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प्रियंका गांधी के आक्रामक तेवर से मुश्किल में फंसी कांग्रेस की नैया पार लग पाएगी?

priyanka gandhi vadra

BBC Hindi

, सोमवार, 27 मार्च 2023 (10:33 IST)
- अभिनव गोयल
कायर है इस देश का प्रधानमंत्री, लगा दो केस मुझ पर, ले जाओ जेल मुझे भी। शहीद पिता का अपमान किया। मेरे पिता का शव तिरंगे में लिपटा हुआ आया। शहीद के बेटे को आप देशद्रोही कहते हैं। मीर जाफ़र कहा जाता है। लोकतंत्र को मेरे परिवार ने खून से सींचा।

मां का अपमान
न झुकेंगे, न पीछे हटेंगे, उसूलों पर डटे रहेंगे। ये शब्द बीते तीन दिन में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इस्तेमाल किए हैं। भाई और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द होने के बाद प्रियंका गांधी तल्ख़ तेवर के साथ बोलती नज़र आ रही हैं।

जिस तरीके से प्रियंका गांधी सामने आकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती दे रही हैं और बोलते हुए जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रही हैं उसे देखकर राजनीति के जानकार कई मायने निकाल रहे हैं। जानकारों का कहना है कि प्रियंका गांधी का ये अवतार भंवर में फंसी कांग्रेस को तट पर लाने में न सिर्फ़ मदद कर सकता है बल्कि फिर से नए सफ़र के लिए तैयार भी कर सकता है।

सवाल है कि प्रियंका गांधी का असली चेहरा है क्या? क्या ये उनका 2.0 अवतार है? क्या वो इस मुश्किल समय में कांग्रेस पार्टी का मोर्चा संभाल सकती हैं? और अगर संभालती हैं तो उसका देश की राजनीति पर और 2024 के आम चुनावों पर क्या असर पड़ेगा?

प्रियंका में क्या है खास?
राहुल के मुकाबले प्रियंका लोगों से तुरंत कनेक्ट करती हैं। राहुल गांधी अंग्रेज़ी में सोचते हैं और हिंदी में ट्रांसलेट करके बोलते हैं। वहीं प्रियंका गांधी हिंदी में समझती हैं, हिंदी में बोलती हैं और हिंदी में ही सोचती हैं।

देश में 48 प्रतिशत महिला वोटर हैं, महिलाओं और युवाओं के साथ प्रियंका का बहुत अच्छा कनेक्ट है। राहुल गांधी को बीजेपी ने पप्पू साबित कर दिया, लेकिन प्रियंका गांधी के ऊपर ऐसी कोई चीज़ नहीं है। विपक्ष के लिए उनकी छवि ख़राब करना मुश्किल है।

वो प्यार से भी बोलती हैं और ज़रूरत पड़ने पर ग़ुस्सा भी दिखाती हैं। ये टिपिकल इंदिरा गांधी स्टाइल है। देश में जो 30-40 साल से ऊपर की महिलाएं हैं वे प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी का रूप देखती हैं।

चुनाव लड़ सकती हैं प्रियंका
राहुल गांधी जेल जाएं या न जाएं प्रियंका चुनावी राजनीति में आ चुकी हैं। पिछली बार वो पार्टी को चुनाव लड़वा रही थीं, लेकिन इस बार वो ख़ुद चुनाव लड़ सकती हैं। अगर राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगी तो ऐसी स्थिति में वो वायनाड से चुनाव लड़ सकती हैं।

अगर राहुल गांधी की सदस्यता बहाल हुई तो वे 2024 में अमेठी या रायबरेली से चुनाव लड़ेंगी क्योंकि पूरा परिवार राजनीति से बाहर नहीं हो सकता है। सोनिया गांधी एक तरह से रिटायरमेंट की बात पहले ही कर चुकी हैं। अब उनके पास करो या मरो की स्थिति है।

प्रियंका के लिए मुश्किल
भारत में 65 प्रतिशत वोटर 35 साल से नीचे के हैं। परिवारवाद की राजनीति के ख़िलाफ़ युवा भारत में एक विरोध की भावना है, वो भारत प्रियंका गांधी को कैसे अपनाता है ये देखना होगा। आज के समय में कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वी बहुत मज़बूत हैं।

