मित्रा ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि महागठबंधन का सुव्यवस्थित विनम्र प्रचार और नीतीश कुमार को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का उसका दॉव काम कर गया। मतदाताओं ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की ओर से बनाये गए आक्रामक प्रचार को खारिज कर दिया।’ मित्रा ने यह भी कहा कि बिहार में एक मजबूत पार्टी नेतृत्व तैयार करने की जरूरत है।
नाराज चल रहे भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने महागठबंधन की जीत को ‘लोकतंत्र की जीत’ करार दिया और पार्टी के शीर्ष नेताओं पर यह कहते हुए कटाक्ष किया कि ‘बिहारी के मुकाबले बाहरी’ के मुद्दे का हमेशा के लिए समाधान हो गया है।
शत्रुघ्न ने श्रृंखलाबद्ध ट्वीट में कहा ‘लालू जी और नीतीश जी को बिहार चुनावों में जीत के लिए बधाई। हम जनता के जनादेश के आगे सिर झुकाते हैं। यह लोकतंत्र और बिहार की जनता की जीत है। मैं उन्हें सलाम करता हूं। ऐसा लगता है कि बिहारी बनाम बाहरी (और बिहारी बाबू की अनुपस्थिति) के मुद्दे का हमेशा के लिए समाधान हो गया है।’
पटना सहिब से भाजपा के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने एक अन्य ट्वीट में पार्टी नेतृत्व को सलाह दी ‘आत्मावलोकन, परिवर्तन, भविष्य में बेहतर रणनीति, टीमवर्क और समन्वय आज के दिन की मांग है। एक बार फिर बिहारियों को सलाम।’ बिहार से भाजपा सांसद आर के सिंह ने कहा कि आत्ममंथन होना चाहिए और जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। सिंह ने चुनाव से पहले पार्टी के टिकट वितरण की आलोचना की थी। (भाषा)