सरकार बहुत मज़बूत है। बहुत बड़ी इलेक्शन की मशीनरी है। संसाधन बहुत हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी को कैसे सपोर्ट करती है और वे सड़क पर लड़ाई कैसे लड़ती हैं, ये देखना होगा। उसके बाद ही तस्वीर कुछ साफ़ हो सकेगी।

प्रियंका का टारगेट
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने महिलाओं को तवज्जो दी। महिलाएं एक बड़ा वोट बैंक बनकर सामने आ रही हैं और इस बात को नरेंद्र मोदी समझते हैं और उन्होंने इसे इनकैश भी किया है। बिहार में नीतीश कुमार ने भी इस वोट बैंक को टारगेट कर इनकैश किया है। क्या इस वोट बैंक को प्रियंका गांधी अपनी तरफ़ खींच पाएंगी ये देखने वाली बात होगी।

कांग्रेस के पास विकल्प
कांग्रेस पार्टी मुश्किल स्थिति में है और अगर प्रियंका गांधी मज़बूती से उतरती हैं तो इससे पार्टी को फ़ायदा होगा। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के दूसरे नेताओं की तुलना में प्रियंका गांधी लोगों के साथ ज़्यादा बेहतर तरीके से कनेक्ट कर सकती हैं।

प्रियंका पर भरोसा
देश में राज्यों की लीडरशिप को राहुल से ज़्यादा भरोसा प्रियंका गांधी में है। तीन-चार साल में जो लोग कांग्रेस छोड़कर गए, वो ज़्यादातर राहुल गांधी की वजह से छोड़कर गए, प्रियंका गांधी की वजह से कोई नहीं गया। चाहे वो हिमंत बिस्वा सरमा हों या ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या दूसरे अन्य नेता।

हिमाचल में कांग्रेस आपस में बंटी हुई थी, उसे प्रियंका गांधी ने सुलझाया और चुनाव जीतने में कांग्रेस कामयाब हुई। हिमाचल की जीत का क्रेडिट मौटे तौर पर उन्हें दिया जाना चाहिए। राजस्थान में प्रियंका कांग्रेस के बीच आपसी लड़ाई को दूर कर सकती हैं और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल का साथ भी प्रियंका ने ही दिया जिसके बाद उन्होंने सरकार बनाई।

प्रियंका की राजनीति
जब से प्रियंका गांधी एक्टिव राजनीति में आई हैं तब से वो आक्रामक राजनीति कर रही हैं। लखीमपुर खीरी कांड के समय सबसे पहले प्रियंका गांधी पहुंची थीं। यूपी चुनावों में अखिलेश यादव, मायावती और राहुल गांधी की चर्चा उतनी नहीं थी। वहां प्रियंका गांधी ही दिखाई दे रही थीं।

उन्होंने नारा दिया था, लड़की हूं लड़ सकती हूं। संगठन कमजोर होने की वजह से सीटें नहीं आ पाईं, लेकिन वो अकेली मज़बूती से लड़ीं। देश में राज्यों की लीडरशिप में मल्लिकार्जुन खरगे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, प्रियंका गांधी सड़क की लड़ाई को लीड कर सकती हैं।

कितनी उम्मीदें
प्रियंका गांधी से ये उम्मीद करना कि वो पूरी तस्वीर बदल देंगी या करिश्मा कर देंगी ऐसा नहीं है। हम ऐसा जब सोचते हैं तो हम उन्हें फ़ेल साबित करते हैं। कांग्रेस वाले ग़रीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। उसको फ़ोर्ब्स की लिस्ट में डालने की उम्मीद मत रखिए। जब आप कांग्रेस को उस लिस्ट में डालने की बात करेंगे तो उसे फ़ेल ही मानेंगे।

बीपीएल लोग हैं तो उसे लोअर मिडिल क्लास और फिर अपर क्लास में आने दीजिए। 50 सीटों को अगर कांग्रेस बचा ले जाती है तो भी प्रियंका गांधी सफल मानी जाएंगी।

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